प्राइड मंथ के दौरान कम्युनिटी की दिक्कतों को जानने के लिए हरजिंदगी के खास लाइव सेशन में पात्रुनि चिदानंद शास्त्री और मेघना मेहरा ने कुछ ऐसी बातें शेयर की जिन्हें सुनकर शायद आप भी सोच में पड़ जाएं। पात्रुनि हैदराबाद की ड्रैग क्वीन और आर्टिस्ट हैं। वह बतौर प्रोडक्ट मैनेजर भी कार्यरत हैं। मेघना मेहरा ऑल इंडिया क्वीर असोसिएशन की फाउंडर और एक्टिविस्ट हैं। इन दोनों ने एक लाइव सेशन में अपनी जिंदगी के कई पहलुओं के बारे में बात की और एजुकेशन, फैमिली, बुली कल्चर और जेंडर स्टीरियोटाइप्स के बारे में बात की।
सोशल मीडिया या न्यूज के जरिए हो सकता है आपने कभी ड्रैग आर्ट के बारे में सुना हो। ऐसा भी हो सकता है कि आपने जेंडर स्टीरियोटाइप्स के बारे में बात करते हुए कहीं ड्रैग शो देखा हो, लेकिन क्या आपको पता है कि असल में इसके मायने क्या हैं?
क्या है ड्रैग शो?
पात्रुनि कहती हैं कि ड्रैग एक आर्ट फॉर्म ही है। यहां लोग उस जेंडर को आर्ट की तरह दिखाते हैं जो उन्हें बचपन से असाइन नहीं होता। ड्रैग जेंडर फ्लूइडिटी को दर्शाने वाला परफॉर्मेंस है जो कई अलग-अलग जेंडर आइडेंटिटी की बात करता है। पात्रुनि के मुताबिक ड्रैग का ओरिजन भले ही वेस्टर्न हो, लेकिन उसकी एक्सेप्टेंस भारत में भी बढ़ रही है। पात्रुनि के लिए ड्रैग अभिव्यक्ति का एक तरीका ही है। इस तरह से लोग अपनी जेंडर आइडेंटिटी को खुलकर स्टेज पर प्रेजेंट कर सकते हैं।
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भारत में ड्रैग का कल्चर और चैलेंज
लाइव सेशन के दौरान पात्रुनि ने बताया कि ड्रैग शो असल में बहुत ही अलग तरह से होते हैं और जिस तरह हर आर्ट फॉर्म के साथ होता है कई बार बहुत नेगेटिविटी भी आ जाती है। हां, पात्रुनि जब स्टेज पर हैं तब उन्हें किसी से फर्क नहीं पड़ता। ड्रैग बहुत ही एक्सप्रेसिव होता है और जेंडर स्टीरियोटाइप का एक्सट्रीम रूप उसके जरिए दिखाया जा सकता है। यह हाई क्लास मेकअप, चमकीले कपड़े, विग्स आदि से बहुत अलग होता है।
उन्हें लगता है कि धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। पात्रुनि के बातों-बातों में बताया कि उनका पहला ड्रैग शो एक क्लब में था और उन्होंने जितने लोगों की उम्मीद की थी उससे 3 गुना ज्यादा ऑडियंस वहां मौजूद थी। उन्हें लगता है कि कई बार लोग उस चीज से कतराते हैं जिसे वो समझ नहीं पाते। पात्रुनि को लगता है कि उनके आर्ट फॉर्म के जरिए वो नेगेटिविटी को पॉजिटिविटी में बदलने में सक्षम हैं।
पात्रुनि के हिसाब से ड्रैग क्वीन बनने के अलावा उनकी अपनी आइडेंटिटी है जिसे वो बखूबी जानते हैं। वह खुद को बाइसेक्सुअल नॉन बाइनरी पर्सन के रूप में देखते हैं। उनके हिसाब से जेंडर फ्लूइडिटी के कारण वह लोगों की बेहतर समझ रखते हैं। हाल ही में पात्रुनि पिता बने हैं। बतौर नॉन-बाइनरी पर्सन फैमिली प्लानिंग और पिता बनने की यात्रा उनके लिए उतनी आसान नहीं थी जितनी बाकियों के लिए होती है। अपनी फेमिनिटी और सामाजिक नियमों के हिसाब से पिता के रोल को निभाना थोड़ा मुश्किल है। पर वह अपने बच्चे के लिए एक ऐसा माहौल बनाना चाहते हैं जिसमें उसे वैसी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े जैसी पात्रुनि ने अपने बचपन में की थी।
