Places of Worship Act 1991 Kya Hai: आखिर क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्यों ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर उछला इसका नाम?

पिछले कुछ दिनों में इंटरनेट पर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट बहुत ज्यादा फेमस हो रहा है। इस एक्ट को लेकर ना जाने कितनी ही बातें हो रही हैं, लोग सोशल मीडिया पर अपनी राय भी दे रहे हैं। ज्ञानवापी मस्जिद से शुरू हुई यह बहस इतनी बढ़ क्यों गई है।  
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अगर आपने सोशल मीडिया पर जरा भी न्यूज चलते देखी है, तो यकीनन आपने प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के बारे में सुना होगा। 25 नवंबर को उत्तर प्रदेश की संभल डिस्ट्रिक्ट में दंगे होते हैं और चार लोगों की मौत हो जाती है। इन दंगों का कारण था संभल में मौजूद मस्जिद को तोड़ने की चर्चा। यकीनन दो गुटों में बहस होती है, लोगों का आक्रोश बढ़ता है, लोग सड़कों पर उतरते हैं और दंगे हो जाते हैं। दरअसल, इसकी शुरुआत हुई थी जब निचली अदालत ने उस मस्जिद को लेकर एक सर्वे का आदेश दिया था।

संभल की उस मस्जिद को लेकर दावा किया जा रहा था कि इसके नीचे 500 साल पहले एक मंदिर हुआ करता था। अब मंदिर और मस्जिद की यह लड़ाई बहुत आगे बढ़ जाती है। उधर दूसरी ओर, लोग पलकें बिछाए ज्ञानवापी मस्जिद के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। उसके नीचे मंदिर था या नहीं, उसका नाम संस्कृत में क्यों है, उसके अंदर वाकई शिवलिंग मिले हैं क्या जैसी बहुत सारी चीजें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

अब संभल के शाही जामा मस्जिद का विवाद हो या फिर सुप्रीम कोर्ट का ज्ञानवापी मस्जिद पर फैसला हो दोनों में ही प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट सामने आया है। ज्ञानवापी के फैसले को सुनाते वक्त सुप्रीम कोर्ट में इस एक्ट का नाम लिया गया था।

लोग अपनी-अपनी तरह से इस एक्ट के बारे में बात कर रहे हैं। ऐसे में क्यों ना इस एक्ट को एक बार ठीक से जान लिया जाए।

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क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट?

सन 1947 में आजादी मिलने के बाद भी भारत में लगातार कई सालों तक मंदिर और मस्जिद में विवाद चलता रहा। राम मंदिर की कहानी किसी से छिपी नहीं है और बाबरी मस्जिद के साथ क्या हुआ था यह भी पता है। वैसे तो यह मंदिर बनाम मस्जिद और गुरुद्वारा बनाम गिरजा घर अभी भी चल रहा है, लेकिन सन 1991 में राम मंदिर का आंदोलन तेज हुआ और तत्कालीन सरकार ने विवादों को रोकने के लिए संविधान में एक एक्ट बनाया। यही एक्ट है प्लेस ऑफ वर्शिप, 1991।

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इस एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 के दिन तक जितने भी धार्मिक संस्थान जैसी स्थिति में थे, उसका नेचर नहीं बदला जा सकता। यानी जो मंदिर था वह मंदिर रहेगा और जो मस्जिद था वह मस्जिद ही रहेगा। इस एक्ट को यूनियन होम मिनिस्टर एस.बी.चौहान ने पेश किया था और उस वक्त सरकार को यह लगा था कि इस एक्ट की मदद से आने वाले समय में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद खत्म हो जाएंगे।

इस एक्ट के लॉन्च होने के साल भर के अंदर ही बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया था और उसके बाद जो भी हुआ वह इतिहास में दर्ज हो गया। बाबरी मस्जिद विवाद, साबरमती एक्सप्रेस कांड, बॉम्बे बम ब्लास्ट, बेस्ट बेकरी केस, गुजरात दंगे और ना जाने क्या-क्या एक इवेंट से जुड़ता चला गया।

इस एक्ट के बारे में क्या कहते हैं सुप्रीम कोर्ट के लॉयर?

