रास्ता लंबा था और संध्या को अब अपने लिए एक साथ मिल गया था। सफर और भी सुहावना होने लगा था। अतुल और छोटू की बातें उसे भाने लगी थीं। संध्या ने इतने दिनों बाद पेंटिंग की थी और उसके लिए यही बहुत अच्छा था। पर गाहे-बगाहे उसकी नजरें अतुल की तरफ जा रही थीं। आखिर क्या था मतलब था उसका, खूबसूरत कैसे... संध्या को भी अतुल भाने लगा था। रास्ता चलता जा रहा था और गांव, शहर सब गुजरे जा रहे थे। आखिर संध्या के लिए यह कुछ नया था। हफ्ते भर की यात्रा का दूसरा दिन भी अब ढलने को था और आज संध्या में ना जाने कैसा जोश था। उसने रुकने का नाम ही नहीं लिया।
आखिरकार थक हारकर छोटू ने कहा, 'दीदी रुक जाओ... ऐसे थोड़ी होता है, चले ही जा रही हो।' तब उसे लगा कि ना जाने कितने घंटों से वो लगातार बिना बोले, अपनी ही धुन में चली जा रही है। संध्या रुकी और उसने एक बार फिर डूबते हुए सूरज को निहारा। खाली सड़क, दूर तक खेत, पास में एक छोटी सी चाय की गुमठी, दूर दिख रहे गांव के घर, ये सब इतने अच्छे लग रहे थे कि क्या बताया जाए। संध्या एक बार फिर से अपने रंग और कैनवस लेकर बैठ गई। अपनी पेंटिंग को पूरा करने के लिए।
संध्या के लिए ये यात्रा किसी सुहावने सपने की तरह बन गई थी और एक के बाद एक संध्या अपनी पेंटिंग्स में रंग उकेरती जा रही थी। उसे जब भी फुर्सत मिलती वह पेंटिंग करने लगती। अतुल और छोटू उसे देख-देखकर ही खुश हो रहे थे। छोटू ट्रक का सामान देख रहा था और अतुल फिर संध्या के पास आया, 'आज तो तुम फॉर्म में हो, बहुत ही खूबसूरत पेंटिंग बनाई है और दूसरी भी शुरू कर दी। मुझे नहीं पता था तुम आर्टिस्ट भी हो।' अतुल यात्रा की शुरुआत में संध्या को आप कहता था और अब देखो, तुम पर आ गया। बड़ा अपनापन होता है इस तुम शब्द में। ऐसा लगता है कि संध्या अतुल को लंबे अर्से से जानती है।
'मैंने कभी सोचा नहीं था कि दोबारा इसे उठाऊंगी। पर देखो, तुम्हारी वजह से मुझे ये मौका भी मिल गया।' संध्या ने कहा और अतुल को भी अच्छा लगा। ये क्या लगाव था दोनों के बीच जिसने एक दूसरे को खुश कर दिया था। संध्या की खुशियां एक ऐसी नौकरी से बंध गई थीं जिसमें EMI के आगे उसे कुछ भी दिखना बंद हो गया था, लेकिन नौकरी के साथ-साथ वह यह भी तो कर सकती थी। 'मैंने अपनी जिम्मेदारियों को ही अपने आस-पास लाकर खड़ा कर दिया था अतुल, मैं नहीं समझ पा रही हूं कि तुम्हारी एक बात ने मुझे वो कैसे समझा दिया।' संध्या ने अतुल से कहा और अतुल की खुशी उसकी आंखों से छलक आई।
'मैंने अपनी मां को जिंदगी भर काम करते देखा है संध्या, मैंने देखा है कि एक महिला के जीवन में क्या-क्या दिक्कतें आती हैं, तुम बोझ नहीं हो, जो इंसान अपनी जिम्मेदारियों को ठीक से निभा रहा है, वो भला बोझ कैसे हो सकता है। संध्या तुम्हें एक बात समझनी चाहिए, जब तक तुम खुद की इज्जत नहीं करोगी, कोई नहीं करेगा।' अतुल ने इतना कहा और संध्या के कंधे पर हाथ रख दिया। यह दोस्त का हाथ था, साथी का या फिर हमदर्द का, किसी को नहीं पता। बस संध्या को अच्छा लग रहा था।
