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Jal Tarpan Vidhi for Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष के दौरान पितरों को जल अर्पित करने का क्या है सही तरीका? जानें

Jal Tarpan Vidhi for Pitru Paksha 2025: पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तिथि तक चलता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों को जल देना बहुत जरूरी है। ऐसे में आइये जानते हैं कि कब और कैसे अर्पित करना चाहिए पितरों को जल।
Editorial
Updated:- 2025-09-04, 12:48 IST

Jal Tarpan Vidhi for Pitru Paksha 2025: इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर, रविवार से होगी और इसका समापन 21 सितंबर, रविवार को होगा। यह 16 दिनों की अवधि होती है, जब लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तिथि तक चलता है। इन 16 दिनों में, परिवार के सदस्य अपने पितरों की मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका पिंडदान और तर्पण करते हैं जिसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा, ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी ने बताया कि पितृपक्ष के दौरान पितरों को जल देना बहुत जरूरी है। ऐसे में आइये जानते हैं कि कब और कैसे अर्पित करना चाहिए पितरों को जल।

पितृपक्ष में तिल और कुशा का क्या है महत्व (Kusha and Til Significance In Pitru Paksha) 

पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करते समय तिल और कुशा का प्रयोग बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। तिल को शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से हुई है, इसलिए इन्हें बहुत पवित्र माना जाता है। श्राद्ध और तर्पण में तिल का उपयोग करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और पितरों तक हमारा प्रसाद आसानी से पहुँचता है। यह भी माना जाता है कि तिल पितरों को बहुत प्रिय होते हैं और उन्हें अर्पित करने से वे संतुष्ट होते हैं।

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कुशा एक तरह की घास होती है जिसे पवित्र माना जाता है। इसका उपयोग पूजा-पाठ में किया जाता है, खासकर पितृपक्ष में। यह माना जाता है कि जब हम तर्पण करते समय कुशा का उपयोग करते हैं, तो पितर उस पर आकर बैठते हैं और जल ग्रहण करते हैं। कुशा का उपयोग श्राद्ध में बैठने और जल देने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि यह शुद्धता को बनाए रखता है। कुशा का उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि हमारी पूजा का फल हमारे पितरों को बिना किसी बाधा के मिले। इस प्रकार, तिल और कुशा दोनों ही पितृपक्ष के अनुष्ठान को सफल बनाने के लिए बेहद जरूरी हैं।

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इस विधि से दें पितरों को जल (Give Water to Ancestors)

पितृपक्ष में पितरों को जल देने की एक विशेष विधि होती है। इसमें अंगूठे में कुशा से जल देने का महत्व है। इससे पितरों को श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनके आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति के सभी दुख दूर हो सकती हैं।

आपको बता दें, जल देने से पहले जो जरूरी सामग्री है, उसे लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद हाथ में जल, कुशा, अक्षत, फूल और काला तिल लेकर होथ जोड़कर पितरों का ध्यान जरूर करें।

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उन्हें जल ग्रहण करने के लिए आमंत्रित जरूर करें। इसके बाद पितरों को को जल जरूर दें। पितरों को जल देते समय जल को जमीन पर 5-7 या फिर 11 बार अंजलि से गिराएं। इस बात का ध्यान रखें कि पितरों को जल देते समय मन, कर्म और वाणी को शुद्ध रखें। 

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पितरों को जल देने के दौरान करें इस मंत्र का जाप ( Chant these mantra to give Water to Ancestors)

पितृपक्ष में पितरों को जल देने के दौरान ध्यान एकत्रित कर गोत्र का नाम जरूर लें। इसी के साथ अस्मत्पितामह यानि कि (पितामह का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र का उच्चारण करने के दौरान 3 बार जल दें। 

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FAQ
पितृ दोष से मुक्ति के लिए कौन सा पाठ करना चाहिए? 
पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए।
पितरों को क्या चीज पसंद होती है?
पितरों के लिए भोजन बनाते समय उनकी प्रिय चीजें जैसे दूध, दही, घी और शहद का उपयोग जरूर करना चाहिए।
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