संध्या अपनी ही धुन में खोई हुई झरने के पास घूम रही थी कि अतुल ने उसका हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींच लिया। ऐसा लगा मानो गले लगा रहा हो। संध्या ने खुद को छुड़वाने की कोशिश की, लेकिन तब तक वह अतुल के बहुत करीब आ चुकी थी। अतुल ने उसे शांत रहने का इशारा किया और उसे पकड़े हुए ही आगे बढ़ गया। संध्या कुछ बोलती इससे पहले ही अतुल बोल पड़ा, 'बिना देखे कहां चलती जा रही हो, जान प्यारी नहीं है क्या?' अतुल को गुस्सा होते देख संध्या ने पीछे देखा, तो एक सांप था। अतुल ने संध्या की जान बचाई थी, संध्या ने तो एक पल में ना जाने क्या-क्या सोच लिया था। वह अतुल को थप्पड़ मारते-मारते रह गई।
इस इंसान ने संध्या को नया जीवन दिया था। तीनों ने झरने के पास थोड़ा सा समय बिताया और संध्या ने मुंह धोकर अपने बाल खोल लिए। सूरज की धूप जैसे ही उसके बालों पर पड़ रही थी, वैसे ही अतुल को लग रहा था कि संध्या से खूबसूरत कोई है ही नहीं। संध्या भी खुलकर सांस ले पा रही थी। इस झरने का ठंडा पानी उसके जीवन के घावों पर मानों मरहम का काम कर रहा हो। संध्या ने कुछ देर रुककर दोबारा चलने को कहा। अब वह लड़की शायद झरने पर ही छूट चुकी थी जो उदास रहती थी। संध्या अब अपने ट्रक के पास जा रही थी और उसे लग रहा था कि अब बाकी की यात्रा ही उसकी जीवन यात्रा है।
संध्या और अतुल एक दूसरे को कनखियों से देख रहे थे और ऐसा करते-करते अब छोटू ने भी देख ही लिया था। 'वैसे भाई जी... कल ही घर जाने की क्या जरूरत है। हम सामान डिलिवर कर दें, तब वापसी में हमारे साथ आ जाना। हम छोड़ देंगे...' छोटू ने अतुल को कहा। अतुल ने ना में सिर हिला दिया। 'मेरा एक बहुत जरूरी काम है छोटू... उसे नहीं छोड़ सकता।' अतुल ने इतना कहा और संध्या ने भी इसे मान लिया। उसके मन में कोई दुख नहीं था। उसे पता था कि अतुल को जाना ही है।
संध्या ने मान लिया और एक बार फिर ब्रेक में पेंटिंग बनाने लगी। उसने ऐसा करते-करते तीन पेंटिंग्स पूरी कर ली थीं। यह सफर उसे बहुत कुछ सिखा रहा था। आखिर वह दिन आ गया और संध्या ने राजस्थान एंटर कर लिया और ट्रक भी अपने रास्ते चलते-चलते अतुल के घर के पास तक पहुंच गया। संध्या चाहती थी कि अतुल और रुके, लेकिन वह उसे रोकना भी नहीं चाहती थी। छोटू ने भी कोशिश की, लेकिन नाकाम हो गया।
अतुल उतरा और ट्रक के पीछे से अपना सामान लेने चला गया। वापस एक बार संध्या की झलक देखने आया और चला गया। संध्या को लगा जैसे कुछ खालीपन हो गया हो। अतुल ने छोटू को पहले ही इस यात्रा के पैसे दे दिए थे और संध्या से जाते-जाते बाय भी नहीं बोला। अपने दिल की बातें संध्या ने ही शेयर की थीं अतुल के साथ, लेकिन जाते-जाते इतनी बेरुखी... उसे अच्छी नहीं लगी। संध्या ने अपना रास्ता नाप लिया। इस ट्रक में पिछले साढ़े-तीन दिन में जितनी बातें हो रही थीं, वो शांत हो गई थीं। पर संध्या ने इसे अपनी बात समझकर ही आगे बढ़ना बेहतर समझा।
