woman trucker dangerous road experience suspense thriller story in hindi part 2

    ट्रक ड्राइवर संध्या को रास्ते में एक अजनबी मिला, रात को बारिश के कारण उन्होंने एक जगह रुकने की सोची, लेकिन...

    Shruti Dixit

    संध्या के लिए यह रास्ता थोड़ा और कठिन हो चला था। लगातार कई घंटों से वो ट्रक चला रही थी, लेकिन ट्रैफिक जाम ने उसकी यात्रा पर अंकुश लगा दिया था। 2 घंटे हो चले थे और ट्रक की रफ्तार ऐसी थी मानो वह रेंग रहा हो। ट्रक चले जा रहा था और संध्या को तो बस एक ही चीज चाहिए थी, अपने जीवन के खालीपन का इलाज और इस ईएमआई वाली नौकरी से राहत। अतुल और छोटू अपनी-अपनी बातें किए जा रहे थे। संध्या शांत मन से ट्रक चला रही थी। रात ढल चुकी थी और ट्रैफिक की परेशानी ने आखिरकार उनका रास्ता छोड़ दिया था।

    अतुल काफी बातूनी था। इतनी देर में सब कुछ बता दिया कि वह मुंबई में काम करता है, राजस्थान में रहता है, उसे घूमने का शौक है, उसे खाने में क्या पसंद है, फलाना-ढिमका। संध्या को अब थकान लग रही थी। किसी जगह रुक कर थोड़ा आराम करना था। पास ही एक छोटा सा होटल था। वहां रात गुजारने का फैसला कर लिया। वैसे संध्या ज्यादातर रात में ड्राइविंग नहीं करती थी, लेकिन इतने लंबे रास्ते ने तो और भी उसकी हालत पस्त कर दी थी। कमरा एक ही खाली था। आखिर संध्या दो लड़कों के साथ ऐसे कैसे रह लेती, 'मैं ट्रक मे सो जाती हूं, तुम दोनों यहां रह लो,' उसने कहा और आगे चलने ही वाली थी कि अतुल ने उसे रोक लिया। 'आप यहां चली जाएं, हम दोनों ट्रक में रुक जाएंगे। आपका आराम करना ज्यादा जरूरी है।' अतुल ने कहा तो संध्या को अच्छा लग गया। ये चंचल मन भी बहुत अजीब होता है। संध्या को इतनी छोटी सी बातें भी अपने लिए सुनने को नहीं मिलती थीं। संध्या की आंखों में आंसू आ गए। अपनी खीज छुपाने के लिए उसने पलट कर बस हां में सिर हिला दिया।woman trucker dangerous road experience suspense thriller story

    अतुल ने देख तो लिया था, लेकिन कुछ कहा नहीं। चुप चाप छोटू के साथ बाहर चला गया। आज संध्या बहुत सोच में थी। पिछले तीन सालों में उसकी जिंदगी क्या से क्या हो गई थी। थकान में ना जाने कब आंख लग गई और अचानक संध्या को लगा कि कोई दरवाजे पर है। बाहर बहुत जोरों की बारिश शुरू हो गई थी। संध्या ने धीरे से पूछा कौन? आवाज आई, 'मैं अतुल...'। संध्या ने दरवाजा खोला तो देखा अतुल पूरी तरह से भीगा हुआ खड़ा था और पीछे छोटा भी ठंड से कांप रहा था। ट्रक थोड़ी दूर पर शेड वाली पार्किंग में पार्क था और बारिश इतनी तेज हो रही थी कि दोनों जा ही नहीं पाए। ओले भी पड़ने लगे थे और अब ट्रक तक पहुंचना सही नहीं था। दोनों की हालत देखकर संध्या को दया आ गई और संध्या ने दोनों को ही अंदर कर लिया। अब नींद कहां आने वाली थी। किसी तरह से दोनों ने अपने कपड़े बदले और तीनों चुप-चाप बैठ गए।

    थोड़ी देर में छोटू को नींद आ गई और संध्या भी उनींदी हो रही थी। 'आप रो क्यों रही थीं,' ब़ड़ा बेबाक था अतुल, ऐसे ही कुछ भी पूछ लेता था। संध्या का सिर्फ एक ही जवाब आया, 'बस ऐसे ही।' इसके बाद अतुल को लगा कि उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए। अतुल ने फिर भी एक बात कह दी, 'क्या आप मुझे राजस्थान तक ले चलेंगी? मैं पैसे भी दूंगा... बस से जाने से अच्छा है आप लोगों के साथ चलूं, एक्सपीरियंस हो जाएगा।' उसने कहा और संध्या ने ना में सिर हिला दिया। पर पैसों की जरूरत तो थी उसे, अगर किसी की मदद मिल जाए, तो दिक्कत क्या है। संध्या सोच में पड़ गई और फिर उसने अतुल को हां कर दी।

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    संध्या से अतुल ने एक और सवाल पूछा, 'आपको ट्रक चलाना किसने सिखाया?' संध्या ने अतुल की तरफ देखा और फिर आंखों में आंसू आ गए। 'मेरे पिता जी ने, वो भी ट्रक चलाते थे।' संध्या ने बोला और फफक कर रो पड़ी। इतने दिनों बाद उसके मुंह पर पिता जी का नाम आया था। अतुल ने भांप लिया था कि संध्या को इससे दुख हो रहा है। उसने बस कहा, 'आपके पिता जी बहुत ही समझदार थे। आप भी बहुत हिम्मतवाली हैं।' इतना कहकर वह पलट गया।

