ब्रेस्ट फीडिंग प्रकृति का सबसे अच्छा उपहार है। जहां एक और शिशु को पहले आहार के रूप में सर्वश्रेष्ठ भोजन प्राप्त होता है, वही मां और बच्चे में भावनात्मक रिश्ता भी बनता है। मां का दूध नवजात शिशु के कोमल अंगों तथा पाचन क्रिया के अनुरूप प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। इसमें बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं। इन्हें शिशु आसानी से हजम कर लेता है। मां के दूध में मौजूद प्रोटीन और फैट अन्य दूध की तुलना में भी आसानी से पच जाता है। इससे शिशु के पेट में गैस, कब्ज, दस्त आदि होने या दूध उलटने की संभावना बहुत कम होती है। यह बात तो हम सभी जानती हैं। लेकिन क्या आप जानती हैं कि ब्रेस्ट फीडिंग कराना मां की सेहत के लिए भी अच्छा होता है।
हार्ट डिजीज का खतरा होता है कम
शोधकर्ताओं का दावा है कि ब्रेस्ट फीडिंग कराने के कारण महिलाओं में गुड कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ता है और सर्कुलेटिंग फैट भी कम होता है। इससे कैरोटिड आर्टरीज की मोटाई भी कम होती है। यह गले और सिर पर ऑक्सीजन से युक्त ब्लड को पहुंचाती है। साथ ही इसके बड़े व्यास को हार्ट स्ट्रोक से जोड़कर देखा जाता है। शोध के प्रमुख यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग के डॉक्टर मलामा कॉन्टोऑरियस कहते हैं कि ब्रेस्ट फीडिंग मां के लिए भी फायदेमंद है। ब्रेस्टिफीडिंग कराने से ऑक्सीटॉक्सिन हार्मोन उत्सर्जित होता है, जिससे इन महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी कम रहता है।
ब्रेस्ट फीडिंग कराने से दर्द में भी कमी
वहीं अन्य अध्ययन के अनुसार ऐसी महिलाएं जो सी-सेक्शन के बाद कम से कम दो महीने तक ब्रेस्ट फीडिंग कराती है, उनको सी-सेक्शन के बाद के दर्द को तीन प्रतिशत तक कम झेलना पड़ता है। 23 प्रतिशत महिलाएं, जिन्होंने दो महीने से कम समय तक ब्रेस्ट फीडिंग कराई, उन्होंने सी-सेक्शन की जगह दर्द की शिकायत की। वहीं जिन्होंने दो महीने से ज्याद ब्रेस्ट फीडिंग की उनमें से आठ प्रतिशत ने ही इसकी शिकायत की।
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महिलाओं पर किया गया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने 678 महिलाओं पर अध्य्यन किया। 1998 से 2004 तक विभिन्न महिलाओं का प्रेग्नेंसी के दौरान मिशिगन के 52 क्लिनिकों से इलाज कराया गया था। इसके बाद इन महिलाओं की हेल्थ का 7 से 15 साल तक अध्ययन किया गया। इसमें महिलाओं से पूछा गया कि उन्होंने कितने समय तक बच्चों को ब्रेस्ट फीडिंग कराई। इन महिलाओं के ब्लड प्रेशर कोलेस्ट्रॉल लेवल और सर्कुलेटिंग फैट लेवल का भी समय-समय पर मापा गया।
साथ ही कैरोटिड आर्टरीज के व्यास और मोटाई पर भी नजर रखी गई। इसमें से 157 ने कभी भी ब्रेस्टीफीडि़ग नहीं कराई थी,वहीं 284 ने 6 महीने से कम और 133 ने कम से कम 6 महीने ब्रेस्टेफीडि़ग कराई थी। साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड प्रेशर लेवल के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बांटा गया। इस अध्ययन को अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के 67 एनुअल सांइटिफिक सेशन में पेश किया गया।
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