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kanwar yatra turned nightmare for a man mysterious sadhu trap story in hindi

कावड़ यात्रा के दौरान महेश को रास्ते में मिलने वाला रहस्यमयी साधु कौन था? मस्ती में निकले थे हरिद्वार के लिए लेकिन बाबा ने...

सुबह 5 बजे उसकी नींद खुली और वह फिर से पैदल निकल पड़ा। बैग में उसके पास बस 2 सेब और 2 बोतल पानी था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह कब हरिद्वार पहुंचेगा। थोड़ा पानी पीकर और आधा सेब खाकर वह फिर से पैदल निकल पड़ा।
Editorial
Updated:- 2025-07-18, 13:56 IST

हरिद्वार से 5 दोस्तों का ग्रुप कावड़ लेकर हरिद्वार की तरफ निकल पड़ा था, रास्ते में सब कुछ ठीक था। 5 दोस्तों के ग्रुप में महेश ऐसा था जो कांवड़ यात्रा में बस शौक से शामिल हुआ था। उसे भोले की इस यात्रा में कोई खास इंटरेस्ट नहीं था। लेकिन उसके सभी दोस्त यात्रा पर जा रहे थे, इसलिए उसने भी कांवड़ यात्रा में शामिल होने के फैसला किया। हरिद्वार का यह सफर बहुत ज्यादा मुश्किल था। पैदल चलना महेश को बहुत ज्यादा भारी पड़ रहा था। उसके दोस्त भोले के भक्त थे, इसलिए वह इस यात्रा को बिना किसी परेशानी के पूरा करने में लगे थे। 2 दिन बीत चुके थे और अभी भी हरिद्वार पहुंचने में उन्हें 2 दिन लगने वाले थे। महेश अब पैदल यात्रा नहीं कर पा रहा था। उसने अपने दोस्त से कहा, भाई मुझे बहुत भूख लगी है, तुम लोग आगे चलो मैं कुछ खा कर आता हूं। महेश के दोस्तों ने सोचा , हम तो पैदल ही यात्रा कर रहे हैं। ज्यादा दूर तक नहीं जा पाएंगे, इसको खाना खाने देते हैं।

महेश ने एक रेस्टोरेंट में बैठकर मस्त अपनी पसंद का खाना ऑर्डर किया और पेट भर के खाना खाया। खाना इतना ज्यादा हो गया था कि अब उसे नींद आने लगी थी। लेकिन अब कहां ही वह सो पाता। इसलिए वह फिर से पैदल अपने दोस्तों तक पहुंचने के लिए चल पड़ा। उसने खाना इतना ज्यादा खा लिया था कि अब उसे चलने में मुश्किल हो रही थी, उसका मन हो रहा था कि वह किसी बस में बैठ जाए और हरिद्वार पहुंच जाए, तभी उसे रास्ते में एक बाबा मिले। बाबा ने कहा, क्या बात है बेटा चला नहीं जा रहा है, महेश ने कहा बाबा खाना बहुत ज्यादा खा लिया, अब चलना मुश्किल हो रहा है। बाबा ने कहा भोले का नाम जपते जाओ, रास्ता लंबा नहीं लगेगा, महेश ने मुंह बनाते हुए कहा, क्या बाबा अभी तो हरिद्वार बहुत दूर है, भोले का नाम जपने से सड़क छोटी नहीं हो जाएगी, अभी भी बहुत ज्यादा चलना है। बाबा ने हंसते हुए कहा, तुम्हे लगता है भोले पर भरोसा नहीं है, चलो जाने दो, अगर तुम जल्दी सफर खत्म करना चाहते हो तो मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छा रास्ता है।

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इस रास्ते से तुम 1 दिन में ही हरिद्वार पहुंच जाओगे। तुम्हे ज्यादा चलना भी नहीं पड़ेगा और तुम मस्त हरे-भरे पेड़ों की छांव से जाओगे तो तुम्हें ज्यादा थकान भी नहीं होगी। महेश को पहले बाबा की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, उसकी शक्ल पर साफ दिख रहा था। बाबा ने फिर हंसते हुए कहा, अरे मैं झूठ नहीं बोल रहा, देखो वो जंगल वाला रास्ता। वहां से कितने लोग जा रहे हैं। महेश ने देखा वहां से और भी लोग कावड़ लेकर जा रहे थे। महेश को लगा कि बाबा सही कह रहे हैं, जल्दी पहुंचने के चक्कर में महेश ने वो रास्ता चुन लिया। महेश ने बाबा से कहा, आप नहीं चलोगे, बाबा ने हंसते हुए बोला, बम-बम भोले, मुझे शॉर्टकट की जरूरत नहीं बालक, मैं पूरा सफर इसी रस्ते से करूंगा। तुम्हे जल्दी पहुंचना है, इसलिए तुम इस रास्ते से जाओ। महेश शॉर्टकट मिलने की वजह से बहुत ज्यादा खुश था, जंगल में बिना सोचे समझे वह निकल गया। उसे लगा कि इतने लोग जा रहे हैं, तो रास्ता सही ही होगा। लेकिन महेश को बहुत ज्यादा नींद आ रही थी, उसने मन में सोचा, नींद बहुत आ रही है और हर भरे पेड़ भी अच्छे लग रहे हैं, थोड़ा सो जाता हूं।

