thriller suspense hindi story girls pg in delhi

    दिल्ली में आकांक्षा के लिए पहला घर तो पीजी ही था, लेकिन वहां पहली रात ही जो हुआ उसे देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई...

    Shruti Dixit

    घर से बाहर जाकर पढ़ना आकांक्षा के लिए किसी सपने से कम नहीं था। उसके लिए तो हमेशा से ही यही जरूरी था कि किसी तरह से पापा की मदद कर दे। आकांक्षा को जब दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिला, तो उसे लगा कि किसी तरह से वो घर का खर्च निकालने में मदद कर देगी। पापा किसान थे और घर में बस उतना ही पैसा आ पाता था जितने में वो लोग बस खाना खा सकें। आकांक्षा पढ़ाई में तेज थी और उसे स्कॉलरशिप तो मिल गई, लेकिन उसे जिस तरह की बढ़त चाहिए थी, वो नहीं मिली। दिल्ली में पढ़ाई फ्री होना बड़ी बात है, लेकिन घर वाले पीजी का खर्च कैसे चुकाएंगे, ये भी सोचने वाली बात है। किसी तरह से खोजबीन करके इंटरनेट पर आकांशा ने एक पीजी निकाला।

    उस पीजी का किराया बाकी सभी के मुकाबले काफी कम था। उसे देखकर लग रहा था कि साधारण सा पीजी अच्छा है। वहां सुबह और शाम दो टाइम खाना भी मिलता था। उससे भी आकांक्षा को कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उसके लिए अच्छा ही था। नाश्ता नहीं किया करेगी, ऐसा सोचकर उसने पीजी में एप्लीकेशन भर दी। वहां का खर्च देने के लिए आकांक्षा ने अपने जुड़े हुए पैसों को निकाल लिया। ये पैसे अपनी पढ़ाई के लिए ही जोड़े थे आकांक्षा ने। वहां 6 महीने का किराया देकर बात पक्की कर ली। आकांक्षा सोच रही थी कि वो किसी तरह से कोई जॉब करके अपने पीजी का खर्च भी निकाल लेगी।

    हाथ में एक सूटकेस और एक गठरी लिए आकांक्षा को छोड़ने उसके पापा पहुंच गए पीजी। सुबह देखा, तो पीजी ठीक ही लग रहा था। साधारण सा कमरा था, खिड़की थोड़ी छोटी थी, लेकिन मैनेज कर सकते थे उस वक्त। दिल्ली जैसे शहर में इस तरह की सुविधा भी बहुत लग रही थी उसे। आकांक्षा को यहां बस पढ़ना था। अपनी सेकंड हैंड किताबों को लेकर उसने साफ सुथरे तरीके से टेबल पर लगा दिया। पापा भी विदा लेकर चले गए। शाम हो चली थी, वो थक भी गई थी। कमरे में उसके अलावा, दो और लड़कियां रहती थीं। आकांक्षा को नींद आ गई और वो बिना सोचे ही सोने लगी। रात को खाना खाने के लिए भी नहीं उठी, उसका मन ही नहीं था। अचानक उसे लगा कि उसके पैर के पास कोई बैठा हुआ है।

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    उनींदी आंखों से उसने देखा, तो एक आदमी उसके पैर के पास बैठा था। आकांक्षा सीधे उठ खड़ी हुई और चिल्लाई। गर्ल्स पीजी में कोई आदमी क्या कर रहा था। उसने चिल्लाना शुरू कर दिया और उसकी रूम मेट्स ने उसका मुंह बंद कर दिया। 'यहां रहना है, तो चुप रह... तुझे चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है,' पास बैठी रश्मि ने कहा। वहीं दूसरी लड़की सलोनी कह रही थी कि आकांक्षा को नींद की गोलियां खिला देनी चाहिए थी, सोती ही रहती।

    आकांक्षा के साथ ये क्या हो रहा था? दिल्ली में पहली रात और ऐसा भयानक कांड। दरअसल, पास बैठा आदमी रश्मि का ब्वॉयफ्रेंड था। देखने में अधेड़ लग रहा था। उससे कम से कम 10 साल बड़ा होगा। आकांक्षा को लग रहा था कि वो किसी गलत जगह आ गई है। डर के कारण रात भर वहीं बैठी रही। रश्मि और सलोनी दोनों ने ही उस आदमी के साथ बैठकर शराब पी और फिर रात 2 बजे के आस-पास वह कमरे से बाहर चला गया। गर्ल्स पीजी में तो वॉचमैन होता है, ऐसे में वो कहां से आ गया समझ नहीं आया।

    सुबह उठकर आकांक्षा ने वॉर्डन से इसके बारे में शिकायत की। सुबह रश्मि और सलोनी को बुलाया भी गया। वॉचमैन से भी पूछा गया और तीनों ने कहा कि ऐसा कोई आया ही नहीं था। मेन गेट से कैसे ही कोई लड़का यूं ही आ सकता है? आकांक्षा को फिर भी चैन नहीं मिला, उसने कहा कि सीसीटीवी चेक किया जाए। सभी मान गए, आकांक्षा को लगा कि अब तो सबका झूठ पकड़ा जाएगा, लेकिन सीसीटीवी देखकर तो चौंक गई। यकीनन बाहर से कोई भी अंदर नहीं आया था। सीसीटीवी बिल्कुल ठीक था।

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    आकांक्षा को शॉक लग गया कि ऐसा कैसे हो सकता है। एक बार तो उसने कोशिश कर ली, लेकिन अब पीजी में सारी लड़कियां उसे अजीब तरह से देख रही थीं। रश्मि और सलोनी का कहना था कि आकांक्षा नींद में बड़बड़ा रही थी और हो सकता है कि उसने कोई सपना देखा हो, पर ऐसा कैसे हो सकता है।

    आकांक्षा के साथ जो हो रहा था उसपर उसे खुद ही यकीन नहीं था, लेकिन यह भी वो समझ नहीं पा रही थी कि अगर वो सपना था, तो उसे इतना सच कैसे लग रहा था। आकांक्षा पहले ही दिन इस डर से सो नहीं पाई थी। किसी तरह से वो कॉलेज गई और दिन भर थक-हारकर उसने क्लासेस अटेंड किया। उसे लग रहा था कि किसी तरह से बस उसका काम हो जाए। दिन खत्म हुआ और वो पीजी आ गई। खाना तो ठीक से खाया नहीं था इसलिए डिनर का इंतजार करने लगी। खाना मिलते ही आकांक्षा ने ऐसे खाया जैसे कई दिनों की भूखी हो। उसे रात से ही डर लग रहा था, लेकिन सोना तो था ही।

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    सोने से पहले वो वॉचमैन के पास गई। उसने वॉचमैन से कहा, मैं आपसे सच जानना चाहती हूं, क्या वाकई ऐसा हुआ था? वॉचमैन ने उसकी तरफ देखा और कहा, 'ये जगह तुमको बदल देगी, तुम्हें ठीक लगे तो यहां से चली जाना, ये तुम्हारे लिए नहीं।' आकांक्षा को अब यकीन हो चला था कि कुछ तो गड़बड़ है। नींद की कमी और थकान ने उसे सोने पर मजबूर ही कर दिया, लेकिन आज रात एक और धमाका बाकी था... आज आकांक्षा की नांद खुली, तो उसने कमरे में किसी और को देखा...

    किसे देखा था आकांक्षा ने? क्या हुआ था उसके साथ? जानने के लिए पढ़िए कहानी, गर्ल्स -पीजी पार्ट 2।

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