
हिंदू पंचांग में अमावस्या को वह तिथि माना गया है जब चंद्रमा पृथ्वी से अदृश्य हो जाता है, और इस कारण मन एवं प्रकृति दोनों में एक विशेष स्तिथि और अंतर्मुखता उत्पन्न होती है। भारत में यह तिथि सिर्फ पूजा-पाठ या व्रत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे आत्मचिंतन, नकारात्मक ऊर्जा के शमन और पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर भी माना जाता है। अमावस्या, आध्यात्मिक साधना, पितृ तर्पण और मनोवैज्ञानिक शुद्धिकरण का अत्यंत प्रभावशाली समय होता है। अमावस्या 2026 के पूरे वर्ष में आने वाली 12 अमावस्या तिथियां जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों को प्रभावित करती हैं। कई परंपराओं में माना जाता है कि इस दिन की गयी साधना शीघ्र फल देती है, इसलिए लोग तीर्थस्नान, दान-पुण्य, ध्यान और मंत्रोच्चार के माध्यम से ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देते हैं। यह तिथि आत्मशक्ति बढ़ाने, मन की अशांति कम करने और पारिवारिक आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। पंडित उमेश चंद्र पंत, संस्थापक पवित्र ज्योतिष के अनुसार धर्मग्रंथों में इसका विशेष संबंध पितरों से बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन पितृलोक का प्रभाव बढ़ता है और अपने पूर्वजों के लिए तर्पण, दीपदान व भोजन अर्पण करने से घर-परिवार में शांति और सौभाग्य बढ़ता है। यदि व्यक्ति अमावस्या के दिन नियमपूर्वक ध्यान और उपवास करे, तो मानसिक बोझ कम होता है और सकारात्मक विचारों का विकास होता है।
अमावस्या तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब यह सोमवार, शनिवार या मंगलवार को आती है। सोमवार की अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है, मंगलवार की अमावस्या को भौमवती अमावस्या कहा जाता है, शनिवार की अमावस्या को शनेश्चरी अमावस्या (शनि अमावस्या) कहा जाता है। जिसके विषय में माना जाता है कि इस दिन की गयी पूजा-साधना विशेष सौभाग्य और दीर्घ दांपत्य जीवन प्रदान करती है।
यूं तो साल 2026 में 13 महीने पड़ रहे हैं क्योंकि इस साल अधिक मास का योग बन रहा है, लेकिन अमावस्या तिथियां 12 ही रहेंगी क्योंकि एक अमावस्या खाली जा रही है।
| माह | तिथि | दिन | अमावस्या का नाम |
| जनवरी | 18 जनवरी | रविवार | माघ अमावस्या (मौनी अमावस्या) |
| फरवरी | 17 फरवरी | मंगलवार | फाल्गुन अमावस्या (भौमवती अमावस्या) |
| मार्च | 19 मार्च | गुरुवार | चैत्र अमावस्या (हिन्दू नववर्ष से पहले की अमावस्या) |
| अप्रैल | 17 अप्रैल | शुक्रवार | वैशाख अमावस्या |
| मई | 16 मई | शनिवार | ज्येष्ठ अमावस्या (शनि अमावस्या) |
| जून | 15 जून | सोमवार | ज्येष्ठ अधिक अमावस्या (सोमवती अमावस्या) |
| जुलाई | 14 जुलाई | मंगलवार | आषाढ़ अमावस्या |
| अगस्त | 12 अगस्त | बुधवार | श्रावण अमावस्या (हरियाली अमावस्या) |
| सितंबर | 11 सितंबर | शुक्रवार | भाद्रपद अमावस्या |
| अक्टूबर | 10 अक्टूबर | शनिवार | अश्विन अमावस्या (सर्व पितृ अमावस्या) |
| नवंबर | 09 नवंबर | सोमवार | कार्तिक अमावस्या (दीपावली) |
| दिसंबर | 08 दिसंबर | मंगलवार | मार्गशीर्ष अमावस्या |
मौनी अमावस्या (18 जनवरी): माघ माह की अमावस्या को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन मौन रहकर स्नान और दान करने का विधान है।
शनि अमावस्या (16 मई और 10 अक्टूबर): जब अमावस्या शनिवार को पड़ती है, तो इसे शनि अमावस्या कहते हैं। यह शनि देव की पूजा और साढ़ेसाती या ढैय्या के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए बहुत शुभ मानी जाती है।
सोमवती अमावस्या (15 जून और 09 नवंबर): जब अमावस्या सोमवार को पड़ती है, तो इसे सोमवती अमावस्या कहते हैं। इस दिन विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं।
सर्व पितृ अमावस्या (10 अक्टूबर): यह आश्विन मास की अमावस्या होती है, जिसे पितृ पक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। इस दिन सभी अज्ञात और ज्ञात पितरों का श्राद्ध किया जाता है।
दीपावली (09 नवंबर): कार्तिक माह की अमावस्या के दिन महालक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है।
अमावस्या में उपवास और पूजा इसलिए विशेष माने जाते हैं क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा की ऊर्जाएँ शांत होती हैं और मन स्वभाविक रूप से अंतर्मुखी होता है। उपवास करने से शरीर हल्का महसूस करता है, जिससे साधना, ध्यान और मंत्रोच्चार का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि अमावस्या के दिन की गई पूजा विशेष कारणों से शीघ्र फल देती है, क्योंकि यह समय पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। उपवास मन को अनुशासित करता है और व्यक्ति को मानसिक स्पष्टता तथा आध्यात्मिक संतुलन प्रदान करता है।
