सुबह-सुबह अलार्म बजने पर मिसेज शर्मा का उठना, बच्चों को उठाना, टिफिन बनाते-बनाते उन्हें तैयार करना, नाश्ता बनाना, उन्हें स्कूल छोड़कर आना, लंच के लिए कुछ और चीजें तैयार करना फिर अपने पति को उठाना, खुद ऑफिस के लिए तैयार होना और फिर पति से रोज़ डांट खाना, "तुम्हारी वजह से मैं लेट हो जाता हूं"। दिन भर ऑफिस में काम करना फिर घर आकर खाना बनाना और देर रात तक थकने के बाद भी सुबह के लिए थोड़ी तैयारी कर देना। ये रूटीन कुछ हद तक एक आम भारतीय परिवार का लग रहा है।
ऐसी ही तो होता है एक आम दिन। भारतीय घरों में ये मान लिया जाता है कि पुरुषों का काम सिर्फ ऑफिस जाना है और अगर कोई महिला ऑफिस जा भी रही है, तो भी उसे घर का काम करना होगा। ये तो महिला की खुद की ही जिम्मेदारी है। पर क्या इसमें वाकई पुरुषों को गलती दी जा सकती है? आखिर ऐसा क्या कारण है जो उन्हें घर का काम नहीं करने देता।
इसके बारे में हमने फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की सीनियर चाइल्ड और क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और हैप्पीनेस स्टूडियो की फाउंडर डॉक्टर भावना बर्मी से बात की। उन्होंने हमें पुरुषों की साइकोलॉजी को लेकर कुछ बातें बताईं। डॉक्टर भावना के मुताबिक, "ऐसा नहीं है कि पुरुष कुछ गलत चाहते हैं या आपकी केयर नहीं करते। ऐसा समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें ये समझ ही नहीं आता कि घर का काम उनका भी हो सकता है।"
ऐसे में पुरुषों के घर का काम ना करने के ये कारण हो सकते हैं...
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बच्चे वही सीखते हैं जो उनके सामने दिखाया जाता है। एक आम भारतीय घर में बच्चे कभी पिता जी को काम करते नहीं देखते। अगर ऑफिस से आने के बाद उन्हें पानी भी चाहिए, तो वो अपनी पत्नी को आवाज लगाते हैं। अगर बच्चा शुरुआत से ही यही सब देखेगा, तो वो बड़ा होकर अपनी पत्नी के साथ भी यही करेगा। सिर्फ लड़कों को ही नहीं, लड़कियों को भी इससे ये समझ आता है कि काम उन्हीं को करना है। ट्रेडिशनल जेंडर रोल्स ऐसे होते हैं कि उन्हें घर के काम समझ ही नहीं आते। (क्या घर का काम सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी है)
अगर कोई अलमारी फैली हुई है, तो उसे घर की स्त्री ठीक करेगी। अगर कपड़े धोने हैं, तो उसे घर की स्त्री करेगी। पुरुषों को इसलिए घर के काम का महत्व ही नहीं समझ आता। उनके हिसाब से खाना बनाना, कपड़े धोना आदि काफी टाइम लेने वाले काम होते हैं। यही कारण है कि उन्हें ये काम पसंद नहीं आते। वो इन कामों से बचना चाहते हैं। घर में इस तरह का व्यवहार करना उन्हें नॉर्मल लगता है। उन्हें घर का काम करने का कारण ही समझ नहीं आता।
इसे सामाजिक स्टीरियोटाइप कह लें या फिर व्यक्ति विशेष की सोच, पर जिस तरह की परवरिश हमारे घरों में लड़कों को मिलती है वो अधिकतर यही सोचते हैं कि खाना बनाने में तो महिलाएं माहिर होती हैं। कुकिंग लड़कों का काम है ही नहीं। उन्हें ये लगता है कि किचन में मदद करने की जरूरत ही नहीं है। अगर वो खाना बनाना जानते भी हैं, तो भी वो मदद करने से कतराते हैं।
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यहां भी बात जेंडर स्टीरियोटाइप्स पर आकर अटक जाती है। खाना बनाना एक बेसिक लाइफ हैक है ये किसी को सिखाया ही नहीं जाता। ऐसा मान लिया जाता है कि लड़कियों के काम लड़कियां ही करेंगी। शादी से पहले मां अपने बेटे को पैंपर करती है और शादी के बाद यही उम्मीद पत्नी से की जाती है। ये समझने वाली बात है कि अब लड़कियां भी उतनी ही मेहनत करती हैं जितनी लड़के। वो खुद भी ऑफिस जाकर दिन भर का समय लगाती हैं। ऐसे में जरूरी लाइफ स्किल तो दोनों को ही आना चाहिए।
कुल मिलाकर पुरुषों का घर में काम ना करना कहीं ना कहीं उनकी परवरिश का ही नतीजा है। इस मामले में आपकी क्या राय है? इसके बारे में हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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