स्नेहा रोज की तरह ऑफिस से थकी हारी घर लौटी। अकेली रहती थी इसलिए दरवाजा खोलना उसका रोज का रूटीन था। लेकिन इस बार कुछ अजीब हुआ। जैसे ही उसने चाबी ताले में डाली ताला अपने आप खुल गया। चाबी घुमाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। पलभर को उसके कदम रुक गए। माथे पर बल पड़ा – ‘ये कैसे खुल गया अगर ऐसे ही खुला रहता तो… अच्छा हुआ सामने ही खुल गया वरना कहीं चोरी हो जाती।’ उसने खुद को समझाया और अंदर आ गई। कमरे में आते ही उसने सैंडल उतारी शू रैक पर रखी और लाइट ऑन कर दी। बैग हमेशा की तरह बेड पर रखा और बाथरूम चली गई। हाथ मुंह धोकर लौटी तो देखा बैग जमीन पर गिरा पड़ा है। वो झुंझलाकर बोली – यार मेरा काम बढ़ाने की कसम खा रखी है क्या सबने अब ये बैग भी। वह बड़बड़ाती हुई बैग उठाकर फिर बेड पर रखती है और फोन से स्पीकर जोड़कर गाना बजा देती है।
अब वह किचन में चली गई। भिंडी तो पहले से काट रखी थी लेकिन प्याज नहीं था। परेशान होकर उसने मोबाइल ऐप खोला और प्याज के साथ साथ नया ताला भी ऑर्डर कर दिया। मन ही मन सोच रही थी – ये ताला अब भरोसे लायक नहीं है। करीब पंद्रह मिनट बाद डोर बेल बजी। स्नेहा प्याज लेने दरवाजा खोलने गई तभी उसकी नजर सामने वाले फ्लैट पर पड़ी। वहां एक लड़का सामान उतार रहा था। शायद नया किरायेदार था।उसके साथ एक कुत्ता भी था जो बार बार भौंककर अपने मालिक के आसपास मंडरा रहा था।
स्नेहा मुस्कुराई और बोली –‘अरे नए आए हो क्या। लड़के ने काला चश्मा लगा रखा था। वह आवाज सुनकर मुड़ा और बोला, 'हां जी... मेरा नाम राहुल है। मेरे मम्मी पापा दो दिन बाद आएंगे, मैं पहले ही आ गया हूं, कल मेरा इंटरव्यू है।' फिर उसने कहा, 'असल में मेरा नाम राघव है। स्नेहा भी अपना नाम बताती है और कमरे में वापस चली जाती है। स्नेहा मन ही मन सोचती है, 'वह देख नहीं सकता लेकिन फिर भी सब मैनेज कर रहा है। एक हम हैं जो थोड़े से काम के लिए आलसी हो जाते हैं।' खाना बनाने और खाने के बाद स्नेहा लाइट बंद करके सोने जा रही थी। रात के 11 बज रहे थे तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। स्नेहा ने सोचा, इतनी रात में कौन होगा। वह अंदर से ही बोली, 'कौन... क्या काम है।' बाहर से आवाज आई, 'मैं राघव... क्या मुझे थोड़ा पानी मिलेगा। मैंने सब सामान ऑर्डर कर लिया लेकिन पानी ऑर्डर करना भूल गया।' स्नेहा ने दरवाजा खोला और बोली, 'अच्छा रुको एक मिनट।' वह दो बोतल पानी भरकर लाई और राघव को दे दिया। फिर बोली, 'और किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना। जब तक तुम्हारे मम्मी पापा नहीं आते इतना तो मैं कर ही सकती हूं।'
