जेंडर रोल हमारे जन्म लेते ही हमारे लिए निर्धारित कर दिए जाते हैं जब डॉक्टर ये कहता है कि बच्चा लड़का है या लड़की। जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं तो समाज हमारे लिए एक तस्वीर बनाता जाता है कि पुरुष और महिलाओं को एक दूसरे से अलग रहना चाहिए उनके व्यवहार में, उनके ड्रेसिंग स्टाइल में, उनकी जिम्मेदारियों में, उनके हाव-भाव में और ये लिस्ट बढ़ती चली जाती है। हममे से कई लोग तो इसके बारे में सोचते भी नहीं हैं और ये सवाल कभी दिमाग में नहीं आता कि आखिर एक तरह के जेंडर को तय पैमाने में क्यों देखा जाता है। पर हम समाज द्वारा तय किए गए नियम मानते हैं और हम ये चाहते हैं कि लोग हमें स्वीकार भी करें।
क्या हैं जेंडर रोल्स से जुड़ी आम धारणाएं और कैसे समय के साथ आया है इनमें बदलाव?
पहले अगर कोई पुरुष स्कर्ट पहन लेता था तो उसे अलग नजर से देखा जाता था, पर अब ये फैशन स्टेटमेंट बन जाता है। पुरुषों द्वारा मेकअप इस्तेमाल करना पहले अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन अब कई तरह के प्रोडक्ट्स इससे बनते हैं। महिलाएं जो पहले सिर्फ ड्रेस और स्कर्ट में ही क्यूट मानी जाती थीं वो अब ढीली पैंट और हुड वाले पुलओवर भी पहन लेती हैं।
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पिता जो बच्चों की देखभाल करते हैं और घर का काम भी कर लेते हैं उनकी संख्या अब मां की तुलना में बढ़ती जा रही है। पारंपरिक तौर पर यही माना जाता था कि महिलाएं घर के काम-काज और बच्चों को संभालने में ही दक्ष होती हैं। अब महिला और पुरुष दोनों ही घर की कमाई के लिए जिम्मेदार हैं और एरोनॉटिक्स, फॉरेंसिक्स, इंजीनियरिंग आदि फील्ड में सिर्फ पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं भी हैं।
पारंपरिक तौर पर ये समझा जाता था कि पुरुषों का दिल पत्थर का बना हुआ है। तो उनसे हमेशा हिम्मत दिखाने की उम्मीद की जाती थी। उन्हें किसी भी मोड़ पर कमजोर नहीं पड़ना होता था। पर भावुक या कमजोर पुरुष अब अलग नहीं समझे जाते। साथ ही, इसमें कोई गलत बात नहीं है कि कोई महिला किसी बड़ी परेशानी को अकेले ही हल कर ले।
महिलाएं भी भारी सामान उठा सकती हैं, पुरुष भी कुछ नया डिजाइन कर सकते हैं या घर का इंटीरियर कर सकते हैं। पुरुष कमजोर नहीं समझे जाते अगर वो योगा करते हैं और जिम नहीं जाते तो। और महिलाओं को तेज़ गाड़ी चलाने के लिए किसी महाशक्ति की जरूरत नहीं होती।
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इसीलिए जेंडर रोल्स से जुड़ी धारणाएं समय के साथ बदल गई हैं। आज लोग सभी जेंडर के लिए ज्यादा खुले विचार रखते हैं और उनसे जुड़ी परेशानियों को भी समझते हैं। इसकी वजह से बहुत सारे हेट क्राइम यानि घृणा के कारण होने वाले अपराध कम हुए हैं और इसने लोगों को दिखावे की जिंदगी जीने की जगह खुलकर जीने की आज़ादी दी है।
डॉक्टर माधुरी मेहेनदले (MBBS, DGO, DNB- Obstetrics & Gynaecology) को उनकी एक्सपर्ट सलाह के लिए धन्यवाद।
References-
https://www.igi-global.com/dictionary/social-perceptions-gender-roles-and-female-leadership/57955
http://pubs.sciepub.com/ajap/3/1/4/index.html
https://www.researchgate.net/publication/24077612
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