Bilkis Bano Case: 2002 से 2024 तक, अब भी जारी है इंसाफ की लड़ाई, पढ़ें पूरा घटनाक्रम

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को पलटते हुए दोषियों को दो हफ्तों के अंदर वापस सरेंडर करने को कहा है। क्या बिल्किस को आखिरकार इंसाफ मिला है या फिर इस मामले में कोई और लड़ाई बाकी है?

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Bilkis Bano case live updates: 2002 से लेकर आज तक बिल्किस अपने दोषियों को सजा दिलाने के लिए लगातार लंबी लड़ाई लड़ रही हैं और गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ 2023 में एक बार और पेटिशन फाइल करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उन्हें एक और उम्मीद दिखी है।

सुप्रीम कोर्ट ने 08 जनवरी 2024 को फैसला सुनाया है कि बिल्किस के खिलाफ अपराध करने वाले 11 दोषियों को दोबारा जेल भेजा जाए और उन्हें दो हफ्ते के अंदर दोबारा जेल भेजा जाए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, गुजरात सरकार के पास इसका अधिकार नहीं था कि वह दोषियों को रिहा कर सके।

इस मामले में दोषियों को रिहा करने से पहले कोर्ट में दलील पेश की गई थी कि कई अपराधी 20-25 साल से जेल में बंद हैं। इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 2023 में ही बिल्किस ने पेटिशन डाल दी थी। अगर ध्यान दिया जाए, तो इस मामले को पूरे 21 साल हो चुके हैं। बिलकिस को अब भी इंसान की लड़ाई लड़नी पड़ रही है।

2022 अगस्त में इस मामले के 11 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। तब से ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान है। अब एक बार इससे जुड़ी टाइमलाइन पर नजर डालते हैं।

2002 - बिलकिस बानो केस

इस मामले की शुरुआत गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों से हुई थी। 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस से लौट रहे कारसेवकों से भरी बोगी को आग लगा दी गई थी। इसमें 90 लोगों की मौत हुई थी जिसमें से अधिकांश हिंदू थे। इस कांड के बाद गुजरात में दंगे हुए थे।

इसका इल्जाम मुस्लिम समुदाय पर आया और पूरे गुजरात में मुसलमानों का कत्ल किया जाने लगा। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इसमें लगभग 2 हज़ार लोगों की जान गई थी, लेकिन कुछ रिपोर्ट्स का मानना है कि असल संख्या इससे काफी ज्यादा है। इस दौरान लूटपाट, कत्ल, बलात्कार जैसी कई घटनाएं हुई थीं।

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उस वक्त बिलकिस के परिवार ने दंगों की स्थिति देखते हुए गांव से बाहर भागने का फैसला लिया। बिलकिस दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव में रहती थीं।

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2002

3 मार्च, 2002

बिलकिस बानो का परिवार किसी तरह छप्परवाड़ गांव पहुंचा, लेकिन दंगाइयों की भीड़ वहां पहुंच गई। पूरा परिवार खेतों में जा छिपा। उस समय दाखिल चार्जशीट के मुताबिक बिलकिस के परिवार को देख 30-40 लोग हथियारों के साथ उन पर टूट पड़े। बिलकिस उस वक्त पांच महीने प्रेग्नेंट थी।

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दंगाइयों ने बिलकिस सहित 4 अन्य महिलाओं के साथ बलात्कार किया। इसमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। बिलकिस के परिवार के 17 लोग थे जिसमें से 7 मारे गए। अन्य लापता हो गए। घटना के बाद बिलकिस 3 घंटे तक बेहोश थीं। उनके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। दंगाइयों ने उन्हें मृत समझ कर छोड़ दिया था। बिलकिस ने पास पड़े एक पेटीकोट से खुद को ढका और पानी की तलाश में आगे गईं। वहां एक आदिवासी महिला ने उन्हें कपड़े दिए।

4 मार्च, 2002

बिलकिस ने एक पुलिस अफसर को देखा और उससे मदद मांगी। फिर वो लिमखेड़ा पुलिस स्टेशन गईं और वहां शिकायत दर्ज करवाई।

पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने इस शिकायत को ज्यादा महत्व नहीं दिया। बिलकिस इस घटना की अकेली सर्वाइवर थीं और उन्हें अधिकतर आरोपियों के नाम भी पता थे। अधिकतर आरोपी उनके गांव के ही थे। कॉन्स्टेबल ने उन्हें रिलीफ कैंप भेज दिया। कैंप में ही उन्हें अपने पति भी मिल गए जो घटना के बाद से लापता थे।

कैंप में बिलकिस का मेडिकल एग्जामिनेशन हुआ। उनका केस इसके बाद नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन को सौंप दिया गया।

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साल 2002 के अंत तक

यह मामला कुछ ही दिनों में सीबीआई को दे दिया गया था। सीबीआई ने बिलकिस के परिवार वालों के शव ढूंढने की कोशिश की थी, लेकिन भीड़ ने उनके सिर काट दिए थे।

