गुजरात के अहमदाबाद शहर में स्थित साबरमती आश्रम राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग महत्ता रखता है। आज इसे गांधी आश्रम के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि बापू महात्मा गांधी ने अपने जीवन का एक लंबा वक्त बिताया। यह महात्मा गांधी के कई आवासों में से एक था। वह साबरमती में अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी और विनोबा भावे सहित अनुयायियों के साथ कुल बारह वर्षों तक रहे। वह आश्रम में अपनी दिनचर्या के रूप में भगवद गीता का पाठ प्रतिदिन यहां किया करते थे। महात्मा गांधी के कई आवासों में साबरमती आश्रम एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान इसलिए भी रखता है, क्योंकि यहीं से गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च का नेतृत्व किया, जिसे नमक सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर इस मार्च के महत्वपूर्ण प्रभाव को देखते हुए, भारत सरकार ने आश्रम को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में स्थापित किया है। हालांकि, आज भी लोग इस आश्रम से जुड़े कुछ किस्सों से आज भी अनजान हैं।21 अप्रैल को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी इस आश्रम में पहुंचे और उन्होंने गांधी जी का चरखा भी चलाया। आपको बता दें कि बोरिस जॉनसन 2 दिवसीय भारत दौरे पर आए हुए हैं।
तो चलिए आज इस लेख में हम आपको साबरमती आश्रम से जुड़े कुछ इंटरस्टिंग फैक्ट्स के बारे में बता रहे हैं-
साबरमती नदी के तट पर आश्रम बनने से पहले गांधीजी का भारत आश्रम मूल रूप से 25 मई 1915 को गांधी के एक मित्र और बैरिस्टर जीवनलाल देसाई के कोचरब बंगले में स्थापित किया गया था। उस समय आश्रम को सत्याग्रह आश्रम कहा जाता था। लेकिन गांधी जी स्वतंत्रता आंदोलन के अलावा अन्य गतिविधियों जैसे खेती और पशुपालन आदि गतिविधियों को भी अंजाम देना चाहते थे और इसके लिए भूमि के एक बहुत बड़े क्षेत्र की आवश्यकता थी। इसलिए दो साल बाद, 17 जून 1917 को, आश्रम को साबरमती नदी के तट पर छत्तीस एकड़ के क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया, और तब इसे साबरमती आश्रम के रूप में जाना जाने लगा।
अहमदाबाद को आश्रम के रूप में चुनने के पीछे गांधी जी का एक विजन था, उन्होंने भारत की स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए इस जगह का चुनाव किया। गुजरात की कैपिटल होने के कारण अहमदाबाद कई बड़े बिजनेसमैन और इंडस्ट्रिलिस्ट का घर था, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलनमें अपना सहयोग कर सकते थे। इसके अलावा, इस जगह की बेहतर कनेक्टिविटी ने भी गांधी जी को अपनी ओर आकर्षित किया।
बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि आश्रम में रहते हुए, गांधी जी ने एक टर्शीएरी स्कूल का गठनकिया, जो देश की आत्मनिर्भरता के लिए अपने प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए शारीरिक श्रम, कृषि और साक्षरता पर केंद्रित था। इस तरह स्कूल में आने वाले छात्र पढ़ाई के अलावा अन्य कई गतिविधियों में भी शामिल होते थे, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मददगार बना।
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यह तो हम सभी जानते हैं कि गांधी ने दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह का नेतृत्व यहीं से किया। लेकिन उनके इस सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार ने आश्रम को जब्त कर लिया। गांधी ने बाद में सरकार से इसे वापस देने के लिए कहा लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। तब गांधी जी ने 22 जुलाई 1933 को आश्रम को भंग करने का फैसला कर लिया था। उसके बाद यह एक निर्जन स्थान बन गया। बाद में, स्थानीय नागरिकों ने इसे संरक्षित करने का फैसला किया।
बता दें कि 12 मार्च 1930 को जब गांधी जी ने दांडी मार्च शुरू किया था, तब उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक भारत को आजादी नहीं मिल जाती तब तक वह आश्रम नहीं लौटेंगे। हालांकि, भारत को 1947 में आजादी मिल गई और 30 जनवरी 1948 को गांधी की हत्या कर दी गई थी और इस तरह गांधी जी फिर कभी उस आश्रम में वापस नहीं जा पाए जो उन्होंने बनाया था।
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