Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 22 सितंबर से हो रहा है। ऐसे में बता दें कि नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इन दिनों में माता रानी की आराधना के साथ-साथ कथा को पढ़ने और सुनने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं नवरात्रि में मां दुर्गा की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
नवरात्रि व्रत कथा के अनुसार, पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मानों ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या पैदा हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुए इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है।
उसका पिता प्रतिदिन मां दुर्गा की पूजा और होम किया करता था। उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और क्रोध में आकर पुत्री का विवाह किसी कुष्ठी से कर देने की बात कह डाली। पिता वचन सुन सुमति बहुत दुखी हुई।
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सुमति ने पिता का मान रखा और किसी भी कुष्ठ रोगी से विवाह के लिए तैयार हो गई, लेकिन इससे ब्राह्मण को और भी क्रोध आ गया क्योंकि उसने देखा कि उसकी पुत्री के मन में ज़रा भी भय नहीं था। ब्राह्मण ने सुमति का विवाह एक कुष्ठी के साथ करा दिया। सुमति को अपने भाग्य पर बहुत रोना आया परंतु वह कुछ नहीं कर सकती थी अब। लिहाजा अपने कुष्ठ पति के साथ वह गांव छोड़ वन में चली गई।
वन में अपने भाग्य को कोसती हुई वह बार बार माता भगवती यानी कि मन दुर्गा को पुकारने लगी कि तभी मां दुर्गा वहां प्रकट हो गईं। सुमति ने मां दुर्गा से पूछा कि बिना किसी तपस्या के वह सुमति के सामने कैसे आईं तब सुमति को मां दुर्गा ने बताया पिछले जन्म की तपस्या का वरदान वह इस जन्म में देनी आई हैं। माता रानी ने सुमति को वरदान मांगने के लिए कहा और उसे मनवांछित फल देने का वचन दिया।
सुमति ने मां दुर्गा से अपने पिछले जन्म के बारे में जानने की इच्छा जताई जिसके बाद माता रानी ने सुमति को बताया कि वह पिछले जन्म में एक भील की पत्नी थी। दोनों भील पति-पत्नी पवित्र मन के साथ सभी सहायता करते थे, लेकिन एक बार भुकमरी के चलते सुमति के पूर्व जन्म के पति ने राजा के घर में चोरी कर ली थी। इसके बाद राजा ने क्रोध में आकर दोनों भील पति-पत्नी को कोठरी में डलवा दिया था।
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राजा की कोठरी में भील पति-पत्नी बिना कुछ खाए और पिए रहते थे। वह समय माता के नौ दोनों का था यानी कि अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर दशमी तक दोनों भूखे-प्यासे रहे और एक तरह से उनका व्रत हो गया। उस जन्म में व्रत समापन पर दोनों की मृत्यु हो गई थी इसलिए उस रत का फल माता इस जन्म में देने आई हैं। सुमति ने वरदान में माता से अपने पति का कोढ़ दूर करने के लिए कहा।
मां दुर्गा ने सुमति के पति का कोढ़ दूर कर दिया और उसके पति को सोने सा सुंदर शरीर प्रदान किया। भगवती दुर्गा की कृपा से सुमति के पति का शरीर कुष्ठ हीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया था। तभी यह माना जाने लगा कि मां दुर्गा की सच्चे हृदय से की गई पूजा कभी भी विफल नहीं होती है और इन नवरात्रि के नौ दिनों का व्रत रख माता से पूर्ण श्रद्धा से जो भी मांगा जाए वह अवश्य पूरा करती हैं।
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