उत्तराखंड में क्यों पहले ही शुरू हो जाता है सावन का महीना, जानें क्या है कारण

हिंदू धर्म में सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। इस पूरे माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। 

Why sawan Month starts early in uttarakhand ()

पूरे महीने में सावन का महीना ऐसा होता है। जहां हर तरफ हरियाली रहती है। इस महीना का सभी भक्त इंतजार करते हैं। सावन का संबंध भगवान शिव से है। हिंदू पंचांग के अनुसार सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हो रहा है और इसका समापन 19 अगस्त को रक्षाबंधन पर खत्म होगा। लेकिन देश का ऐसा एक राज्य उत्तराखंड है, जहां सावन का महीना पहले से ही आरंभ हो जाता है। बता दें, सावन माह के पहले दिन यहां एक लोक पर्व मनाया जाता है। जिसे हरेला कहा जाता है। अब ऐसे में उत्तराखंड में सावन का महीना पहले ही क्यों आरंभ हो जाता है। इसकी क्या मान्यता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

उत्तराखंड में सावन पहले शुरू होने का कारण क्या है?

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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस साल सावन का महीना 22 जुलाई से आरंभ हो रहा है। वहीं उत्तराखंड में हफ्ते भर पहले से ही इस पावन पर्व का आरंभ हो जाता है। बता दें, दोनों के बीच एक खास कारण है। चंद्र मास के अनुसार 22 जुलाई यानी कि गुरु पूर्णिमा से ही सावन का महीना आरंभ होगा। इस पर जब हमने ज्योतिषाचार्य जी से बात की, तो उन्होंने बताया कि सावन का महीना पहले ही शुरू होने का कारण है कि सूर्य के अनुसार ही मास का चुनाव किया जाता है। वहीं 16 जुलाई को सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। जिसके कारण सावन का महीना उत्तराखंड में पहले ही आरंभ हो जाता है।

क्या है हरेला ?

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सावन महीने में हर तरफ हरियाली नजर आती है। ऐसा लगता है कि जैसे पूरी प्रकृति सजकर तैयार हो। हरियाली के इसी उत्सव को उत्तराखंड में हरेला नाम से जाना जाता है। हरेला उत्तराखंड के परिवेश और खेती से भी जुड़ा हुआ है। जो साल में तीन बार यानी कि चैत्र, श्रावण और आश्विन मास में मनाया जाता है। यह माह भगवान शिव को बेहद प्रिय है। श्रावण का हरेला श्रावण शुरू होने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।

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धार्मिक दृष्टि से देखें, तो उत्तराखंड महादेव का ससुराल है। इसलिए यहां हरेला पर्व का विशेष महत्व है। हरेला से नौ दिन पहले घर में सात प्रकार के अनाज (जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में बोया जाता है। इसे सतनाजा भी कहते हैं। इसके लिए टोकरी में मिट्टी की परत बिछाकर उसमें बीज डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया को पांच से छह बार की जाती है। टोकरी को सूर्य की सीधी रोशनी से बचाकर रखा जाता है। वहीं नौवें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानी हरेले के दिन इसे काटकर तिलक, चंदन और अक्षत से देवता को अर्पित किया जाता है। वहीं घर की सबसे बुजुर्ग महिलाएं सभी सदस्यों को हरेला लगाती हैं। इसमें हरेला को सबसे पहले पैर, फिर घुटने व कंधे और अंत में सिर पर रखा जाता है।

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Image Credit- HerZindagi

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