समाज के स्टीरियोटाइप को तोड़ती हैं मेघना
मेघना और पात्रुनि दोनों ही कम्युनिटी का अहम हिस्सा हैं और जहां पात्रुनि अपनी कॉर्पोरेट लाइफ की उदासीनता को तोड़ते हुए क्रिएटिवीटी का ध्यान रखते हैं, वहीं मेघना अपनी ऑर्गेनाइजेशन AIQA (All India Queer Assosiation) के जरिए समाज की उन बंदिशों को तोड़ने की कोशिश करती हैं जो कम्युनिटी के लिए गलत हैं। मेघना का मानना है कि सिनेमा, न्यूज, टीवी से लेकर हमारी गली के नुक्कड़ तक कम्युनिटी को लेकर कुछ ऐसे स्टीरियोटाइप्स बना दिए गए हैं जिन्हें खत्म करने की जरूरत है।
उदाहरण के तौर पर मेंस्ट्रुएशन जैसी बेसिक शारीरिक गतिविधी को सिर्फ महिलाओं से जोड़ा जाता है, लेकिन ट्रांस वुमन, ट्रांस मैन और कम्युनिटी के कई अन्य सदस्यों को भी पीरियड्स होते हैं। ऐसे में उस तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता है? मेघना घरेलू हिंसा के खिलाफ भी लड़ती हैं और विक्टिम्स को शेल्टर होम दिलवाने में मदद करती हैं। उनकी पहल है कि समाज धीरे-धीरे ज्यादा अंडरस्टैंडिंग हो जाए।
कम्युनिटी की दिक्कतें यहां नहीं होती खत्म...
पात्रुनि और मेघना दोनों का ही मानना है कि कम्युनिटी की दिक्कतें कहीं भी खत्म नहीं होती हैं। कम्युनिटी में कई तरह की जेंडर आइडेंटिटी होती हैं और एक गे या लेस्बियन से किस तरह ट्रांस अलग हैं या कैसे थर्ड जेंडर को हम अलग मान सकते हैं इसकी जानकारी भी देनी चाहिए। लोग कम्युनिटी से सिर्फ तीन तरह के जेंडर समझते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जेंडर आइडेंटिटी सिर्फ यहां तक ही सीमित होती है।
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भारत में सेक्स और जेंडर एजुकेशन की है जरूरत
पात्रुनि और मेघना दोनों ने ही एजुकेशन के मामले में इसी बात पर फोकस किया। उनका कहना था कि सेक्स और जेंडर एजुकेशन से ही कई तरह के स्टीरियोटाइप्स टूट सकते हैं। मेघना मानती हैं कि जहां सेक्स एजुकेशन सिर्फ स्कूल में रिप्रोडक्शन के चैप्टर तक ही सीमित नहीं है। सेक्स एजुकेशन के बारे में डिटेल में समझाया जाना चाहिए। इसमें जेंडर एजुकेशन भी शामिल होनी चाहिए जिसके जरिए कम्युनिटी के लिए एक्सेप्टेंस ज्यादा बढ़े।
मेघना मानती हैं कि जब हमारी कल्चर में पुराणों में कम्युनिटी के लोगों का बहुत अहम रोल था, तो फिर हम कैसे उनकी पहचान को ही खत्म कर सकते हैं।
इस पूरी बात-चीत में कम्युनिटी से जुड़े लोगों के बारे में बहुत बातें हुईं और कई जरूरी पहलुओं को हाइलाइट किया गया। इसका पूरा वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
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