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    पीजी में पिछली रात की घटना से आकांक्षा डर गई थी, लेकिन थकान के कारण आंख लग गई, एक-दो घंटे बाद नींद खुली तो देखा कि दो अनजान लड़के उसके कमरे में...

    Shruti Dixit

    आकांक्षा के लिए अब यह समझना मुश्किल हो गया था कि वो करे क्या। अपने पापा को भी वो पैसे के लिए नहीं बोल सकती थी। पीजी में 6 महीने का रेंट दे दिया था। अब तो उसके लिए दो दिन निकालना भी मुश्किल हो गया। दिल्ली आने से पहले आकांक्षा को लग रहा था कि जीवन में बहुत कुछ होगा और उसका जीवन सुखी बीतेगा, लेकिन नहीं। अब तो सब बदलने लगा है। किसी नई जगह में एडजस्ट करना मुश्किल होता है, लेकिन नई जगह अगर ऐसी हो जाए, तो क्या होगा? आकांशा रात में खाना खाकर सोई और उसे सपना भी आने लगा। वो चाहती थी कि किसी तरह से उसकी समस्या खत्म हो जाए और वो जिस काम के लिए आई है, वो काम हो पाए।

    सोते समय आकांक्षा ने अपनी तकिया के नीचे एक चाकू भी रख लिया। उसे अपनी सुरक्षा की गारंटी चाहिए थी। आकांक्षा नींद में चली गई और सपने में उसे अपना गांव दिखने लगा। उसे लग रहा था कि वो वापस अपने गांव पहुंच गई है।

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    अपने घर में सुरक्षित है और सो रही है। पिता का प्यार हमेशा ही उसके साथ रहा है, लेकिन सपने में अचानक उसे लगा कि वो अकेली हो गई है। उसका घर बदलने लगा और पास उसे कुछ अजीब से लोग आ गाए। उसे वॉचमैन की बात याद आने लगी, 'ये जगह तुम्हें बदल देगी...', ऐसे में उसके साथ क्या हो सकता था उसकी कोई गारंटी नहीं थी।

    आकांक्षा को लग रहा था कि नींद में कोई उसके पैर पकड़ रहा है। एकदम से आंख खुली तो उसने पाया कि वॉचमैन के साथ कल वाले दोनों लड़के उसके कमरे में हैं। वह चीख उठी, आखिर कैसे उसकी दोनों रूम मेट्स उसके साथ ऐसा कर सकती थीं। जब आकांक्षा सो रही होगी, तभी उन्होंने ये दरवाजा खोल दिया होगा। आकांक्षा को लग रहा था कि उसके जीवन में बहुत सारी चीजें ऐसी होने लगी हैं जिनका कोई मतलब नहीं है।

    कुछ समझने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन अभी समझने के लिए ज्यादा समय है संयम रखने का। आकांक्षा उठी और चिल्लाने लगी। उसके शोर से आस-पास के कमरों में सो रहीं लड़कियां भी आ गईं। जब आकांक्षा के कमरे में देखा गया, तो कोई नहीं था। इस बात से आकांक्षा भी परेशान हो गई थी। उसने चिल्लाना शुरू किया वो दोनों लड़के सामने ही थे, अब वो गायब हो चुके थे। ऐसा कैसे सकता था। वॉचमैन और वो दोनों लड़के एकदम से कैसे गायब हो सकते थे? अब उसे लग रहा था कि शायद यह उसके सपने का ही हिस्सा था।

    आकांक्षा जितनी उम्मीदों के साथ आई थी, उतनी डूबने लगीं। क्या करेगी वो अब? अब पूरे पीजी में वो पागल,झूठी, बेवकूफ नाम से जानी जाती थी। किसी तरह से हफ्ता बीत गया और आकांक्षा को लगा अब उसका यहां रहना और मुश्किल हो गया है। वो ना ठीक से खा पा रही थी, ना ही वो सो पा रही थी और वो पढ़ने आई थी यहां,वो भी नहीं कर पा रही थी। पीजी में उससे कोई बात नहीं करता था फिर किसी तरह से बगल वाले कमरे में रहने वाली लड़की मीना ने उससे बात की।

