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भारत में कहां है अनोखा सास-बहू का मंदिर? जानिए नाम के पीछे छिपी रोचक कहानी

आपने भारत में कई देवी-देवताओं के मंदिर हर गली और शहर में देखे होंगे। लेकिन, क्या आपने कभी सास-बहू मंदिर के बारे में सुना है? दरअसल यह मंदिर उदयपुर में है और इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है। क्या आप जानना चाहेंगे कि इस मंदिर का नाम ऐसा क्यों पड़ा? 
Editorial
Updated:- 2025-05-29, 22:08 IST

वैसे तो भारत की हर गली, हर शहर में आपको मंदिर मिल जाएंगे। कहीं आपको शिव जी का, तो कहीं हनुमान जी तो कहीं दुर्गा मां का मंदिर, तो मिल ही जाता होगा। लेकिन, क्या आपने कभी सास-बहू मंदिर के बारे में सुना है। इस मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में आता है कि इसकी पौराणिक कथा किसी सास-बहू से जुड़ी होगी, लेकिन असलियत में इसकी कहानी कुछ और ही है। यह मंदिर न तो किसी पारिवारिक कलेश का प्रतीक है और न ही यहां केवल देवियों की पूजा होती है। दरअसल, समय के साथ इस मंदिर का नाम सास-बहू पड़ा। 

सास-बहू मंदिर कहां पर स्थित है?

उदयपुर से करीब 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित एक छोटा-सा गांव नागदा है। इसी गांव में ही 1100 साल पुराना सास-बहू का मंदिर स्थित है। असल में इस मंदिर का असली नाम था सहस्त्रबाहु मंदिर यानी वह भगवान जिनकी हजार भुजाएं होती हैं यानी भगवान विष्णु। बाद में आम लोग इस नाम को बोल नहीं पाते थे, तो उन्होंने इसे धीरे-धीरे सास-बहू कहना शुरू कर दिया। यह मंदिर कोई साधारण नहीं है, बल्कि 10वीं शताब्दी में इसको स्थापित किया गया था। इस मंदिर के चारों तरफ जंगल, पहाड़ और हरियाली है। 

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कैसे पड़ा सास-बहू मंदिर का नाम? 

Interesting facts about Saas Bahu Temple

इस मंदिर का निर्माण 10वीं या 11वी शताब्दी की शुरुआत में हुआ था। जब उदयपुर के आसपास  कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल शासन करते थे। राजा महिपाल की रानी भगवान श्रीहरि विष्णु की परम भक्त थीं। उनकी आस्था और  श्रद्धा को देखते हुए राजा ने विष्णु जी का सुंदर मंदिर बनवाया था। इस मंदिर का नाम रखा था सहस्त्रबाहु जिसका मतलब होता है 1000 भुजाओं वाला। बाद में, राजा के बेटे की शादी एक ऐसी महिला से हुई, जो शिवभक्त थी। बहू की आस्था का सम्मान करते हुए इसी मंदिर परिसर में शिव जी को समर्पित मंदिर बनवाया गया। इस तरह एक ही जगह पर दो मंदिर बने हुए हैं। समय के साथ आम बोलचाल में इस मंदिर को सास-बहू कहा जाने लगा। यह नाम आज भी लोगों को उस दौर की पारिवारिक सोच और धार्मिक सहिष्णुता की याद दिलाता है।

सास-बहू मंदिर का डिजायन

सास-बहू का मंदिर भारत की मारू-गुर्जर स्थापत्य शैली का बेहतरीन उदाहरण पेश करता है। यह शैली बारीक नक्काशी, खूबसूरत खंभों और गुंबददार छतों के लिए जानी जाती है। इस मंदिर में दोनों मुख्य मंदिर एक ही चबूतरे पर पूर्व दिशा की तरफ बने हैं। 

सास मंदिर

भगवान विष्णु का मंदिर बड़ा मंदिर है और इसके चारों तरफ 10 छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। इस मंदिर की दीवारों और छतों पर नक्काशी की गई है। इसमें रामायण, महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों के चित्र, फूलों की डिजायन और ज्यामितीय आकृतियों को उकेरा गया है। 

बहू मंदिर 

Saas Bahu Temple history Udaipur,

भगवान शिव को समर्पित मंदिर थोड़ा छोटा है और इसकी बनावट बहुत खास है। इसके चारों ओर 5 छोटे मंदिर हैं। इस मंदिर की छत अष्टकोणीय बनी हुई है, जिस पर 9 स्त्रियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां देवियों के अलग-अलग स्वरूप की हैं। सास-बहू मंदिर में स्थित सभी मंदिरों की दीवार, खंभे और छत कुछ न कुछ कहानी कहते हैं और इनमें उस दौर के लोगों की भावनाओं, विश्वास, श्रद्धा और कला का भाव दिखाई देता है। 

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धार्मिक सहिष्णुता और पारिवारिक एकता का प्रतीक है यह मंदिर

यह मंदिर केवल अपनी शानदार वास्तुकला के लिए नहीं जाना जाता है, बल्कि यह धार्मिक दृष्टि से भी खास है। इस मंदिर में ही भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा साथ में होती है। यह मंदिर हमें यह सीख देता है कि एक परिवार में अगर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, तो भी उन्हें सम्मान और समझदारी के साथ संजोकर रखा जा सकता है। जिस तरह से राजा महिपाल ने रखा था क्योंकि उन्होंने अपनी पत्नी और बहू दोनों के ईष्ट देवों के मंदिर को एक ही जगह पर बनवाया था। 

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