इसके बाद दोनों अपने अपने घर चले गए। स्नेहा उस दिन अलार्म लगाना भूल गई थी इसलिए अगले दिन बहुत लेट हो गई। वह जल्दी जल्दी तैयार होकर ऑफिस जाने लगी। नया ताला उसने कहां रखा था उसे याद नहीं आ रहा था। यहां वहां खोजने के बाद आखिर किचन के कचरे के डिब्बे में ताला मिला। रात में जल्दबाजी में वह बैग के साथ ताला भी कचरे में डाल दी थी। उसने ताला निकाला, धोया और दरवाजा बंद कर दिया। तभी राघव भी अपने कमरे से बाहर आया। राघव ने आवाज सुनकर कहा, 'स्नेहा ये तुम हो।' स्नेहा बोली, 'हां यार आज बहुत लेट हो गई हूं, तुमसे फिर बात करूंगी। आज तुम्हारा इंटरव्यू है ना, ऑल द बेस्ट। रात में मिलते हैं।' यह कहकर वह भागते हुए चली गई।
राघव भी ताला लगाकर अपने डॉगी के साथ निकल गया। इंटरव्यू कुछ घंटों में खत्म हो गया और वह वापस लौट आया। घर पहुंचकर उसने ऐसे ही स्नेहा का दरवाजा चेक किया। उसे लगा शायद स्नेहा आ गई होगी। दरवाजा खुला था, तो उसका डॉगी रॉकी अंदर चला गया और जोर जोर से भौंकने लगा। राघव ने कहा, 'रॉकी, ऐसे किसी के कमरे में मत जाओ, बाहर आओ।' लेकिन रॉकी लगातार भौंकता ही रहा। आवाज सुनकर राघव भी कमरे में गया। उसने स्नेहा को आवाज दी... लेकिन कोई जवाब नहीं आया। बाथरूम अंदर से बंद था, तो उसे लगा स्नेहा वहीं होगी और शायद इसलिए जवाब नहीं दे रही। वह रॉकी को पकड़कर अपने कमरे में लौट आया।
रात को 9 बजे जब दरवाजा खुला तो बाहर स्नेहा खड़ी थी। राघव ने पूछा, 'अब क्या ऑर्डर कर लिया।' स्नेहा हंसकर बोली, 'आज खाना खाने का मन नहीं था, तो खाना ही ऑर्डर कर लिया।' तभी रॉकी फिर जोर जोर से भौंकने लगा। वह डिलीवरी बॉय को देखकर भौंक रहा था। राघव ने कहा, 'हां, आज शाम को भी ये बहुत भौंक रहा था।' फिर अचानक राघव को याद आया और उसने पूछा, 'स्नेहा, आज तुम जल्दी आ गई थी ना। स्नेहा बोली, 'हां, आधा घंटे पहले ही आ गई थी।' राघव ने कहा, 'अच्छा... तो क्या ऑफिस शिफ्ट बदल गया है तुम्हारा।' स्नेहा बोली, 'नहीं, दोपहर 12 से रात 8 तक ही है।'
राघव ने मन ही मन सोचा, अगर शिफ्ट वही है तो फिर ये आधा घंटे पहले क्यों कह रही है। लेकिन उसने वहीं बात खत्म कर दी। स्नेहा भी सोचने लगी, 'इसे अचानक क्या हो गया... खैर, मुझे क्या।' राघव कमरे में आकर रॉकी से बोला, 'जब जल्दी आ गई थी तो झूठ क्यों बोल रही थी। बता देती, आज शाम को ही आ गई थी।' फिर उसने खुद को समझाया कि अभी कल ही तो मिली है, मुझे जानती ही नहीं है, तो सब क्यों बताएगी। अगले दिन दोपहर को रॉकी फिर जोर से भौंकने लगा और किसी के भागने की आवाज आई। राघव ने सोचा, शायद स्नेहा ही होगी। उसने बाहर से स्नेहा के कमरे की कुंडी लगा दी। लेकिन पूरा दिन बीत गया और स्नेहा वापस नहीं आई। लेकिन दरवाजा अभी भी ऐसे ही था। इस पर ताला नहीं लगा था। राघव सोने से पहले रात 11 बजे फिर से दरवाजा चेक करने गया। इस बार दरवाजे की कुंडी खुली थी लेकिन दरवाजा अंदर से बंद था।
