भारत के पूर्वी तट पर स्थित ओडिशा राज्य का पुरी शहर में हर साल एक भव्य और अद्भुत त्योहार रथयात्रा मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ की यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का एक संगम है। पुरी में धूमधाम से मनाया जाने वला यह त्योहार भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित है। लाखों श्रद्धालु इस अद्वितीय पर्व का हिस्सा बनने के लिए देश-विदेश से पुरी पहुंचते हैं। यह पर्व सिर्फ भव्य रथों की यात्रा भर ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहन धार्मिक मान्यताएं और सदियों पुरानी परंपराएं भी छिपी हुई हैं।
भगवान जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़े कई लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल आते हैं। यात्रा में इस्तेमाल होने वाले रथ क्या नाम है, यह कैसे तैयार किया जाता है, रथयात्रा की तैयारी कब से शुरू होती है, यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को कहां ले जाया जाता है आदि कई सवालों के जवाब आज हम आपको इसी आर्टिकल में बताने वाले हैं। इन सवालों के जवाब जानकर आपको इस पावन पर्व को और भी गहराई से समझने में मदद मिल सकती है।
रथयात्रा, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित एक भव्य पर्व है, जिसे ओडिशा के पुरी में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को सेलिब्रेट किया जाता है, जो कि इस साल 27 जून को है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। इससे संबंधित महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब के साथ कुछ जरूरी तथ्य भी नीचे दिए गए हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन देवी सुभद्रा और उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र या बलराम को समर्पित है।
रथयात्रा में कुल तीन रथ होते हैं, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए होते हैं।
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' है। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है और इसमें 16 पहिए होते हैं।
भगवान बलभद्र के रथ का नाम 'तालध्वज' और सुभद्रा के रथ का नाम 'देवदलन' है। बालभद्र का रथ 45 फीट ऊंचा होता है और इसमें 14 पहिए होते हैं। वहीं, सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है और इसमें 12 पहिए होते हैं।
रथयात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है।
प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा को कार महोत्सव या रथ उत्सव के नाम से भी जाना जाता है।
45 फीट का सबसे बड़ा रथ भगवान जगन्नाथ का होता है, जो कि लाल और पीले रंग का होता है।
रथयात्रा का महत्व भगवान जगन्नाथ के भक्तों को उनके दर्शन कराने और उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद करने से जुड़ा है।
रथयात्रा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है।
रथयात्रा के दौरान छेरा पहरा (महाराजा द्वारा रथों की सफाई), रथ प्रतिष्था (रथों की प्राण प्रतिष्ठा) और अन्य कई अनुष्ठान किए जाते हैं।
रथों को भक्त खींचते हैं और इस दौरान कोई भेदभाव नहीं होता है।
रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी गुंडिचा के घर जाते हैं, जिसे गुंडिचा मंदिर भी कहा जाता है।
रथों का निर्माण बसंत पंचमी पर शुरू होता है और अक्षय तृतीया पर शुरू होता है।
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रथयात्रा समाप्त होने के बाद रथों को विघटित कर दिया जाता है और उनकी लकड़ियों का उपयोग मंदिर के कार्यों में किया जाता है।
तीनों देवता अपनी मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर को छोड़ कर 'बाहुदा यात्रा' (वापसी यात्रा) में शामिल होते हैं।
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