आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में वर्क-लाइफ बैलेंस एक पॉपुलर शब्द बन गया है, जो हर किसी की जुबां पर बना ही रहता है। जहां पर्सनल-प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करने की जद्दोजहद हर जगह चल रही है, वहीं यंग प्रोफेशनल्स ने रिटायरमेंट कॉन्सेप्ट को लेकर नया तरीका ढूंढ निकाला है। मिलेनियल्स और जेन जेड एम्प्लॉय अब माइक्रो-रिटायरमेंट की तरफ रुख कर रहे हैं। यह एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है, जिसमें कर्मचारी खुद को रिचार्ज करने, खुद की खोज करने और अपनी प्राथमकिताओं को पहचानने के लिए काम से कुछ महीनों या सालों का ब्रेक ले रहे हैं।
माइक्रो- रिटायरमेंट का मतलब है कि जब कोई कर्मचारी अपने करियर से कुछ महीनों या सालों के लिए ब्रेक लेता है। इसमें रोजाना की लाइफस्टाइल को दूर करते हुए छुट्टी पर जाना और कोई शौक पूरा करना शामिल हो सकता है। कुछ लोगों के लिए, मिनी रिटायरमेंट का मतलब होता है कि वे नौकरी से ब्रेक लेते हैं और अपने पर्सनल पैशन को फॉलो करते हैं।
आपको बता दें कि माइक्रो-रिटायरमेंट प्लान्ड होता है, इसलिए लोग पहले से सेविंग्स करते हैं या फ्लैक्सिबल वर्क अरेंजमेंट्स करके फाइनेंशियली तौर पर मजबूत होते हैं।
इसे भी पढ़ें - रिटायरमेंट के बाद भी इन फील्ड्स में बनाया जा सकता है शानदार करियर, जानिए
आजकल युवा कर्मचारी जॉब इनसिक्योरिटी, इकोनॉमिक प्रेशर और फास्ट-पेस्ड वर्क कल्चर की वजह से काफी स्ट्रेस का सामना कर रहे हैं। सर्वे से पता चला है कि जेन जेड ऑफिस में सबसे ज्यादा स्ट्रेस लेने वाली जेनरेशन है, जबकि मिलेनियल्स में बर्नआउट का रेट ज्यादा पाया गया। बर्नआउट का मतलब होता है कि जब ढेर सारा काम किसी कर्मचारी को सौंप दिया जाता है और उसे वह काम बहुत कम समय में करना पड़ता है, तो इसे बर्नआउट जोन कहते हैं।
माइक्रो-रिटायरमेंट, आपको प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने और लॉन्ग-टर्म थकावट को दूर करने का तरीका प्रदान करता है। कई लोग रिटायरमेंट की उम्र तक बिना रुके काम करने के बजाय, इस मॉडल को अपनाते हैं और उम्र के साथ-साथ अपने पैशन, ट्रैवलिंग एक्सपीरियंस और फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करने जैसे पलों को जीते हैं। हालांकि, यह बदलाव वर्क-लाइफ इन्टीग्रेशन के प्रति नजरिए में एक बड़े बदलाव को दर्शाता है।
प्लानिंग-
सफल माइक्रो-रिटायरमेंट के लिए फाइनेंशियल प्लानिंग करने की जरूरत होती है ताकि जब आप रिटायमेंट लें, तो आपके पास जीवन गुजारने के लिए पर्याप्त पैसा होना चाहिए।
फ्लैक्सिबल वर्क अरेंजमेंट्स-
अब कई कंपनियां सबैटिकल, रिमोट वर्क या फ्रीलांस के मौके प्रदान करती हैं, जिससे कर्मचारी अपने करियर को जोखिम में डाले बिना आराम कर सकता है।
क्लीयर गोल्स-
माइक्रो-रिटायरमेंट का इस्तेमाल अक्सर ट्रैवल करने, नई स्किल्स सीखने या बस आराम करने के लिए किया जाता है। जब आप कोई गोल सेट करते हैं, तो इस रिटायरमेंट का अधिकतम लाभ उठाने में मदद मिलती है।
इसे भी पढ़ें - क्या है बूमर्स, मिलेनियल, जेन Z और जेन X, जानें सभी जनरेशन के बारे में
वैसे तो माइक्रो-रिटायरमेंट एक अच्छा ब्रेक हो सकता है, लेकिन इसमें कुछ चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चिंता फाइनेंशियल स्टेबिलिटी है, क्योंकि माइक्रो-रिटायरमेंट लेने के लिए सेविंग्स और प्लानिंग की जरूरत होती है। इसके अलावा, सभी कंपनियां लंबे समय तक ब्रेक देने के पक्ष में नहीं होती हैं, ऐसे में कई बार कर्मचारियों को काम पर वापस लौटने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
आमतौर पर, माइक्रो-रिटायरमेंट के बाद जब आप जॉब में वापसी करते हैं, तो आपके पास नई स्किल्स होनी जरूरी है। अगर आप ब्रेक पर हैं, तो भी आपको अपने प्रोफेशनल नेटवर्क को बनाकर रखना जरूरी होता है। जब आप माइक्रो-रिटायमेंट लेने का सोच रहे हैं, तो आपको मासिक खर्चों में से 25-35% की कटौती शुरू कर देनी चाहिए।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit- freepik
यह विडियो भी देखें
Herzindagi video
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, [email protected] पर हमसे संपर्क करें।