अमावस्या में पितृ तर्पण अत्यंत शुभ माना गया है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन पितृलोक का प्रभाव बढ़ता है और पूर्वजों की आत्माएँ अपने वंशजों को आशीर्वाद देने के लिए अधिक सक्रिय रहती हैं। तर्पण, दीपदान और भोजन अर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सौभाग्य, स्वास्थ्य और शांति बढ़ती है। कई धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि अमावस्या पर किया गया तर्पण पितृ दोष को भी कम करता है और जीवन की अड़चनें दूर होती हैं। भावपूर्ण श्रद्धा से किए गए तर्पण का फल पूरे परिवार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
अमावस्या में मंत्र-जप, ध्यान, योग, उपवास, दान-पुण्य, पितृ तर्पण, दीपदान और सहायता कार्य अत्यंत शुभ माने गए हैं। इस दिन घर की सफाई और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने के उपाय भी सकारात्मक परिणाम देते हैं। पवित्र नदी में स्नान करना या घर पर गंगाजल से स्नान करना शुभ माना जाता है। भोजन में सात्विकता बनाए रखना और मन को शांत रखना चाहिए। इस दिन अनावश्यक क्रोध, विवाद और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। जो लोग आध्यात्मिकता अपनाना चाहते हैं, उनके लिए यह तिथि नए पथ की शुरुआत का श्रेष्ठ समय कही गई है।
अमावस्या में कार्तिक अमावस्या को सबसे अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि इसी दिन दीपावली का पर्व आता है, जो धन, सौभाग्य, संपन्नता और नए आरंभ का प्रतीक है। इसके अलावा माघ अमावस्या, श्रावण अमावस्या और आश्विन अमावस्या भी अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती हैं। इन तिथियों पर किया गया स्नान, दान और पितृ तर्पण विशेष फल देता है। सोमवती अमावस्या, जब अमावस्या सोमवार को आती है, दांपत्य सुख और दीर्घायु के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है। इन सभी अमावस्याओं में आध्यात्मिक ऊर्जा अधिक प्रबल रहती है, जिससे साधना और पूजा का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
अमावस्या का सबसे महत्वपूर्ण उपाय पितरों को प्रसन्न करना है। इस दिन पवित्र नदियों, तालाबों या घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों का तर्पण (जल अर्पित करना) करना चाहिए।

तर्पण के जल में काले तिल, कच्चा दूध और फूल मिलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अलावा, गाय के गोबर के उपले पर दूध, चावल की खीर का भोग लगाकर पितरों को अर्पित करना चाहिए, इससे पितर प्रसन्न होकर परिवार को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
अमावस्या के दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। इस दिन अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, वस्त्र, जूते-चप्पल, कंबल या तिल का दान करना चाहिए। किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन कराना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, गुप्त दान (बिना किसी को बताए दान) करने से इसका फल कई गुना अधिक मिलता है और जीवन में आने वाली कई बाधाएं दूर होती हैं। दान करने से नवग्रहों की अशुभता भी कम होती है और कुंडली में मौजूद दोषों का निवारण होता है।
यह दिन पीपल के पेड़ की पूजा के लिए भी विशेष माना जाता है। अमावस्या की शाम को पीपल के पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए और उसकी तीन या सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
साथ ही, घर की दक्षिण दिशा में भी तिल के तेल या सरसों के तेल का एक दीपक जलाना चाहिए। दक्षिण दिशा यमराज और पितरों की दिशा मानी जाती है, इसलिए इस दिशा में दीपक जलाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका मार्ग प्रकाशित होता है, जिससे घर पर उनकी कृपा बनी रहती है।
धन की देवी महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी अमावस्या की रात को कुछ उपाय किए जाते हैं। अमावस्या की शाम को घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए।
इस दीपक में रुई की बत्ती की जगह लाल रंग के धागे का उपयोग करें और थोड़ी सी केसर डाल दें। यह उपाय महालक्ष्मी को प्रसन्न करता है और घर में धन आगमन के योग बनाता है। इसके अलावा, रात में 5 लाल फूल और पाँच जलते हुए दीपक किसी बहती हुई नदी या जल में प्रवाहित करने से भी धन लाभ होता है।
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