राघव ने आवाज लगाई - 'स्नेहा.. स्नेहा... तुम अंदर हो?' अंदर से कोई आवाज नहीं आती.. उसे लगता है शायद स्नेहा बात नहीं करना चाहती.. छोड़ो न कारे.. मन नहीं है तो.. ये सोचकर वो अपने कमरे में आ जाता है।
अगले दिन फिर वह 12 बजे से पहले ही दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया कि जब स्नेहा ऑफिस जाएगी तो उससे बात होगी। लेकिन जब स्नेहा बाहर नहीं आई तो उसने दरवाजा चेक किया। दरवाजे पर बाहर से ताला लगा था। उसे लगा स्नेहा आज जल्दी चली गई। फिर पूरे दिन इंतजार करने के बाद रात 8 बजे वह फिर से दरवाजे पर जाकर खड़ा हो गया। लेकिन स्नेहा नहीं आई, बाहर ताला ही लगा था। उसे लगा शायद आज स्नेहा कहीं गई है। निराश होकर राघव अपने कमरे में आ गया।
अगले दिन उसके मम्मी पापा भी आने वाले थे। अब उसने सोचा कि शायद स्नेहा से अब बातचीत नहीं हो पाएगी। ऐसे करते-करते एक हफ्ता बीत गया। उसके मम्मी पापा भी आ गए थे, लेकिन स्नेहा से उसकी एक दिन भी बात नहीं हुई। स्नेहा के दरवाजे पर हमेशा ताला ही लगा रहता था। एक दिन वह परेशान होकर अपनी मां से पूछता है - 'मां, आपने सामने किसी लड़की को देखा क्या... उसे आते-जाते हुए कभी?' मां कहती है - 'लड़की? सामने कहां कोई लड़की रहती है... सामने तो एक लड़का रहता है, डिलीवरी बॉय है शायद... उसे देखकर तो यही लगता है।' मां की बातें सुनकर राघव हैरान हो गया। उसने कहा - 'नहीं मां, कमरे में स्नेहा नाम की लड़की रहती थी।' उसकी मां बोली - 'बेटा, छोड़ दिया होगा उसने...'राघव ने कहा - 'नहीं , उससे मेरी अच्छी जान पहचान हो गई थी।'
मां बोली - 'ठीक है कोई बात नहीं, मुझे कभी नजर आएगी तो बता दूंगी।' ऐसे ही दो हफ्ते और बीत गए। लेकिन स्नेहा वापस नहीं आई थी। एक दिन रात को राघव को पिज्जा खाने का मन हुआ। रात 2 बजे उसने अपनी मां से पिज्जा ऑर्डर करवाया। ऑर्डर आने पर वह दरवाजा खोलने गया। रॉकी भी उसके साथ था। जैसे ही उसने ऑर्डर लिया, उसे सामने से आवाज आई। कोई स्नेहा का कमरा खोल रहा था। रॉकी फिर उसे देखकर भौंकने लगा। राघव ने पूछा - 'स्नेहा, तुम हो क्या?' सामने से एक लड़का बोला - 'वो अब यहां नहीं रहती, ये मेरा घर है अब।' लेकिन रॉकी लगातार उसे देखकर भौंकता रहा। राघव रॉकी को अंदर ले गया लेकिन उसके मन में कुछ अजीब सा लग रहा था। क्योंकि रॉकी हमेशा भौंकता था जब भी वह स्नेहा के कमरे में जाता था या दरवाजे पर किसी को देखता था।
अगले दिन राघव ने प्लान बनाया कि वह चुपके से स्नेहा के कमरे में जाएगा। उसने अपनी मां से कहा - 'मां, मैं कल सामने वाले कमरे का ताला तोड़ने वाला हूं। आप मेरी मदद करोगी?' उसकी मां बोली - 'तू पागल है क्या... ऐसे किसी के घर में कैसे घुस सकता है... बेटा वहां कोई लड़की नहीं है।' राघव नहीं माना। उसने कहा - 'मां, एक रात में कोई कैसे गायब हो सकता है... और रॉकी बार-बार भौंकता है... मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है। आप मेरा साथ नहीं देना चाहती तो मत देना।'
