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emotional story of family of a martyr in india pakistan conflict fiction

10 साल की उम्र में पिता के शहीद होने की खबर ने सोनम को तोड़ दिया था... हिंदुस्तान-पाकिस्तान की जंग की खबरों के बीच उसने एक ऐसा फैसला लिया जो

'पूरे देश में क्या मेरा ही परिवार है? कोई और नहीं? मैंने अपना बलिदान दे दिया, और नहीं सह सकती..' मां ने कहा। मां की चिंता सोनम और भइया दोनों ही समझते थे, उन्हें पता था कि मां बस उन्हें खोने से डर रही हैं।
Editorial
Updated:- 2025-05-09, 18:57 IST

'कश्मीर में मिलिटेंट्स के हमले में हमारे दो जवान शहीद... ' अखबार में इस तरह की खबरें पढ़कर सोनम की आंखें हमेशा नम हो जाती थीं। आखिर ऐसी ही तो एक खबर थी जो सोनम के पिता के बारे में आई थी। घर में मां और भाई दोनों थे। सोनम 10 साल की थी जब उसके पिता शहीद हुए थे। अखबारों के हिसाब से हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच अमन चल रहा था, लेकिन इस शांति के बीच एक रात घुसपैठियों ने उसके पिता को उससे दूर कर दिया था। आज 19 की होने के बाद भी सोनम उस रात को भूल नहीं पाई है, किसी शहीद की खबर उसके दिल के नासूर को ताजा कर देती है।

अपनी आंखों से आंसू पोंछने के बाद सोनम उठी और अपने रोजमर्रा के काम में लग गई। रोजाना 8-10 घंटे की पढ़ाई करती है वो, UPSC की तैयारी आसान थोड़ी है। पिता के गुजरने के बाद मां ने भाई को आर्मी में जाने से रोक दिया। आज 9 साल गुजरने के बाद भी मां रोजाना किसी ना किसी तरह से पिता को याद करती थीं। सोनम के घर का एक नियम था, भले ही कुछ भी हो जाए, तीनों नाश्ता साथ ही करते थे। भाई एक प्राइवेट कंपनी में था और देर रात तक ऑफिस में रहता था, सोनम दिन भर पढ़ाई करके जल्दी सो जाती थी और मां... वो तो अपने ही खयालों में रहती थीं, हर रोज ना जाने क्या लिखा करती थीं अपनी डायरी में।

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आज नाश्ते की टेबल पर सोनम शांत थी, बार-बार उसके दिमाग में घूम रहा था, 'दो जवान शहीद...'।

'सोनम क्या हुआ? क्या तबीयत ठीक नहीं? इतनी उदास क्यों लग रही हो...' मां ने पूछा। सोनम ने कुछ नहीं कहा, बस डबडबाई आंखों से पिता की तस्वीर की तरफ देख लिया। मां और भाई दोनों समझ गए कि आज भी भारत का कोई बेटा तिरंगे में लिपटा हुआ आएगा। 'तुझे पता है, तेरे पापा जब भी पोस्टिंग से घर वापस आते थे और तुम दोनों को बॉर्डर की कहानियां सुनाते थे, तब मैं क्या करती थी?' मां ने आंसू पोंछते हुए कहा... 'मैं उन कहानियों में छुपे खतरे को सुनती थी। तुम्हारे पिता बहादुर थे और जब भी किसी गोलीबारी की बात करते थे, तो मेरा कलेजा कांप उठता था।' मां की आवाज कांपने लगी थी।

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यही तो होता है फौजियों के परिवार के साथ। खुशियों के पल के पीछे भी अपनों की जिंदगी की कामना छुपी रहती है। 'सोनम का एग्जाम नजदीक आ रहा है, अभी ये सब बातें मत सोचो, पढ़ाई में ध्यान दो', भइया ने कहा और अपना मुंह फेर लिया। आज सभी को पिता जी की बहुत याद आ रही थी।

सोनम अपने कमरे में जाकर पढ़ने लगी। उसे सिर्फ पिता के जाने का दुख नहीं था, पिछले कुछ दिनों से एक और चिंता उसे सता रही थी। सोनम असल में UPSC - NDA (नेशनल डिफेंस अकादमी) की तैयारी कर रही थी। घर पर ये बात नहीं बताई थी। जब मां ने भाई को फौज में जाने से मना किया था, तब सोनम उनसे खूब लड़ी थी, लेकिन मां के आंसुओं के आगे जीत नहीं पाई थी।

वो अपनी उधेड़बुन में ही लगी थी कि टीवी पर खबर आई, पाकिस्तान की तरफ से एक और हमला हुआ है। कई बेगुनाह मारे गए हैं। मीडिया में सनसनीखेज तरीके से हिंदुस्तान-पाकिस्तान की खबरें आने लगीं। सोशल मीडिया पर तरह-तरह के वीडियो सामने आने लगे, शाम होते-होते सोनम का हाल ऐसा था मानो आज उसका दिमाग फट जाएगा। लोग सोशल मीडिया पर जंग की बात कर रहे थे, टीवी पर न्यूज एंकर दहाड़ें मारकर पाकिस्तान को ललकार रहा था। मां का बीपी पहले ही बढ़ चुका था।

जो लोग जंग की बात करते हैं, वो ये भूल जाते हैं कि फौजियों के परिवार पर क्या बीतती है। उन्हें ये नहीं पता होता कि कोई भी फौजी अपने देश के लिए जान देने को तैयार होता है, लेकिन उसका परिवार कभी जंग नहीं चाहता है। आज मां सोनम के कमरे में आईं और उसे आर्मी की किताबें पढ़ते हुए देख लिया।