संध्या ने रात काटने के लिए पास का एक शहर चुना। इस बार एक अच्छी जगह रुके थे तीनों। अतुल और छोटू एक कमरे में और संध्या अलग कमरे में। संध्या लगातार दो दिन से ट्रक चला रही थी, लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी। उसने फिर कैनवस उठाया और दो घंटे तक लगातार एक और पेंटिंग पूरी करने में लग गई। फिर जाने कब उसकी आंख लग गई और सुबह जब अतुल ने दरवाजा खटखटाया, तो संध्या ने उनींदी सी आंखों से खोला। अतुल संध्या को देखकर इतनी जोर से हंस पड़ा मानो किसी कॉमेडी शो में आया हो।
दरअसल, संध्या पेंटिंग करते-करते अपने रंगों के ऊपर ही सो गई थी। उसके चेहरे पर हर तरफ रंग लगे हुए थे। रंगों की बहार ऐसी लग रही थी मानो किसी चित्रकार ने खुद ही संध्या के चेहरे को पेंट कर दिया हो। संध्या ने अपना चेहरा देखा और खुद भी हंस पड़ी। अब तीनों को तैयार होकर फिर निकलना था। महाराष्ट्र बॉर्डर क्रॉस हो चुका था, अब मध्य प्रदेश आ गया था। जिसने मध्य प्रदेश में हर थोड़ी दूर पर सीनरी बदल जाती है। संध्या पहली बार खुलकर इतनी जगहों को देख रही थी और अपने कैनवस पर उतार रही थी।
इस बार तीनों ने फैसला किया कि अपना खाना खुद बनाएंगे, गैस स्टोव तो ट्रक में था ही, बस पास वाले गांव से सारी चीजें तैयार करके ले आए। दाल-चावल और आलू की सब्जी के साथ सूखा प्याज ऐसा लग रहा था मानो जन्नत। तीनों अब दोस्त बन गए थे। आगे जाकर जिंदगी में क्या होने वाला है इसकी फिक्र नहीं थी, लेकिन अभी क्या हो रहा है, उसका जिक्र जरूर था। संध्या एक बार फिर चल दी सफर की ओर, बातों ही बातों में छोटू ने अतुल से पूछ लिया, 'भइया, कल तक राजस्थान बॉर्डर लग जाएगा। इसके बाद आपका घर कहां है?' अतुल जवाब दे उससे पहले ही संध्या सोच में पड़ गई। वाकई इस सफर का अंत नजदीक आ रहा था। जब से संध्या आई है, घर से मां के मैसेज के अलावा कुछ नहीं आया। मैसेज में भी लिखा था, 'बुआ बहुत गुस्सा हो रही हैं, तुम्हें आना चाहिए।' इतना लिखने के बाद संध्या से यह भी नहीं पूछा गया कि वह कैसी है, रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई?
संध्या एक बार फिर उदास महसूस करने लगी, इतने में अतुल ने कहा, 'चलो आज पिकनिक मनाते हैं।' तीनों ने थोड़ा सा डीरूट लिया और पास ही के एक झरने से कुछ दूर पर ट्रक रोक दिया। तीनों पगडंडी से होते हुए झरने की तरफ जाने लगे। संध्या ने इसे देखा और खुश हो गई। ऐसा लगा मानो बचपन वापस आ गया हो। ये रास्ता संध्या के लिए आसान नहीं था, जिस लड़की को लड़कों के साथ घूमने से मना कर दिया गया था, वह दो लड़कों को लेकर इतने दिनों तक घूम रही थी, लेकिन उसे अब बेचारा महसूस नहीं हो रहा था। उसे तो अब खुशी हो रही थी।
झरने के पास अतुल ने संध्या का हाथ पकड़ लिया, संध्या ने एकदम से झटका तो अतुल ने उसे अपनी तरफ खींच लिया... ऐसा क्यों किया अतुल ने। क्या थे उसके इरादे? जानने के लिए पढ़ें कहानी के अगले भाग- EMI वाली नौकरी पार्ट 4
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