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How serious are women crimes in india

Raping The Daughters: हर रोज बढ़ रहे हैं महिलाओं के खिलाफ जुर्म, क्या अब नहीं पहुंच रही हमारी संस्कृति को ठेस?

कहीं दो साल की बच्ची का रेप, तो कहीं 80 साल की महिला के साथ यौन हिंसा। हर बात पर ऑफेंड होने वाला हमारा समाज आखिर महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं को लेकर क्यों चुप्पी साधे है?
Editorial
Updated:- 2023-03-15, 12:13 IST

इस हफ्ते की ताजा खबर....

  • गुरुग्राम के सेक्टर 81 में 2 साल की बच्ची का रेप। प्राइवेट पार्ट्स में हैं कई चोट के निशान
  • बिहार के बेगूसराय में 7 साल की बच्ची का रेप। कान और गाल को काटकर किया जख्मी
  • गुरुग्राम में 11वीं में पढ़ने वाली स्कूल छात्रा के साथ रेप। स्कूल से घर आते वक्त किया अगवा
  • 14 साल की लड़की के साथ तीन लोगों ने किया गैंगरेप। पिता को वीडियो भेजकर खुद ही बताई अपनी करतूत
  • 16 साल की लड़की के रेप के आरोप में पिता और भाई गिरफ्तार...
  • बिहार में एक पुरुष बेल पर छूटा और अपने घर जाकर बेटी के साथ रेप किया

कुछ समझ आया? ये वो खबरें हैं जो पिछले पांच दिनों में सामने आई हैं। क्या इन हेडलाइन्स को पढ़कर आपको कुछ महसूस हुआ? गौर से देखिए, ये वही हेडलाइन्स हैं जिन्हें हम रोजाना किसी वेबसाइट या फिर न्यूजपेपर में पढ़ते हैं। अब शायद ये खबरें इतनी आम हो गई हैं कि इनकी भयानक सच्चाई हमें जिंदगी का हिस्सा लगने लगी हैं।

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हमारा देश उन गिने-चुने देशों में से एक है जहां लोग ऑफेंड बहुत जल्दी होते हैं। किसी भी बात को लेकर वो ऑफेंड हो जाते हैं। हमारी धार्मिक भावनाएं सिर्फ इसलिए ही आहत हो जाती हैं कि दीपिका पादुकोण ने भगवा रंग की बिकिनी पहन ली है। हमारे समाज को खतरा सिर्फ इसी बात से होने लगता है कि स्वरा भास्कर, करीना कपूर, शिबानी डांडेकर किसी मुस्लिम पुरुष से शादी कर लेती हैं। हम उस देश का हिस्सा हैं जहां अपनी संस्कृति को लेकर बहुत सी बातें की जाती हैं, लेकिन फिर भी हम रेप की खबरों से ऑफेंड नहीं होते।

महिलाओं पर होते अपराधों के शर्मनाक आंकड़े

हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है। महिला एवं बाल विकास डिपार्टमेंट की तरफ से एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी का काम था सभी जेंडर आधारित हिंसा और आक्रमण की घटनाओं का लेखा जोखा रखना। इस कमेटी की रिसर्च भारत में अपने आप में पहली स्टडी के तौर पर सामने आए हैं। इस स्टडी में सामने आया है कि जेंडर बेस्ड वायलेंस के कारण कितनी महिलाओं ने अपनी जान गंवाई है। इस स्टडी में ये बात भी सामने आई है कि अधिकतर मौत एक्सीडेंटल डेथ कहकर टाल दी जाती हैं।

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इस स्टडी के आंकड़े 2017 से लेकर 2022 के बीच हुई घटनाओं के आधार पर निकाले गए हैं। स्टडी के मुताबिक करीब 21% महिलाओं की मौत अप्राकृतिक कारणों से जेंडर बेस्ड वायलेंस के कारण हुई है। इसमें से 47% ने सुसाइड किया, 47% मौत एक्सीडेंट थी, 6% मामलों में महिलाओं की हत्या पार्टनर या किसी रिश्तेदार के कारण हुई है।

घर पर होती है देवी की पूजा और महिलाओं की हत्या

अब आपको ऑफेंड होने के लिए एक और कारण देते हैं। इस स्टडी में जो आंकड़े सामने आए हैं उनमें से सबसे चौंकाने वाला ये है कि जेंडर बेस्ड वॉयलेंस से होने वाली 99% मौतें महिलाओं के अपने घर पर हुई हैं। वही घर जहां हम खुद को सुरक्षित मानते हैं। हम अपने घरों में ना जाने कितने देवी-देवताओं को पूजते हैं। पर वहीं महिलाओं की मौत का कारण बन जाते हैं।

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National Crime Records Bureau (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि 2021 में 31000 रेप के मामले सामने आए हैं। ये सिर्फ रिपोर्टेड मामले हैं। एक स्टडी मानती है कि आधे से ज्यादा मामलों को रिपोर्ट ही नहीं किया जाता है। अगर हम बीते सालों के आंकड़ों को देखें तो ये दर बढ़ती हुई दिखती है। कितने भी नियम बना लिए जाएं, कितने भी कैंडल मार्च निकाले जाएं, कितनी भी स्कीम निकाल ली जाएं या कैश फंड बना लिए जाएं, ये मामले रुकने की जगह बढ़ते जा रहे हैं।

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यही नहीं क्राइम रिपोर्ट ये भी मानती है कि बच्चों के खिलाफ क्राइम बहुत बढ़ गए हैं। 33,036 मामले 2021 में ऐसे थे जिनमें छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा और शोषण हुआ था। इसके अलावा, 312 लड़कों के साथ भी यौन हिंसा हुई है।

क्या आपके लिए ये सिर्फ आंकड़े हैं?

हमारे देश में एक बहुत ही अजीब संयोग है। जब भी कोई विभत्स्य घटना होती है उसे आंकड़ा समझ लिया जाता है। निर्भया का नाम ज्योति था और जब तक उसका नाम सामने नहीं आया था वो भी एक फाइल ही थी। बाढ़ आने पर कितने लोग मरे, ट्रेन एक्सीडेंट कितने हुए, रोड एक्सीडेंट के आंकड़े कितने हैं, रेप केस कितने हैं, इन सभी चीजों से शायद हमें फर्क पड़ना बंद हो गया है। हां, हमें फर्क तब पड़ेगा जब ये आंकड़े नाम बन जाएंगे। इस मामले में एक बेहद संजीदा मामला लाने के लिए मैं माफी चाहती हूं, लेकिन जब कोविड वेव के दौरान ऐसे ही आंकड़े नाम बन गए थे तब शायद देश के हर परिवार को फर्क पड़ा था।

भले ही निर्भया फंड के नाम पर सालाना कितने भी पैसे इकट्ठा किए जाएं। अगर हम अपनी बेटियों को बचा पाने में सक्षम नहीं हैं तो कुछ नहीं हो सकता। आंकड़े कहते हैं कि पिता, भाई, चाचा, ताऊ घर की बच्चियों का रेप कर रहे हैं। रिश्तेदार ही सबसे ज्यादा शोषण करते हैं। अगर घर के अंदर कोई पिता अपनी ही बेटी का रेप कर रहा है, तो बतौर समाज इस बात पर हमें ऑफेंड होना चाहिए। गुस्सा इस बात पर दिखाना चाहिए। पर नहीं हम तो बस छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा दिखाकर ही शांत हो जाते हैं।

इस मामले में आपकी क्या राय है? अपने जवाब हमें कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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