"शर्मा जी लड़की का बात करना का लहजा देखा? बहुत ऊंची आवाज में बात करती है। आजकल की लड़कियों को बहुत ज्यादा ढील मिल गई है। हमारे जमाने में तो हम अपने पेरेंट्स से नजर भी नहीं मिला पाती थीं।" हमारे आस-पड़ोस में इस तरह की बाते होना कोई बड़ी बात नहीं है। यही कारण है कि बहुत बार हम अपने फैसले लेने से पहले लोग क्या सोचेंगे और कहेंगे, यह जरूर सोचते हैं।
इसी बारे में हमने बात की कुछ ऐसी महिलाओं से जिन्हें रोजाना तरह-तरह की रूढ़िवादिता देखने को मिलती है। चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
हमने दिल्ली स्थित ऐओएन कंपनी में काम कर रही गरीमा से रोजाना सामने आने वाली परिस्थितियों के बारे में सवाल किया। उन्होंने बताया, "महिला होने के नाते हमारे सामने आए दिन अलग-अलग तरह के प्रश्न रखे जाते हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "मुझे नहीं लगता है कि आमतौर पर किसी भी मां को बेटी के बढ़े वजन से चुभन महसूस होती होगी। पर हां, एक मां के लिए वजन बढ़ना इसलिए दिक्कत है क्योंकि लोग क्या कहेंगे। मेरी मां के साथ कुछ ऐसा ही है। मेरे वजन को देख लोग क्या बोलेंगे उसकी चिंता लगी रहती है।"
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महिलाओं को किस तरह के स्टीरियोटाइप का सामना करना पड़ता है के जवाब में दिल्ली स्थित कंपनी में एचआर इशू बताती हैं, "स्टीरियोटाइप कुछ ऐसा है जिसका महिलाओं को हर पड़ाव पर सामना करना पड़ता है। यहां तक की हमें बच्चपन से ही रंगों को भी बांटकर दे दिया जाता है। आप भी गौर करेंगे तो देखने को मिलेगा कि लड़कों के लिए दुकान वाले हमेशा ब्यू और लड़कियों के लिए पिंक कलर का टिफिन दिखाते हैं।"
वह आगे कहती हैं, "जोर से बात करने पर, सही से ना बैठने पर, जोर-जोर से हंसने पर और यहां तक की मैं क्या पहनूंगी इसके लिए समाज में टिप्पणियां हमेशा तैयार रहती हैं। अगर मैं कभी रेड की जगह ब्लैक लिपस्टिक लगा लूं या सूट की जगह वन पीस डाल लूं तो मेरे आस पास के लोगों के लिए वो बहुत बड़ी बात हो जाती है।"
लेडी इरविन कॉलेज से ग्रेजुएटभारती बताती हैं कि रसोई में काम करते वक्त मां का हाथ बटाने की सलाह हमेशा एक लड़की को दी जाती है। फिर फर्क नहीं पड़ता की उसका भाई उससे बड़ा है या छोटा।
उन्होंने कहा, लोगों के दिमाग में एक खांचा सेट को चुका है कि लड़की घर के काम करेंगी और लड़के बाहर जाकर पैसे कमाएंगे। यही कारण है कि छोटे-छोटे बच्चे भी अपने साथ खेल रही लड़कियों को काम सीखने की सलाह देते दिखते हैं।"
बातचीत के दौरान इशू बताती हैं, "अक्सर लोग औरतों वाली बातें मत कर जैसी पंक्तियां इस्तेमाल करते हैं। इसका क्या मतलब है? लड़कियों की तरह डर मत, लड़के रोते नहीं हैं और ऐसे ही पंक्तियां भारतीय घरों में अक्सर इस्तेमाल होती हैं जो बताती हैं कि अभी भी हमें सोच की खिड़की खोलने की जरूरत है।"
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आपको क्या लगता है, आजादी के सालों बाद भी हमारी सोच की खिड़की पूरी तरह के खुल पाई है? इस आर्टिकल के कमेंट सेक्शन में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।
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