प्रयागराज महाकुंभ में साधु-संतों का आलौकिक जमावड़ा लगा हुआ है। अलग-अलग मठों से आये साधु-संत विशेष पूजा-साधना कर रहे हैं। इन्हीं मठों में से एक है किन्नरों का मठ जिसने महाकुंभ में भाग लिया है। आपने अब तक नागा साधुओं और अघोरियों की पूजा से जुड़े कई रहस्य सुने होंगे, लेकिन आज हम आपको ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर यह बताने वाले हैं कि महाकुंभ में किन्नर किस की पूजा करते हैं और क्या हैं किन्नर मठ से जुड़े रहस्य।
महाकुंभ में किन्नर किस की साधना करते हैं?
इस बार महाकुंभ में किन्नर मठ भी शामिल हुआ है। साल 2015 में 13 अक्टूबर को किन्नर अखाड़े का गठन हुआ था। भगवान शिव की भूमि और 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल के उज्जैन की आध्यात्म वाटिका में किन्नर अखाड़े का निर्माण किया गया था।
किन्नर अखाड़े के इष्ट देव भगवान शिव और माता पार्वती के युगल स्वरूप यानी कि अर्धनारीश्वर हैं। वहीं, इस अखाड़े की इष्ट देवी बहुचरामाता हैं। महाकुंभ के दैरान किन्नर अखाड़े में अघोर काली पूजा की जाती है और मां काली की आराधना का विधान है।
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अघोर काली पूजा तांत्रिक साधना का ही एक भाग है। इस अघोर काली पूजा के दौरान पृथ्वी पर ही मिट्टी से एक बड़ा हवन कुंड बनाया जाता है। इसके बाद उस हवन कुंड के आसपास कपाल रखे जाते हैं। कपालों की माला से ही हवन कुंड को सजाया जाता है।
फिर हवन आरंभ करने के साथ ही, डमरू नाद किया जाता है। जोरों-शोरों से डमरू बजा-बजाकर भगवान अर्धनारीश्वर की पूजा की जाती है।
मां काली की साधना होती है और किन्नरों द्वारा उनकी इष्ट देवी माता बहुचरा का भी पूर्ण श्रद्धा से ध्यान किया जाता है।
किन्नरों द्वारा इस अघोर काली पूजा में तीनों ही देवी-देवताओं के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। विशेष बात यह है कि मंत्रोच्चार इस विधि से होता है कि सुनने वाला व्यक्ति थर्रा जाए। असल में मंत्र जपते समय किन्नरों द्वारा एक विशेष ध्वनि निकाली जाती है।
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इस ध्वनि को सुनने से शरीर में कम्पन होना शुरू हो जाती है। इस कंपन को किन्नर सरलता से सहन कर लेते हैं, लेकिन साधारण मनुष्य के लिए यह डरावना हो सकता है। किन्नरों की यह साधना तंत्र विद्या, आध्यात्मिक शक्ति और आस्था का अनूठे समागम है।
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image credit: herzindagi
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