इस एक्ट को लेकर कई सवाल हैं जिन्हें ठीक से समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे से बात की। अश्विनी जी सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने के साथ-साथ, 'End of colonial laws' और 'Article 32' जैसी प्रसिद्ध कानूनी किताबों के लेखक भी हैं। सालों के तजुर्बे के साथ उन्होंने इस एक्ट को लेकर जानकारी हमारे साथ शेयर की।

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अश्विनी जी का कहना है, 'प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पार्लियामेंट के द्वारा पास किया हुआ एक सेंट्रल लेजिस्लेशन है। इसके अनुसार, 15 अगस्त 1947 के दिन से ही किसी रिलीजियस जगह की जो स्थिति रहेगी, उसके खिलाफ को मुकदमा नहीं किया जा सकता है। यानी उसके कनवर्जन की बात नहीं की जा सकती है। उसके खिलाफ कोई मुकदमा भी दायर नहीं किया जा सकता है। किसी भी जगह का जो नेचर है, मान लीजिए किसी एक धर्म की पूजा होती है वहां, तो उसका नेचर नहीं बदला जा सकता है।'

पर सवाल यह उठता है कि इस एक्ट के लागू होने के बाद भी राम जन्मभूमि का फैसला आया और कई फैसले आए। इसपर अश्विनी जी का कहना है, 'इसमें यह भी कहा गया है कि राम जन्मभूमि से जुड़ा कोई भी मामला इस एक्ट के अंतर्गत नहीं आएगा। जिस वक्त यह एक्ट लागू किया गया उस वक्त राम जन्मभूमि विवाद जोरों पर था इसलिए इसे अलग रखा गया।'

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'एक्ट में यह भी कहा गया कि धारा 4 में यह बात भी कही गई है कि यह कानून ASI प्रोटेक्टेड है उसपर लागू नहीं होगा। वो बिल्डिंग जिसे मॉन्यूमेंट या धरोहर घोषित कर दिया गया है, उसपर भी यह लागू नहीं होगा। ऐसी कोई बिल्डिंग जो 100 साल से ज्यादा पुरानी है, उसपर भी यह लागू नहीं होगा। कुल मिलाकर यह है कि रिलीजियस प्लेस के कन्वर्जन पर रोक है।'

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अगर ऐसा है, तो इतने सर्वे क्यों हो रहे हैं, अगर यह सवाल आपने मन में है, तो इसका जवाब भी अश्विनी जी ने दिया है। उनके मुताबिक, 'क्योंकि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को लेकर यह कानून प्रोटेक्शन देता है, इसलिए किसी भी ऐसी जगह पर सर्वे करना कानूनन गलत नहीं है।' इसलिए आपने सुना होगा कि देश की ऐसी कई विवादित जगहों पर सर्वे किया जाता है। इन्वेस्टिगेशन और सर्वे पर किसी भी तरह की रोक नहीं है।

ऐसे ही अगर किसी स्थान का झगड़ा पहले ही कोर्ट में सेटल हो चुका है वह भी एक्सेम्पशन के दायरे में आता है। यानी जिन मुकदमों का फैसला आ चुका है, उनके फैसले पर इस एक्ट के कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

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क्या है इस एक्ट के मुख्य प्रावधान?

  • इस एक्ट के तहत किसी भी रिलीजियस प्लेस का कैरेक्टर नहीं बदला जा सकता।
  • किसी भी रिलीजियस प्लेस को लेकर लीगल प्रोसिडिंग नहीं हो सकती है। उसका स्टेटस बदलने की मांग को लेकर केस नहीं हो सकता।
  • किसी भी रिलीजियस प्लेस का कन्वर्जन नहीं हो सकता है।
  • अगर कोई जबरन ऐसा करने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ तीन साल की सजा या फिर फाइन का भी प्रावधान है।

उम्मीद है कि अब आप प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की बात समझ गए होंगे। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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