किसी भी इंसान की तरफ से कोई भी आपत्तिजनक कदम विक्टिम के दिमाग में जिंदगी भर का असर डाल सकता है। ऑफिस में किसी भी तरह का हैरेसमेंट आपकी पर्सनल जिंदगी को भी बर्बाद कर सकता है। यह इंटेंशनल भी हो सकता है और अनइंटेंशनल भी। सेक्सुअल हैरेसमेंट टर्म की जब भी बात होती है तब कई मामलों में कंफ्यूजन दिखता है। उदाहरण के तौर पर किसी का पीठ पर हाथ रखना नॉर्मल दोस्ती का रूप है या फिर एक तरह का सेक्सुअल हैरेसमेंट?
अप्रैल को Sexual Assault Awareness Month माना जाता है। इसी कड़ी में हरजिंदगी अपनी सिलसिलेवार स्टोरीज के जरिए आप तक सही जानकारी पहुंचाने की कोशिश कर रही है। हमने ऑफिस में होने वाले सेक्सुअल हैरेसमेंट और Posh एक्ट के बारे में जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट जूही अरोड़ा से बात की। उन्होंने हमें विस्तार से इस एक्ट के बारे में बताया।
सबसे पहला सवाल तो यही है कि आखिर पॉश क्या है? कई वर्किंग वुमन इसके बारे में जानकारी नहीं रखती हैं। भारत में 2013 में काम करने की जगह पर महिलाओं के साथ होने वाले सेक्सुअल हैरेसमेंट को रोकने के लिए एक एक्ट बनाया गया। इस एक्ट का नाम था POSH (Prevention of Sexual Harassment At Workplace), इस एक्ट के तहत महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी तरह के सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत की जा सकती है।
जूही के मुताबिक कानूनन सभी कार्यस्थलों को सेक्सुअल हैरेसमेंट पॉलिसीज, ऐसे मामलों की रोकथाम, उसका प्रोसेस और सर्विस के नियम आदि सब कुछ डिफाइन करना जरूरी है। सेक्सुअल हैरेसमेंट से जुड़े नियमों के बारे में कर्मचारियों को भी पता होना चाहिए। वर्कप्लेस में कैसा व्यवहार करना है और कैसा नहीं इस तरह की लिस्ट सभी के लिए डिस्प्ले भी होनी चाहिए। कर्मचारी लगातार इन नियमों को पढ़ें और उन्हें फॉलो करें यह सुनिश्चित करना कंपनी की जिम्मेदारी है।
इसका जवाब है, हां। कानूनी तौर पर पॉश कमेटी का गठन करना भी कंपनियों के लिए जरूरी है। इस कमेटी के मेंबर्स में कम से कम 50% महिलाएं होनी चाहिए। इस कमेटी का काम है फिजिकल कॉन्टैक्ट और पॉश के अंतर्गत आने वाली किसी भी शिकायत की समीक्षा करना और इससे जुड़े लोगों के खिलाफ नियमों के हिसाब से कार्रवाई करना।
इस एक्ट की जरूरत हमारे देश में बहुत ही ज्यादा है। नेशनल कमीशन फॉर वुमन की रिपोर्ट मानती है कि फीमेल कर्मचारियों के लिए ऑनलाइन हैरेसमेंट भी एक बड़ा इशू बनकर सामने आया है। लगभग 60% महिलाएं अपनी वर्कप्लेस में किसी ना किसी तरह का हैरेसमेंट झेलती हैं।
पॉश एक्ट की तरफ से सेक्सुअल हैरेसमेंट को एक बहुत ही तय ढंग से समझाया गया है। इसमें किसी भी तरह का अवांछित व्यवहार शामिल है। जैसे-
हालांकि, इस एक्ट के तहत भी सेक्सुअल हैरेसमेंट को स्थिति के हिसाब से परिभाषित किया जा सकता है। किसी के लिए पीठ पर हाथ फेरना दोस्ती की निशानी हो सकता है और किसी के लिए सेक्सुअल हैरेसमेंट। इसमें बहुत हद तक विक्टिम और आरोपी की रिलेशनशिप को देखा जाता है। ऐसा किसी भी तरह का इंटीमेशन जिससे विक्टिम को असहज महसूस हो और उसे फिजिकल कॉन्टैक्ट या सेक्सुअल एडवांस या कमेंट की तरह देखा जा सके, वो सेक्सुअल हैरेसमेंट के अंतर्गत आता है।
कार्यस्थल पर किसी भी तरह की ऑफेंसिव बात करना भी गलत है। पॉश एक्ट के तहत एक ही जेंडर के कर्मचारियों के खिलाफ भी शिकायत की जा सकती है। अन्य शब्दों में कहें, तो इस एक्ट के जरिए महिलाओं के खिलाफ भी शिकायत की जा सकती है।
पॉश 2013 के बाद कार्यस्थल पर सेक्सुअल हैरेसमेंट की शिकायत दर्ज करवाना ज्यादा आसान हो गया है। इस एक्ट के तहत 90 दिनों के अंदर शिकायत की इंक्वायरी पूरी होना जरूरी है। आप सीधे कार्यस्थल पर कमेटी को शिकायत कर सकती हैं या फिर आप पुलिस स्टेशन इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। अगर कमेटी को लगता है कि मामला बहुत गंभीर है तो कमेटी की तरफ से खुद शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।
इंटरनल कमेटी को इंक्वायरी पूरी होने के 10 दिन के अंदर कंपनी को अपनी रिपोर्ट भी देनी होती है। एक बार इंक्वायरी पूरी हो गई, तो भारतीय पीनल कोड के आधार पर सजा दी जाती है।
पॉश एक बहुत ही जरूरी स्टेप है जो यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कार्यस्थल पर महिलाएं सुरक्षित माहौल में काम कर सकें। हालांकि, लीगल प्रोटेक्शन के बाद भी हर तरह का हैरेसमेंट होता रहता है और कई बार महिलाएं इसकी शिकायत करने से भी घबराती हैं। इसे लेकर घबराने की जगह अपने लिए आवाज उठाना जरूरी है।
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