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उसके बाद पैदल सफर करूंगा तो जल्दी चल पाऊंगा। कुछ देर चलने के बाद महेश गहरी नींद में सो गया। जब उसकी नींद खुली तो शाम के 5 बज गए थे। अंधेरा होने वाला था और वह इस बात से चिंता में आ गया। जंगल और जंगल में कोई लाइट भी नहीं है। ऊपर से जंगल में कोई अब आदमी भी नजर नहीं आ रहा। उसने सोचा कि इससे अच्छा है कि वह वापस जंगल से बाहर निकल जाए। जंगल में अंधेरे में वह रात में क्या करेगा। यह सोचकर वह वापस जंगल से बाहर निकलने के लिए रास्ता ढूंढने लगा। उसने बहुत रस्ता ढूंढा लेकिन अब रस्ता भी उसे नहीं मिल रहा था, चारों तरफ बस पेड़ नजर आ रहे थे लेकिन जंगल से बाहर निकलने का रास्ता दूर दूर तक उसे नजर नहीं आया। एक घंटे तक भटकने के बाद उसे अब यह भी समझ नहीं आ रहा था कि हरिद्वार का रस्ता जंगल में किस तरफ है। बिना सोचे समझे वह एक रास्ते पर निकल पड़ा। चलते चलते अब अंधेरा हो गया था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सही रस्ते पर है भी के नहीं। फोन की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी। थक हारकर वह रात में एक पेड़ के नीचे सो गया। जंगल में उसे 3 दिन हो गए थे, लेकिन हरिद्वार तक पहुंचने का रास्ता उसे अभी तक नहीं मिला था। हर रोज वह सुबह उठता और जंगल में बेर और जामुन बटोर कर वहीं खाता और पैदल यात्रा करता।

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धीरे- धीरे उसे 5 दिन हो गए लेकिन उसे जंगल से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। अब महेश ने उम्मीद खो दी थी और उसे लग रहा था कि वह जंगल से कभी बाहर नहीं निकल पाएगा। थक हारकर वह जंगल में तेज तेज रोने लग, तभी उसे एक शिवलिंग नजर आया। शिवलिंग पर किसी ने अगरबत्ती जलाई थी और फूल और फल चढ़ाए थे। यह देखकर महेश के मन में खुशी की लहर दौड़ गई थी, उसे लग रहा था कि आसपास कोई है जो शिवलिंग के पास आता। वह सबसे पहले शिवलिंग के पास गया और खाने के लिए सेब उठा लिया, लेकिन सब उसके मुंह तक जा नहीं पाया। क्योंकि शिवलिंग को देखकर वह इतना ज्यादा भावुक हो गया कि भोलेनाथ के आगे फुट फूट कर रोने लगा। रोते हुए वह भोले बाबा से कहता है, हे भोलेनाथ यह क्या हो गया, प्लीज मुझे जंगल से बाहर निकाल दो, मैं माफी चाहता हूं,प्लीज मुझे यहां से बाहर निकाल दो। वह बार बार बाबा से यही निवेदन कह रहा था।

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तभी उसे झाड़ियों में से कुछ आवाज आई। उसे लगा कि कोई जानवर झाड़ियों के दूसरी तरफ है, वह घबरा गया। लेकिन झाड़ियों से कोई जानवर नहीं बल्कि वही बाबा निकल कर आए। यह भी बाबा थे, जिसने उसे जंगल में जाने को कहा था। बाबा को देखते महेश और भी रोने लगा।महेश फौरन बाबा के पैरों में गिर गया और जंगल से बाहर निकलने के लिए निवेदन करने लगा। महेश ने बाबा से कहा। बाबा मैं 5 दिनों से इस जंगल में भटक रहा हूं। प्लीज मुझे इस जंगल से बाहर निकाल दो। अब मैं और नहीं चल पाऊंगा। बाबा ने हंसते हुए कहा - अरे तुम अभी तक यही हों , यह तो शॉर्टकट था। महेश ने रोते हुए कहा, बाबा मुझे शॉर्टकट नहीं चाहिए।

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प्लीज मुझे जंगल से बाहर निकाल दो। बाबा फिर तेज तेज हंसने लगे और बोले, अरे बेटा झाड़ियों के पीछे देख, हरिद्वार आ गया है। महेश भागते हुए बाहर गया, गंगा जी बह रही थी, यह देखकर महेश के आंसू खुशी के मारे रुक नहीं रहे थे। वह बाबा को धन्यवाद करने वापस अंदर गया। लेकिन बाबा वहां नहीं थे… महेश ने देखा कि शिवलिंग भी गायब था, यह देखकर वह बहुत ज्यादा हैरान हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अचानक से सब कैसे गायब हो गया। तभी उसे जमीन पर एक छोटा सा त्रिशूल नजर आया। उसे समझ आ गया कि यह बाबा और कोई नहीं बल्कि खुद भोलेनाथ थे। उसे समझ आ गया कि भोलेनाथ ने उसकी परीक्षा ली है। वह शॉर्टकट चाहता था इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ। लेकिन इस सफर के बाद उसका भी भोलेनाथ के प्रति गहरी श्रद्धा हो गई। वह जंगल से निकल कर पहले गंगा जी में डुबकी लगाई ,भोलेनाथ को जल चढ़ाया और अपने दोस्तों से मिला।

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यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

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