सावन के महीने में मुख्य रूप से शिव जी की पूजा की जाती है। शिव पूजन में जितना महत्त्व शिव जी की पूजा करने का है उससे कहीं ज्यादा शिव लिंग की पूजा को पुराणों में लाबकारी बताया गया है। कहा जाता है कि शिवलिंग की पूजा नियमपूर्वक करने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से सभी मनोकामनाओं को पूर्ति तो होती है साथ ही समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती है।
हिंदू धर्म में, शिवलिंग एक प्रतीक है जो भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करता है। सबसे शक्तिशाली देवता के रूप में, उनके सम्मान में मंदिरों का निर्माण किया जाता है, जिसमें शिवलिंग भी शामिल है, जो दुनिया और उससे आगे की सभी ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व करता है। आप सभी भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु शिवलिंग का पूजन अवश्य करते होंगे, लेकिन कभी आपने सोचा है कि शिव जी का लिंग रूप में पूजन क्यों किया जाता है ? अगर आप इस बारे में नहीं जानते हैं तो इस लेख में नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें इसके पीछे के कारणों के बारे में और इससे जुड़ी अवधारणाओं के बारे में।
शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीक है और शिव का अर्थ है– कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन। मान्यता है कि सर्जनहार के रूप में लिंग की पूजा की जाती है। यदि संस्कृत भाषा की बात की जाए तो शिवलिंग का अर्थ शिव का गुप्तांग न होकर शिव जी का प्रतीक है। शिवलिंग का पूजन करने का मतलब यह है कि शिव की किसी प्रतीक के रूप में पूजा करना। ऐसी मान्यता है कि शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग को पूजा विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। भगवान शिव अनंत काल के प्रतीक हैं। मान्यताओं के अनुसार, लिंग एक विशाल लौकिक आकृति है, जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड और इसे ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है।
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लिंग महापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता साबित करने को लेकर विवाद हुआ दोनों अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए एक-दूसरे का अपमान करने लगे। लेकिन जब दोनों का विवाद चरम सीमा तक पहुंच गया, तब अग्नि की ज्वालाओं से लिपटा एक विशाल लिंग दोनों देशों के बीच आकर स्थापित हो गया और दोनों देव इस लिंग के रहस्य का पता लगाने में जुट गए। उस समय भगवान ब्रह्मा उस लिंग के ऊपर की तरफ बढ़े और भगवान विष्णु नीचे की ओर जाने लगे। कई हजारों सालों तक जब दोनों देव इस लिंग का पता लगा पाने में असफल रहे तब वो लिंग के पास पहुंचे और लिंग के पास पहुंचते ही दोनों देशों को लिंग से ओम स्वर की ध्वनि सुनाई देने लगी। दोनों ने लिंग की आराधना की जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और शिव जी विशाल लिंग से प्रकट हुए उन्होंने दोनों देवों को सद्बुद्धि का वरदान दिया तब से लिंग रूप में भगवान शिव की आराधना की जाने लगी।
पुराणों में प्रचलित एक कथा के अनुसार एक बार सभी साधु मुनि ध्यान केंद्रित करने हेतु ज्योति प्रज्वलित करके पूजा कर रहे थे। वो ज्योति बाद -बार तेज हवा की वजह से हिल रही थी और ऋषि मुनियों का ध्यान केंद्रित नहीं हो पा रहा था। उस समय सभी ऋषियों ने शिव जी से आराधना की और शिव जी ने ज्योति के आकार के रूप में शिवलिंग की स्थापना की। उस शिवलिंग को देखकर ऋषि मुनि ध्यान केंद्रित करने में सफल हो सके। तभी से शिवलिंग की पूजा का विधान है। शिव महापुराण के अनुसार एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्म रूप होने के कारण निराकार कहे गए हैं।
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इस प्रकार भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो निष्कल व सकल दोनों हैं और शिव के निराकार स्वरूप का ही पूजा लिंग रूप में किया जाता है।
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