हम सभी ने बाजार में महात्मा बुद्ध की कई तरह की मूर्तियां देखी होंगी और उन्हें घर में सजाया भी होगा। कभी वे ध्यान करते हुए दिखते हैं, कभी हाथ में ज्ञान चक्र लिए हुए और कभी लेटे हुए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महात्मा बुद्ध की लेटे हुए अवस्था वाली प्रतिमा का बहुत बड़ा महत्व है? यह मूर्ति उनके अंतिम संदेश और आखिरी पलों को दिखाती है। दरअसल, लेटे हुए बुद्ध की मुद्रा को महापरिनिर्वाण मुद्रा कहा जाता है। आपने Reclining Buddha को मंदिरों और स्तूपों में देखा होगा। आज हम आपको बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा की कहानी और उसके पीछे का गहरा मतलब बताने जा रहे हैं।
मान्यताओं के अनुसार, महात्मा बुद्ध की मृत्यु जहरीला भोजन खाने से हुई थी। दरअसल, उन्होंने अपने जीवन का आखिरी भोजन एक लोहार के घर किया था जिसका नाम कुंडा था। कुंडा ने बहुत श्रद्धा से बुद्ध और उनके शिष्यों को भोजन के लिए बुलाया था। जैसे ही बुद्ध ने भोजन किया, उन्हें एहसास हो गया था कि यह भोजन उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन उन्होंने कुंडा को न तो कोई दोष दिया और न ही उस पर गुस्सा हुए। उन्होंने बड़ी ही शांति और दया से अपने बाकी शिष्यों को वह भोजन खाने से मना कर दिया था। महात्मा बुद्ध ने कहा, 'मैंने यह भोजन कर लिया है और यह बहुत स्वादिष्ट है, लेकिन मुझे लगता है कि बाकी लोग इसे पचा नहीं पाएंगे। उन्होंने कुंडा को यह नहीं बताया था कि उसके द्वारा बनाया गया भोजन ठीक नहीं था। इसके बजाय, उन्होंने बचे हुए खाने को जमीन में दबवा दिया था। इस तरह बुद्ध ने बिना किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए कुंडा को ग़लत काम करने से भी रोक दिया था।
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जब गौतम बुद्ध भोजन ग्रहण करके आए, तो उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। उन्हें एहसास हो गया कि उनका अंतिम समय पास आ चुका है। उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाया और कुशीनगर ले चलने को कहा, जहां वह अपना अंतिम समय बिताना चाहते थे। कुशीनगर पहुंचकर गौतम बुद्ध ने दो विशाल शाल के पेड़ों के बीच एक जगह चुनी और अपनी दाहिनी करवट लेट गए, सिर अपने हाथ पर टिका लिया। उस समय महात्मा बुद्ध की उम्र 80 साल थी।
बुद्ध ने अपने शिष्यों को बुलाकर अंतिम संदेश दिया, 'अप्प दीपो भव' यानी अपने दीपक स्वयं बनो। बुद्ध के इस संदेश का मतलब था कि हर इंसान को अपनी राह खुद चुननी चाहिए। उसे किसी के कहने या बहकावे में आकर सही और ग़लत का फैसला नहीं करना चाहिए। इतना कहकर वह उसी मुद्रा में शांति के साथ परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए।
महात्मा बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा सिखाती है कि आत्मज्ञान जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है।
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हम सभी जानते हैं कि भगवान बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में शरीर त्यागा था। यहां एक महापरिनिर्वाण मंदिर है, जहाँ पर 6.1 मीटर लंबी लेटी हुई बुद्ध की मूर्ति है। इसके अलावा, अजंता की गुफा नंबर 26 में 5वीं शताब्दी की एक विशाल बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा है, जिसकी लंबाई 24 फीट है। विदेशों में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में स्थित वाट फो मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा स्थापित है, जिसकी लंबाई 46 मीटर है। वहीं, जापान के नानजोइन मंदिर में ब्रॉन्ज से बनी 41 मीटर लंबी बुद्ध की मूर्ति स्थापित है।
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