किसी भी पूजा-पाठ में कपूर का इस्तेमाल करना एक आम बात है। ऐसा कहा जाता है कि कपूर किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। पूजा के समय जब कपूर जलाया जाता है तो यह पूरी तरह से जल जाता है और इसकी राख भी नहीं बचती है। ऐसे में कई बार आपके मन में भी ख्याल जरूर आता होगा कि आखिर यह कपूर बनता कैसे है की इसे जलाने पर इसका निशान भी नहीं बचता है। कपूर के धुंए से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। जब भी कपूर का जिक्र होता है तो इसकी खुशबू से लेकर बनावट तक से जुड़े न जाने कितने सवाल मन में आते हैं। यही नहीं कपूर माचिस की तीली लगाते ही तेजी से जलने लगता है। किसी भी हवन में यदि अग्नि ठीक से प्रज्ज्वलित न हो रही हो तो एक टुकड़ा कपूर का डालने से हवन में अग्नि जलने लगती है। अगर आप भी इस बात की जानकारी लेना चाहती हैं कि आखिर यह कपूर बनता कैसे है और इसका रहस्य क्या है कि इसे जलाने के बाद इसकी राख भी नहीं बचती है।
बाजार में कई तरह के कपूर मिलते हैं जिनका इस्तेमाल आप पूजा-पाठ में करती हैं। वैसे आमतौर पर जिन कपूर का इस्तेमाल घरों में होता है वो तीन प्रकार के होते हैं पहला पक्व, दूसरा अपक्व और तीसरा भीमसेनी कपूर। आमतौर पर यही तीन कपूर होते हैं जिन्हें जलाने पर इनका धुआं उड़ जाता है और कोई भी अवशेष नहीं बचते हैं। कपूर मुख्य रूप से पेड़ से निकलता है और इसी प्राकृतिक कपूर को भीमसेनी कपूर कहा जाता है। प्राकृतिक कपूर वह होता है जो कपूर के पौधे से निकलता है।
आमतौर पर इस पेड़ की लंबाई 50 से 60 फीट तक होती है और इस पेड़ की पत्तियां गोल आकार की होती हैं। कपूर बनाने के लिए कपूर के पेड़ की छाल का इस्तेमाल किया जाता है। कपूर के पेड़ की छाल को सुखाकर ही कपूर तैयार किया जाता है।
कपूर बनाने के लिए किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि इसे बनाने के लिए प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है तो कपूर को बनाने के लिए सबसे पहले दालचीनी प्रजाति के एक पेड़ के लकड़ी को लिया जाता है। कपूर के पेड़ को उसकी खुशबू से ही पहचाना जा सकता है यह पौधा ज्यादातर भारत और जापान जैसे देशों में मिलता है। इस पेड़ की छाल को काटकर इसे अच्छी तरह से सुखाया जाता है और उसका पाउडर बनाया जाता है।
इन्हें काटकर अच्छे तरीके से धो लिया जाता है जिससे कि यह मुलायम हो जाते हैं। ऐसा करने के बाद इन छिलकों को अलग कर दिया जाता है और बची हुई लकड़ियों को मशीन की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है उसके बाद इन लकड़ियों के टुकड़ों को एक कंटेनर में डालकर गर्म किया जाता है। जिससे इनमें धुआं निकलता है और इन कंटेनर में एक पाइप कनेक्ट होता है। जिससे कि इसमें मौजूद सारा लिक्विड बाहर निकल जाता है फिर मशीन की सहायता से और भी अच्छे तरीके से निकाला जाता है और इसे पाउडर बनाया जाता है। इस पाउडर को मशीन में डाला जाता है और जैसे ही इस मशीन को चलाया जाता है उससे कपूर छोटे-छोटे टुकड़ों में तैयार होकर निकलने लगता है। इन कपूर के टुकड़ों को बाद में पैक करके बाजार में बेचा जाता है।
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कपूर को जलाने के बाद राख न बचने के पीछे की वजह उसके रासायनिक गुणों और संरचना में है। कपूर सब्लिमेटेड पदार्थ है, यानी यह ठोस से सीधे गैस में बदल जाता है और बीच में यह द्रव रूप नहीं लेता है। जब कपूर को जलाया जाता है, तो इसकी पूरी मात्रा वाष्पित होकर हवा में फैल जाती है और इसके जलने के साथ पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है। इसी वजह से कपूर जलने के बाद कोई अवशेष या राख शेष नहीं रहती है।
कपूर बनाने की प्रक्रिया काफी दिलचस्प है और इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं कि इसे जलाने पर उसकी राख क्यों नहीं बचती है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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