अगले दिन राघव के पिता ऑफिस चले गए और दोपहर 2 बजे राघव ने अपना प्लान के हिसाब से कमरे में जाने की तैयारी की। उसकी मां ने ताला तोड़ा और दोनों कमरे में घुस गए। कमरे में अजीब सी शराब की बदबू आ रही थी। राघव की मां भी पीछे-पीछे आई और यह देखकर हैरान हो गई। कमरा पूरा लड़कियों के सामान से भरा हुआ था। वह सोचने लगी कि इसमें लड़का कैसे रह सकता है। राघव जोर से चिल्लाया - 'स्नेहा... स्नेहा... तुम यहां हो?' कोई आवाज नहीं आई। रॉकी कमरे में इधर-उधर भाग रहा था- तभी उसे एक दुपट्टा मिला। रॉकी उसे खींचने लगा। दुपट्टा अलमारी से बाहर निकल रहा था। राघव की मां ने अलमारी खोला तो हैरान होकर बोली, बेटा यहां लड़की है, इसके हाथ-पैर और मुंह बंद किया हुआ.. यही स्नेहा है क्या.. उसने फौरन लड़की के हाथ-पैर और मुंह खोले, पानी छिड़का और उसे होश में लाने लगी।
राघव बोला - 'स्नेहा... स्नेहा उठो... मां, स्नेहा ठीक है ना?' राघव की मां बोली - 'इसे अपने घर लेकर चलते हैं।' दोनों उसे पकड़कर अपने घर ले आए और तुरंत पुलिस को फोन किया। राघव ने स्नेहा को गले लगा लिया और तेज-तेज रोने लगी… मुझे लगा.. अब सारी जिंदगी में एक कमरे में बंद होकर रह जाऊंगी.. 2 हफ्तों से मैं किसी का इंतजार कर रही थी, कि कोई तो मुझे बचाने आएगा।
राघव भी स्नेहा को रोता देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाया.. स्नेहा ने कहराते हुए कहा… वो डिलीवरी बॉय जिससे मैंने ताला मंगाया था,, उसने दूसरी चाभी अपने पास रख ली थी.. मैं एक दिन ऑफिस से घर आई, तो वो पहले ही कमरे में घुसकर बैठा था.. उसने मुझे पकड़ लिया और बांधकर मेरे ही कमरे में किडनैप कर लिया.. मुझे तुम्हारी आवाज आती थी,, लेकिन मुंह बंद था, मैं मदद के लिए किसी को बुला भी नहीं सकती थी..
अगर तुम नहीं आते, तो मैं कब यहां से गायब हो जाती, किसी को पता भी नहीं चलता.. वो रोज रात को कमरे में आता था, मुझे जबरदस्ती खाना खिलाता और मेरे साथ….…ये बोलते हुए स्नेहा तेज-तेज की रोने लगी.. राघव ने उसे गले लगाया और कहा.. तुम चिंता मत करो.. उस आदमी को आज रात पकड़ कर रहेंगे, वो जिंदगी भर जेल में सड़ेगा।
पुलिस आई और स्नेहा ने अपना पूरा बयान पुलिस को दर्ज करवाया। स्नेहा ने कहा - 'आज फिर रात को आएगा वो।' पुलिस ने रात में जाल बिछाया और जैसे ही डिलीवरी बॉय आया, उसे गिरफ्तार कर लिया। स्नेहा को अस्पताल ले जाया गया और उसका इलाज किया गया।
इस कहानी से यही सीख मिलती है कि जो महिलाएं अपने परिवार से दूर अकेले रहती हैं, उन्हें हमेशा सतर्क रहना चाहिए। अपने आस-पास के लोगों से बातचीत बनाए रखनी चाहिए ताकि मुसीबत आने पर मदद मिल सके। चाहे कितनी भी परेशानी हो,, खुद को सबसे अलग नहीं रखना चाहिए।
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