इंटरनेशनल वूमन्स डे के मौके पर अपनी सेहत के बारे में सोचना सबसे ज्यादा अहम है। चूंकि इंटरनेशनल वूमन्स डे और वर्ल्ड किडनी डे एक ही दिन मनाए जाते हैं, ऐसे में आपके लिए यह जानना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है कि किडनी की बीमारियों से आप किस तरह अपना बचाव कर सकती हैं क्योंकि स्वस्थ किडनी के साथ ही आप अपने सभी काम एक्टिवली करने में समर्थ होंगी। इस बारे में हमने सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर अमरेंद्र पाठक से बात की तब उन्होंने हमें बताया कि....
ऑटोइम्यून डिजीज के कारण युवावस्था में ही किडनी की बीमारी से मौत की खबरें सामने आती हैं। ऑटोइम्यून डिजीज के कारण होने वाली बीमारी ल्यूपस नेफ्रोलॉजी या किडनी इन्फेक्शन विशेष रूप से महिलाओं को प्रभावित करते हैं। इस बीमारी में बॉडी का इम्यून सिस्टम अपने ही सेल्स और ऑर्गन्स को अटैक करता है। इस बीमारी से बचाव के लिए यूरिया क्रेटिन नियमित रूप से चेक कराएं। यह चेकअप 2-3 साल में अवश्य करा लें।
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क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) यूं तो एक वैश्विक समस्या है, जिससे किडनी फेल होने और असमय मौत का अंदेशा रहता है, लेकिन इससे महिलाओं के प्रभावित होने की आशंका ज्यादा रहती है। कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि महिलाओं में सीकेडी होने की आशंका 14 फीसदी होती है जबकि पुरुषों में यह 12 फीसदी ही होती है, हालांकि महिलाओं के डायलसिस पर होने की संख्या कम है।
एक आंकड़े के अनुसार दुनियाभर में करीब 19.5 करोड़ महिलाएं सीकेडी से प्रभावित हैं और वर्तमान में बीमारियों से होने वाली मौतों का यह आठवां सबसे बड़ा कारण है। इससे हर साल तकरीबन 6,00,000 महिलाओं की मौत हो रही है।
अमर गांधी फाउंडेशन के ट्रस्टी डॉक्टर भूपेंद्र गांधी ने कहा, "क्रोनिक किडनी डिजीज एक 'साइलेट किलर' है; आमतौर पर इसके कोई महत्वपूर्ण लक्षण तब तक दिखाई नहीं देते जब तक कि यह later stages पर नहीं पहुंच जाता है, जहां रोगी के लिए इलाज के कई विकल्प नहीं बच पाते हैं।"
दिलचस्प बात यह है कि, World Kidney Day International Women’s Day के साथ ओवरलैप हो रहा है, इसलिए किडनी रोग के प्रसार के प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका को ध्यान में रखा गया हैं!
मुंबई की किडनी फाउंडेशन के सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट और चेयरमैन डॉक्टर उमेश खन्ना कहते हैं, कि 'विशेष रूप से महिलाओं को 'चटपटा' खाना खाने से पसंद होता है और इस craving के चलते वह ज्यादा नमक खा लेती हैं। उन्हें निरीक्षण और निगरानी की जरूरत है, साथ ही अपने परिवार की नमक की कम खपता सुनिश्चित करनी चाहिए।
अमर गांधी फाउंडेशन के वरिष्ठ Nephrologist और Treasurer डॉक्टर भावेश वोरा कहते हैं, "जो महिलाएं डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापे या दिल संबंधी बीमारी से ग्रस्त हैं उनमें किडनी की बीमारी का अधिक खतरा हैं। क्रोनिक किडनी डिजीज की जानकारी शुरुआत में करने के लिए किडनी हेल्थ की नियमित जांच के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है।
नेफ्रोटॉक्सिक दवाइयां लेने से भी किडनी पर बुरा असर पड़ सकता है जैसे कॉम्बिफ्लेम, ब्रूफेन, वोवरॉन आदि। इन्हें एनएसएआईडी कहा जाता है। एमबीबीएस डॉक्टर के परामर्श के बगैर ये दवाएं हरगिज न लें।
एनीक्रेसिन, नेप्रोक्सेन और अन्य एंटीबायोटिक दवाओं के आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल से भी किडनी की बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। एसेटोमिनोफेन और एस्पिरिन के ज्यादा सेवन से भी किडनी प्रभावित हो सकती है।
महिलाओं में यह समस्या आमतौर पर देखने को नहीं मिलती लेकिन कुछ मामले में किडनी प्रभावित होने से प्रोस्टेट कैंसर का खतरा हो सकता है । इसमें ग्लेंड से पेशाब बाहर नहीं आ पाता, जिससे किडनी का काम बाधित होता है। किडनी फूलने लगती हैं और समय रहते इलाज न होने पर पूरी तरह खराब हो सकती है। इससे बचाव के लिए डिजिटल रेक्टम एक्जाम (एक तरह का टेस्ट) करा सकते हैं। प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटिजेन(पीएसए) जैसे टेस्ट के माध्यम से भी प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाया जा सकता है।
महिलाओं का यूरेथ्रा छोटा होता है और इसमें इन्फेक्शन बाहर से अंदर आने का खतरा ज्यादा रहता है, जबकि पुरुषों में इस तरह के संक्रमण की कम होती है क्योंकि उनका यूरेथ्रा बाहर की ओर होता है। पिलेनोफ्राइटिस एक गंभीर इन्फेक्शन है, जिससे एक या दोनों किडनी प्रभावित हो सकती हैं। इस तरह का इन्फेक्शन अगर गर्भावस्था के दौरान हो तो जोखिम और भी ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे में महिलाओं को यूरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन के लिए नियमित रूप से चेकअप कराने की जरूरत है।
सीकेडी से प्रेगनेंसी के दौरान मुश्किलें बढ़ने का खतरा रहता है। कई महिलाओं में इसकी वजह से गर्भधारण की समस्या भी देखने को मिलती है। वहीं सीकेडी से प्रभावित प्रेग्नेंट मदर और उसके बच्चे दोनों की हेल्थ पर इसका विपरीत असर पड़ सकता है। इस कारण हाइपरटेंशन डिसऑर्ड्स और समय से पहले बच्चा होने की आशंका हो सकती है। ऐसे में गर्भावस्था के दौरान सीकेडी के बारे में जागरूक रहना बहुत आवश्यक है।
प्रेग्नेंसी की जटिलता में भी किडनी की बीमारी होने की आशंका बढ़ती है। युवा महिलाओं में एक्यूट किडनी इंजरी होने की तीन सबसे बड़ी वजहें हैं -प्री-क्लेंपसिया, सेप्टिक अबॉर्शन(प्लेसेंटा का संक्रमण) और पोस्ट पार्टम हैम्रेज (डिलीवरी के बाद ज्यादा ब्लीडिंग होना)। इनसे पीड़ित होने पर नियमित इलाज बहुत महत्वपूर्ण है। प्रेगनेंट महिलाएं यूरीन टेस्ट करा सकती हैं, जिसमें प्रोटीनयूरिया के माध्यम से किडनी की समस्या का पता लगाया जाता है।
इसलिए इससे बचना है बेहद जरूरी।
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