'ये क्या पढ़ रही है तू? ये क्या कर रही है? क्या तुझे लगता है कि तू मुझसे कुछ छुपा लेगी और मुझे पता नहीं चलेगा? देख रही है क्या हो रहा है टीवी पर, लोग गिद्ध की तरह मंडरा रहे हैं सिर पर, तू आर्मी का एग्जाम दे रही है?' मां ने बिना रुके बहुत कुछ बोल दिया और सोनम के सामने चक्कर खाकर गिर गईं। आनन-फानन में भाई को बुलाया गया।

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हॉस्पिटल में मां को होश आया तो वो सोनम से बात करने को भी तैयार नहीं थीं। 'इससे कह दे कि झूठ बोलना बंद करे, इसके पिता ने वादा किया था कि कभी नहीं छोड़ेंगे और वो छोड़ गए, आज इसमें हिम्मत आ गई है कि ये भी आर्मी का एग्जाम दे रही है,' मां ने भाई से कहा।

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'मां, मैं पिता जी के कदमों पर चलना चाहती हूं, मैं जानती हूं कि आपको बस अपने बच्चों की फिक्र है, लेकिन क्या कभी सोचा है कि पिता जी क्या चाहते थे? बचपन में वो हमें बॉर्डर की कहानियां क्यों सुनाया करते थे? वो अपने बच्चों को भी तैयार कर रहे थे मां,' सोनम ने रोते हुए कहा।

'पूरे देश में क्या मेरा ही परिवार है? कोई और नहीं? मैंने अपना बलिदान दे दिया, और नहीं सह सकती..' मां ने कहा। मां की चिंता सोनम और भइया दोनों ही समझते थे, उन्हें पता था कि मां बस उन्हें खोने से डर रही हैं।

'मां, पूरे देश का मुझे नहीं पता, लेकिन अपने पिता के बारे में जानती हूं। आप हमें खोने से डर रही हैं, लेकिन जरा सोचिए जिस तरह से आप डर रही हैं, अगर उसी तरह से हर मां डरने लगी तो? देश के बारे में सोचना कभी गलत नहीं हो सकता, ये मैंने पिता जी से सीखा था। आपने भइया को मना किया, तब मैं छोटी थी और समझ नहीं सकती थी, लेकिन अब मैं ये जानती हूं कि अगर मैंने कुछ और किया, तो कभी खुश नहीं रह पाऊंगी, जिंदगी भर यही सोचती रह जाऊंगी कि मैंने अपने पिता को निराश किया।' सोनम आज मां के सामने अपने दिल की बात कह रही थी।

'मां, मेरे लिए फौजी बनना सिर्फ एक सपना नहीं, कर्तव्य है। क्या आप जानती हैं कि मैं शहीदों की खबरें पढ़कर क्या सोचती हूं? मैं सोचती हूं कि अगर मुझे मौका मिलता, तो शायद मैं किसी एक की जान बचा लेती।' सोनम ने कहा।

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'हां, बेटे को जाने नहीं दिया, बेटी को जाने दूं। लड़की है, तुझे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी है हमने, फूलों की तरह पाला है। कैसे रह पाओगी वहां?' मां ने पूछा।

'मां, आज तक कभी नहीं किया, तो आज बेटे और बेटी में फर्क क्यों कर रही हो? यूनिफॉर्म जो है ना, वो फौजी की होती है। मैं भी फौजी ही बनना चाहती हूं।' सोनम ने कहा।

'कभी सोचा है कि जब तू ड्यूटी के लिए जाएगी, तो मेरे दिल पर क्या बीतेगी?' मां ने कहा।

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'आपको फिक्र होगी, लेकिन आपको अपनी बेटी पर फक्र भी होगा। जब वर्दी पहन कर मैं ड्यूटी पर जाऊंगी, तब आप अपनी बेटी के साथ-साथ एक फौजी को भी देखेंगी। तब आप मेरी मां ही नहीं, एक शहीद की पत्नी और एक फौजी की मां रहेंगी। आप भी जानती हैं कि हर दिन हमारी सेना के जवान शहीद होते हैं। उनके बारे में सोचिए, पिता जी के बारे में सोचिए और अपने दिल से पूछिए... क्या आप मेरे इस फैसले का समर्थन नहीं करेंगी?' सोनम की बात का कोई जवाब भाई या मां के पास नहीं था।

'जा सोनम, मां का खयाल मैं रखूंगा... जो मैं नहीं कर पाया वो तू कर। देश का ही नहीं, मेरा, मां का और पिता जी का नाम रौशन कर। जा सोनम पिता जी का सपना पूरा कर। जब तू वर्दी पहन कर आएगी, तो मुझे लगेगा कि मैं भी सफल हुआ।' भाई ने सोनम के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

उस दिन के बाद से मां ने सोनम से ज्यादा बात नहीं की, लेकिन उसकी पढ़ाई पर कभी शक भी नहीं किया। सोनम ने जी तोड़ मेहनत की, पहले एग्जाम क्लियर किया, फिर फिजिकल टेस्ट दिया और आखिर में इंटरव्यू भी हो गया। जब पोस्टिंग आई तो सोनम की वर्दी का नाप लिया गया।

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किसी ने नहीं सोचा था कि सोनम ये कर दिखाएगी, लेकिन जिस दिन वर्दी पहन कर वो मां के सामने आई, मां ने उसे सैल्यूट किया। आज उनकी बेटी फौजी बन गई थी।

सोनम को लेने जीप भी आ गई और वो चल दी अपनी ड्यूटी करने। देश की बेटी, वर्दी पहन कर, गई देश की सेवा करने।

समाप्त...

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