सुनीता विलियम्स का नाम नासा के सबसे प्रसिद्ध अंतरिक्ष यात्रियों में गिना जाता है। वह न केवल अपने अंतरिक्ष मिशनों के लिए जानी जाती हैं, बल्कि भारत से उनके गहरे जुड़ाव के कारण भी भारतीयों के लिए गर्व का विषय रही हैं। हालांकि, आजकल वह इस कारण से चर्चा में है कि सुनीता जल्दी धरती पर कदम रखने वाली हैं।
सुनीता विलियम्स और उनके कलीग बुच विल्मोर बीते साल 5 जून को बोइंग के स्टारलाइनर अंतरिक्ष यान पर सवार होकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के लिए 8 दिवसीय मिशन के लिए निकले थे। इसके बाद अचानक उनके स्पेस क्राफ्ट में तकनीकी समस्या हो गई, जिससे उन्हें स्पेस स्टेशन पर रुकने की सलाह दी गई। अब उन्हें लेने के लिए नासा ने स्पेशल स्पेसक्राफ्ट भेजा है। इस बात की जानकारी एलन मस्क ने सोशल मीडिया पर दी थी। ऐसा बताया गया है दोनों 19 मार्च को सफलतापूर्वक धरती पर लौटेंगे।
इसके कारण सुनीता विलियम्स एक बार फिर से चर्चा में हैं। उनके बारे में तो हजारों लोग जानते हैं, लेकिन उनसे जुड़े कुछ ऐसे दिलचस्प फैक्ट्स हैं जो सबको पता होने चाहिए।
नौसेना पायलट से एस्ट्रोनॉट बनने का सफर
वह पहले अमेरिकी नौसेना में एक हेलीकॉप्टर पायलट थीं और बाद में नासा में शामिल हुईं। अपने मिलिटरी करियर के दौरान वह 1987 में एनसाइन के तौर पर यूएस स्टेट्स नेवी में भर्ती हुईं। इसके बाद 1989 में नेवल एविएटर बनीं। वह एसएच-60 सीहॉक की पायलट थीं। नौसेना में रहते हुए उन्होंने 30 से अधिक विमानों को उड़ाने का अनुभव प्राप्त किया।
1998 में वह नासा के लिए सेलेक्ट हुईं। उन्होंने अपनी ट्रेनिंग 1999 में की थी, जिसके बाद वह नासा की एलीट टीम स्पेस एक्सप्लोरर का हिस्सा बनीं।
सुनीता विलियम्स के अंतरिक्ष मिशन
सुनीता विलियम्स को नासा के सबसे अनुभवी अंतरिक्ष यात्रियों में से एक माना जाता है। उन्होंने दो बार अंतरिक्ष की यात्रा की है और कुल मिलाकर 321 दिन अंतरिक्ष में बिताए हैं। उनके महत्वपूर्ण मिशन इस प्रकार हैं:
एक्सपीडिशन 14/15 (2006-07): इस मिशन के दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में 195 दिन बिताए। इस दौरान उन्होंने छह बार स्पेसवॉक (अंतरिक्ष में चहलकदमी) की।
एक्सपीडिशन 32/33 (2012): इस मिशन में उन्होंने 127 दिन अंतरिक्ष में बिताए। उन्होंने तीन बार स्पेसवॉक किया और कई वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लिया।
सुनीता विलियम्स का भारत से संबंध
सुनीता विलियम्स अमेरिकी एस्ट्रोनॉट हैं, लेकिन उनका नाता भारत से भी है। उनके पिता दीपक पंड्या भारतीय मूल के हैं और गुजरात से ताल्लुक रखते हैं। उनकी माता स्लोवेनियाई मूल की हैं। सुनीता ने कई बार यह व्यक्त किया है कि भारत और भारतीय कल्चर से उनका गहरा लगाव है।
2007 में, जब वह अपने पहले अंतरिक्ष मिशन पर गई थीं, तब उन्होंने भारत के अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम का दौरा किया था। इसके अलावा, वह अपने साथ अंतरिक्ष में भगवद गीता और भगवान गणेश की मूर्ति भी ले गई थीं, जो उनके भारतीय मूल से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है।
सबसे ज्यादा स्पेसवॉक करने वाली महिला
सुनीता विलियम्स ने अब तक 8 स्पेसवॉक किए हैं, जिनकी कुल अवधि 56 घंटे 40 मिनट है। यह उपलब्धि उन्हें सबसे अधिक स्पेसवॉक करने वाली महिलाओं में से एक बनाती है। नासा की इस भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किए, जिससे वह विज्ञान और अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रेरणा बनीं।
अंतरिक्ष में मैराथन दौड़ने वाली पहली महिला
2007 में, सुनीता विलियम्स ने इतिहास रचते हुए अंतरिक्ष में ही बोस्टन मैराथन दौड़ी। उन्होंने यह दौड़ अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर ट्रेडमिल का उपयोग करके पूरी की। जीरो ग्रैविटी में दौड़ना आसान नहीं था, इसलिए उन्होंने खुद को ट्रेडमिल से बांधकर 42.2 किलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान पृथ्वी पर उनके साथी धावकों ने मैराथन में भाग लिया, जिससे वह वर्चुअली जुड़ी रहीं।
स्पेस एक्सप्लोरेशन में बड़ी उपलब्धियां
2015 में, सुनीता विलियम्स को नासा के कमर्शियल क्रू प्रोग्राम के तहत बोइंग स्टारलाइनर मिशन के लिए चुना गया। यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी क्योंकि इस मिशन का उद्देश्य निजी कंपनियों के सहयोग से अंतरिक्ष यात्रा को नया आयाम देना था। स्टारलाइनर को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) तक क्रू परिवहन के लिए विकसित किया गया। इस चयन ने सुनीता को अमेरिका की नई पीढ़ी की अंतरिक्ष उड़ानों का हिस्सा बनाया।
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सुनीता विलियम्स प्रतिष्ठित पुरस्कारों से हो चुकी हैं सम्मानित
अपने करियर के दौरान, सुनीता विलियम्स को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें नेवी कमेंडेशन मेडल और नासा स्पेसफ्लाइट मेडल शामिल हैं। 2008 में, उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें अंतरिक्ष की खोज में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया था।
सुनीता के साहस, धैर्य और विज्ञान के प्रति जुनून ने उन्हें एक अद्वितीय पहचान दिलाई है। अब जब वह 9 महीने के लंबे अंतरिक्ष मिशन के बाद धरती पर लौटने वाली हैं, तो यह न केवल विज्ञान के क्षेत्र के लिए बल्कि उन सभी के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा, जो अंतरिक्ष विज्ञान और खोज में रुचि रखते हैं।
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