    'हिम्मतवाली नहीं आवारा हूं... घर पर बोझ हूं,' इतने दिनों से जो संध्या सुन रही थी वह आखिर अतुल के सामने निकल ही गया। 'दुनिया को हर वो लड़की बोझ लगती है संध्या जी जो खुद से आगे बढ़कर कुछ भी करती है।' अतुल ने कहा। यह बात इतनी आसानी से कह दी थी उसने। सच ही तो है, दुनिया को हर वो लड़की बोझ लगती है, जिसमें हिम्मत होती है कुछ कर गुजरने की। रात भर अतुल और संध्या बात करते रहे। संध्या से बात करने वाला कोई नहीं था और ना जाने उसने अतुल को इतनी बातें कैसे बता दीं। पिता का जाना, घर की हालत, बुआ का कोसना, भाई की जिम्मेदारी और सबसे ज्यादा परेशानी होती है उसे मां की चुप्पी से। मां का कुछ ना बोलना संध्या को इतना परेशान कर जाता है कि वह कुछ नहीं कर पाती है।

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    अतुल तो सुबह से ही अपने बारे में बता रहा था, लेकिन उसने एक बात छुपाई थी। उसके भी पिता नहीं थे। बचपन से ही उसे उसकी मां ने पाला था। स्ट्रॉन्ग मां का बेटा जिसे पता था कि लड़कियां हर दिन कितनी लड़ाइयां लड़ती हैं। खुद से, परिवार से, समाज से और अपनों से। संध्या की बातें अतुल को भी अच्छी लग रही थीं। संध्या ने अपनी ईएमआई के बारे में भी बताया, कैसे एक बंदिश ने उसे इस नौकरी से बांध रखा है।

    संध्या का मन हल्का हो गया था। सुबह तक दोनों शायद एक घंटा ही सोए होंगे, लेकिन संध्या तरोताजा महसूस कर रही थी। संध्या एक बार फिर से अपने काम में लग गई और अतुल और छोटू उसके साथ हो लिए। अब सफर थोड़ा अच्छा लग रहा था। आते-जाते लोग ट्रक ड्राइवर लड़की को देखकर कमेंट जरूर कर देते थे, लेकिन आज संध्या को उनकी नजर से बुरा नहीं लग रहा था। अतुल गाता और गुनगुनाता हुआ छोटू से बातें किए जा रहा था। इसलिए ही तो संध्या को और भी ज्यादा अच्छा लग रहा था। सफर सुहाना हो चला था और उसे लग रहा था कि इसी खुशी के लिए तो उसने ट्रक चलाना सीखा था।

    एक और स्टॉप आया, नया शहर और संध्या ने साइड में ट्रक लगा दिया। इस बार छोटू चाय लेने उतरा और अतुल को साथ चलने को कहने लगा। पर अतुल का मन नहीं कर रहा था। वह संध्या के साथ रहना चाहता था। 'मैं ट्रक में ही रहता हूं,' उसने कहा और संध्या ने राहत की सांस ली। 'ठीक है छोटू मैं तेरे साथ चलती हूं, मुझे भी थोड़ा चलना फिरना है।' संध्या ने कहा। अतुल उसका मुंह देखता रह गया। संध्या और छोटू चले गए। छोटू चाय का ऑर्डर देकर खटिया पर बैठ गया और संध्या चाय लेकर अतुल के पास आ गई। 'ये लो तुम्हारी चाय...' उसने कहा और अतुल को सांस में सांस आई।

    'वैसे मैं बहुत बोर हो रहा था, अच्छा हुआ तुम आ गईं।' अतुल ने ऐसा कहकर अपनी खुशी छुपाने की कोशिश की। संध्या भी मुस्कुरा दी और दोनों शांति से चाय पीने लगे। 'मुझे पेंटिंग का बहुत शौक है, तुम्हें क्या है?' अतुल ने पूछा और चाय की एक चुस्की ली। 'पेंटिंग्स... आर्ट...' संध्या को अचानक याद आया कि वो खुद भी तो पेंटिंग करती है। सालों से उसने ब्रश नहीं उठाया और पता नहीं क्यों इस यात्रा के लिए वो पेंटिंग का सामान भी बांध लाई थी। ऐसा लग रहा था कि अतुल ने खुद ही संध्या को उससे मिलवाया है।

    संध्या ने अपना बैग टटोला और पेंटिंग का सामान निकाल लिया। ट्रक से नीचे उतरी और पेड़ के सहारे टेक लेकर बैठ गई। संध्या को ऐसा करते देख अतुल ने भी कुछ नहीं किया और छोटू के पास चला गया। संध्या ने अकेले बैठे हुए ना जाने कितने रंग उस कोरे कैनवस पर उतार दिए। कुछ देर में छोटू और अतुल आए तो अधूरी पेंटिंग को देख चौंक गए। वह अधूरी थी, लेकिन फिर भी इतनी खूबसूरत लग रही थी।

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    छोटू पीछे सामान चेक करने गया और अतुल ने पीछे मुड़कर संध्या से कहा, 'तुम बहुत खूबसूरत हो संध्या...' उसके ऐसा कहते ही संध्या चौंक गई। साधारण सी शक्ल सूरत वाली संध्या ने अपने बारे में ऐसा तो कभी नहीं सुना था। मैं और खूबसूरत... ऐसी सोच में संध्या ने ना जाने कितना समय बिता दिया। क्या वाकई अतुल को संध्या खूबसूरत लगती थी, क्या अतुल उसे पसंद करता था, क्या संध्या को यह पसंद आया था? जानें कहानी के अगले भाग- EMI वाली नौकरी- पार्ट 3 में।

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