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    एक रात खाने की टेबल पर उससे हाल-चाल पूछा। इतने बाद किसी से बात करके आकांक्षा को अच्छा लगा और वो अचानक रो पड़ी। उसे लग रहा था कि कम से कम किसी ने तो उससे कुछ पूछा। उसने मीना को रोते-रोते सारी कहानी सुना दी। अभी भी आकांक्षा को लग रहा था कि वो सच में उन दो लड़कों से मिली थी। उसे लग रहा था कि सच में उसने उन्हें अपने कमरे में लगातार दो दिन देखा था।

    हम्म... 'सुनैना भी ऐसा कुछ बोली थी, फिर उसने तो एक ही दिन में पीजी छोड़ दिया था', मीना ने कहा। 'कौन सुनैना?' आकांक्षा ने हैरानी से पूछा। 'वही जो तुम्हारे कमरे में रहती थी। तुमसे कुछ दिन पहले ही गई है। तुम्हें रश्मि ने बताया नहीं? उसकी दोस्त ही थी, लेकिन पता नहीं क्यों एक ही दिन में चली गई थी।' मीना ने कहा, तो आकांक्षा को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। ऐसा नहीं हो सकता कि एक ही कमरे में रहने वाली दो लड़कियों ने ऐसा सोचा हो। उसे इसके बारे में किसी और लड़की ने बताया भी नहीं।

    आकांक्षा खाना खाकर वापस अपने कमरे में जा रही थी कि उसने अपनी दोनों रूममेट्स की बातें सुनीं, 'आज एक बार फिर से वही होगा, देखते हैं ये लड़की आज क्या करती है,' आकांक्षा को लग गया था कि आज भी उसके साथ कुछ होने वाला है। उसने वॉर्डन के पास जाकर कहा कि वो पढ़ाई के लिए कुछ देर एक्स्ट्रा स्टडी रूम इस्तेमाल करेगी। वॉर्डन ने भी बात मान ली। आज वो अपने कमरे में गई ही नहीं और स्टडी रूम में अकेले बैठी रही। पता नहीं कब उसकी आंख लग गई और आज उसने सपने में एक बार फिर से अपना घर देखा, वो आज कई लोगों से घिरी हुई थी। उसके आस-पास कुछ जानवर भी थे।

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    सांप, बिच्छू फिर आए वही लड़के। स्टडी रूम में आकांक्षा के पास आकर बैठ गए। आकांक्षा डरी थी, लेकिन आज वो चिल्लाई नहीं। आज उसने महसूस किया कि शायद वह जो देख रही है, वो सच है ही नहीं, वो एक सपना है।

    वो लड़के आकांक्षा को देखे जा रहे थे, लेकिन कुछ भी नहीं कर रहे थे। थोड़ी देर बाद आकांक्षा को लगा कि उसकी आंख खुली है। वो कमरे में एक बार फिर से अकेली थी। अब वो समझ चुकी थी कि उसके साथ जो भी हो रहा था वो सच नहीं भ्रम था। पर ऐसा क्यों कि उसके पहले जो लड़की उस कमरे में रहने आई थी, उसके साथ भी ऐसा ही हो रहा था? आज आकांक्षा अपने कमरे में होती, तो शायद फिर से तमाशा करती। उसने अकेले रहने का फैसला ही इसलिए लिया ताकि वो देख सके कि कहीं उसके साथ कोई बदमाशी तो नहीं कर रहा है, पर वो लड़के असल में थे ही नहीं।

    अब आकांक्षा को अपनी रूममेट्स पर शक हो रहा था, लेकिन वो ऐसा क्या कर रही थीं कि आकांक्षा को इतने खतरनाक सपने आएं? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग- गर्ल्स पीजी-पार्ट 3।

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