क्या आप जानते हैं शिवलिंग की पूरी परिक्रमा क्यों नहीं करनी चाहिए

शिव पूजन में कई बातों का विशेष महत्त्व है। ऐसी ही बातों में से एक है शिवलिंग की परिक्रमा करने के नियम। आइए जानें शिवलिंग की पूरी परिक्रमा क्यों नहीं करनी चाहिए।

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शिव पूजन में शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्त्व है। मुख्य रूप से सावन के महीने में लोग शिवलिंग को जल चढ़ाते हैं , शिव लिंग में बेल पत्र, धतूरा और भांग अर्पित करते हैं। इसके अलावा शिवलिंग पर चंदन का लेप किया जाता है जिससे भगवान् शिव प्रसन्न होते हैं और शिव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। किसी भी पूजा का संपूर्ण फल तब मिलता है जब पूजा के दौरान परिक्रमा की जाती है। किसी भी भगवान की परिक्रमा कुछ नियमों के साथ और मन्त्रों के उच्चारण के साथ की जाती है। इस परिक्रमा को घड़ी के चलने की दिशा में यानी कि दाहिने से बाएं की तरफ किया जाता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग की परिक्रमा करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है। शिवलिंग की परिक्रमा कभी पूरी नहीं की जाती है अर्थात इसकी जललहरी को लांघना शास्त्रों के खिलाफ बताया गया है। अगर आप भी इसके कारणों को जान्ने के बारे में सोच रहे हैं तो हम आपको इसके कारणों से अवगत कराने जा रहे हैं। इस बात की पूरी जानकारी के लिए हमने नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से बात की उन्होंने जो कारण हमें बताए वो आपको भी जान लेने चाहिए।

पुराणों में है शिवलिंग की आधी परिक्रमा का महत्व

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शिव पुराण समेत कई शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इसका धार्मिक कारण यह है कि शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाया जाता है क्योंकि शिवलिंग की तासीर को गर्म माना जाता है और इसे ठंडक प्रदान करने के लिए जलधारा से शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। इस जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है और ये जल जिस मार्ग से निकलता है, उसे निर्मली या जलाधारी कहा जाता है।

ऐसे करें शिवलिंग की परिक्रमा

शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाईं तरफ से की जाती है। ऐसा करने से ही शिव पूजन का विशेष फल प्राप्त होता है। बाईं ओर से शुरू करकेजलहरी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करें। इसके साथ विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है। इस बात का ख्याल रखें कि परिक्रमा दाईं तरफ से कभी भी शुरू नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के साथ ही दिशा का भी ध्यान करना चाहिए। साथ ही ,जलाधारी तक जाकर वापस लौट कर दूसरी ओर से परिक्रमा करनी चाहिए।

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क्यों नहीं लांघनी चाहिए जलहरी

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शिवलिंग की जलहरीको भूल कर भी नहीं लांघना चाहिए। अन्यथा इससे घोर पाप लगता है। शिवलिंग की जलहरीको ऊर्जा और शक्ति का भंडार माना गया है। यदि परिक्रमा करते हुए इसे लांघा जाए तो मनुष्य को शारीरिक परेशानियों के साथ ही शारीरिक ऊर्जा की हानि का भी सामना करना पड़ सकता है। शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से शरीर पर पांच तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। इसी वजह से शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का कष्ट उत्पन्न होता है। शिवलिंग की अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा ही हमेशा करना चाहिए।

क्या है पंडित जी की राय

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पंडित प्रशांत मिश्रा जी बताते हैं कि शिवलिंग की जलहरी माता पार्वती का स्वरूप मानी जाती है, इसलिए इसे लांगना नहीं चाहिए। शिवलिंग में अत्यंत ऊर्जा होती है जो जलहरी में प्रवाहित होती है। इसलिए जलहरी को लांगने से शारीरिक रोग हो सकते हैं। लेकिन किसी विशेष परिस्थिति में यदि जलहरी ढकी हुई होती है तो इसे लांघकर पूरी परिक्रमा भी की जा सकती है। इस स्थिति में पूर्ण परिक्रमा करने से दोष नहीं लगता है।

उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर शिवलिंग की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसलिए शिवलिंग की पूजा के समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें।

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Image Credit: pixabay , shutterstock and freepik

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