रास्ते में दोनों फिर एक जगह रुके। टोल नाके के पास पुलिस कोई चेकिंग कर रही थी। संध्या का ट्रेक भी चेकिंग के लिए रोक लिया गया। लड़की को ट्रक चलाते देख पता नहीं पुलिस वालों को क्या हुआ। "मैडम ट्रक चुराकर भागी हो क्या? बड़ी हिम्मतवाली हो, ऐसे कैसे आ गईं...' एक अफसर ने कहा। 'आजकल लड़कियां कुछ भी करने लगी हैं, जरा भी फिक्र नहीं अपनी सुरक्षा की। घर पर रहने की जगह हाईवे घूम रही हैं...' दूसरे ने कहा। 'ये ट्रक आगे नहीं जाएगा, वहां जाकर बैठ जाइए।' पहले अफसर ने कहा और रोक दिया। संध्या को पता नहीं कहां से हिम्मत आ गई, 'सर, पहले ये बताइए कि आपने ये ट्रक रोका क्यों है?' उसने कहा और अपना फोन ऑन करने का इशारा छोटू को कर दिया।
'हमारी मर्जी, ऐसे कैसे बात कर रही है,' एक अफसर ने कहा। 'सर आप फेसबुक पर लाइव हैं, अब बताएं कि ट्रक क्यों रोका है? क्या दिक्कत है? पेपर तो पूरे हैं, परमिट भी है, मेरे पास लाइसेंस भी है, फिर क्या हो गया? सिर्फ इसलिए कि ट्रक एक लड़की चला रही है, आपने उसे रोक लिया। ऐसा तो नहीं हो सकता।' संध्या ने पूरे जोश में बोला। 'अरे चेकिंग तो पूरी करेंगे...' अफसर ने वीडियो बनता देख बात संभालने की कोशिश की। "पिछले दो घंटे से आपने रोक रखा है, ऐसी कौन सी चेकिंग है जो अभी पूरी ही नहीं हो रही? आप मुझे बताएं क्यों हमें परेशान किया जा रहा है। सर ट्रक चलने वाला ड्राइवर ही होता है, वो भले ही लड़का हो या लड़की।' संध्या की आवाज सुनकर आस-पास के लोग भी आ गए।
पुलिस ने दबाव बनता देख ट्रक को पास होने की इजाजत दे दी। तब तक संध्या का यह वीडियो फेसबुक पर लाइव जा चुका था। उसने अपना फोन देखा और ये क्या... इतने सारे कमेंट्स, इतने सारे लोग संध्या की जाबाजी की तारीफ कर रहे हैं। संध्या को पता भी नहीं था कि पुलिस वालों को दो बातें बोलना लोगों को इतना पसंद आ जाएगा। असल में यहां बात थी अपने हक के लिए खड़े होने की। संध्या की बातें सुनकर लोग प्रेरित हो रहे थे।
वो नौकरी जो संध्या EMI के लिए करती है, उसे लेकर लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। संध्या ने आगे बढ़कर अपना रास्ता पूरा किया और खुशी बढ़ती चली गई। यह यात्रा उसे बहुत कुछ सिखा गई थी। संध्या के लिए अपनी जिंदगी के मायने सिर्फ चार दिन में ही बदल गए थे। रात को सामान डिलिवर किया और संध्या फिर एक होटल में रुक गई। उसकी आंखों में नींद थी और मन में खुशी कि अपने लिए बोल पाई। इतना कर रही थी कि उसका फोन बजा।
'हैलो..' संध्या ने कहा। सामने से आवाज आई.. 'मैं अतुल...'
आखिर क्यों फोन किया था अतुल ने संध्या को? क्या हुआ जब संध्या का वीडियो वायरल हो गया, क्या हुआ संध्या के साथ पढ़ें कहानी के अंतिम भाग, EMI वाली नौकरी - पार्ट 5 में।
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