2003

25 मार्च, 2003

रिपोर्ट की समरी लिमखेड़ा मजिस्ट्रेट के पास फाइल हुई और स्वीकार कर ली गई। पर लिमखेड़ा मजिस्ट्रेट ने केस क्लोज कर दिया और सबकी सहमति को कारण बताया।

अप्रैल, 2003

बिलकिस ने NHRC को अप्रोच किया और सुप्रीम कोर्ट में उनका केस फाइल हुआ। उनके केस को हरीश साल्वे ने रिप्रेजेंट किया। बिलकिस के केस में लिमखेड़ा मजिस्ट्रेट, पुलिस, सीबीआई आदि का नाम भी लिया गया।

अक्टूबर 25, 2003

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात स्टेट गवर्नमेंट को CID इन्वेस्टिगेशन को बंद करने का आदेश दिया।

दिसंबर 18, 2003

सुप्रीम कोर्ट ने खुद CBI को ये मामला सौंपा।

2004

जनवरी, 2004

सीबीआई ने इस वक्त 14 आरोपियों को गिरफ्तार किया।

फरवरी, 2004

CBI ने अंतरिम रिपोर्ट फाइल की जिसमें गुजरात पुलिस द्वारा किए सहापराध का जिक्र किया गया।

अप्रैल, 2004

सीबीआई ने 20 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की। इसमें 6 पुलिस अफसर और दो सरकारी डॉक्टर भी शामिल थे।

मई, 2004

CBI ने फाइनल रिपोर्ट फाइल की जिसमें गुजरात पुलिस अफसरों द्वारा की गई बर्बरता भी शामिल थी।

जुलाई, 2004

बिलकिस ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनका केस किसी और जगह ट्रांसफर कर दिया जाए क्योंकि गुजरात में उन्हें मौत की धमकी मिल रही थी।

अगस्त, 2004

यह मामला मुंबई स्पेशल सीबीआई कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया।

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2005

जनवरी, 2005

आरोपियों पर चार्ज फाइल किए गए।

20 फरवरी, 2005

बिलकिस ने 12 आरोपियों को पहचाना और अहमदाबाद में इस मामले का ट्रायल शुरू हुआ।

2008

21 जनवरी, 2008

स्पेशल कोर्ट ने 11 लोगों को दोषी करार दिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अन्य 7 को बरी कर दिया गया। बरी होने वालों में पुलिस वाले और डॉक्टर शामिल थे।

इसके बाद ये मामला कई सालों तक कोर्ट में रहा।

2017

4 मई, 2017

हाई कोर्ट ने अन्य सात आरोपियों को दोषी करार दिया। इसमें पांच पुलिसवाले और दो डॉक्टर शामिल थे। उनपर सबूतों के साथ खिलवाड़ करने और अपनी ड्यूटी सही तरह से ना निभाने का आरोप लगा।

10 जुलाई, 2017

दो डॉक्टर्स और चार पुलिस वालों की रिहाई की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने डिसमिस कर दी।

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2019

अप्रैल, 2019

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया कि बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये मुआवजा, नौकरी और घर दिया जाए।

2020

अक्टूबर, 2020

बिलकिस ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। उनका कहना था कि वो मुआवजे और जॉब ऑफर से खुश नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अथॉरिटी के पास जाने को कहा।

2022

अगस्त, 2022

बिलकिस बानो मामले के आरोपियों को गोधरा सब जेल से रिहा कर दिया गया। इस मामले में 6 हज़ार से ज्यादा लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में रिहाई रद्द करने की अपील की। इसे लेकर प्रोटेस्ट भी हुए।

bilkis bano convicts

2023

मार्च, 2023

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से इस मामले में जवाब मांगा था।

अक्टूबर, 2023

सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला रिजर्व कर लिया और बिल्किस बानो की पेटिशन को सुना।

2024

जनवरी, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार यह फैसला सुनाया है कि इस ऑर्डर को बिना इजाजत पास कर दिया गया था और गुजरात सरकार से इसका जवाब भी मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते के अंदर सभी दोषियों को वापस सरेंडर करने को कहा है।

यह मामला अभी भी कोर्ट में है और पता नहीं कि इसका नतीजा क्या आएगा। इसे भारतीय न्याय प्रणाली की असफलता ही कहेंगे कि रेप और कत्ल जैसे जघन्य अपराध के मामले में भी दया याचिका पर सुनवाई हो रही है। ऐसे ना जाने कितने मामले हैं जो सालों से कोर्ट में चल रहे हैं। आए दिन महिलाओं का रेप और कत्ल हो रहा है। NCIB की रिपोर्ट मानती है कि भारत में हर 12 मिनट में एक महिला का रेप होता है। आधिकारिक आंकड़े तो फिर भी कम हैं। भारत में महिलाओं पर होने वाले अपराधों की असलियत अगर सामने आ जाए, तो शायद इंसानियत भी शर्मसार हो जाएगी।

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