2022 में सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों ने बदला देश का हाल, सशक्त नारी का रहा साल

एक देश का हाल तब बदलता है जब उसकी महिलाएं अपने अधिकार चुनने का हक रखती हैं। हमारे देश का हाल इस साल कैसा रहा, चलिए जानते हैं।

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अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस रूथ बैडर गिन्सबर्ग ने कहा था, 'जिन जगहों पर भी फैसले लिए जा रहे हैं, महिलाओं की उपस्थिति उन सभी जगहों पर महत्वपूर्ण है। महिलाएं ऐसी किसी भी जगह के लिए अपवाद नहीं होनी चाहिए।'

समानता और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति को दर्शाने का इससे स्पष्ट और सशक्त तरीका नहीं हो सकता और शायद इसी सोच के साथ एक विकसित समाज की ओर एक निर्णायक कदम उठाया जा सकता है। ये कदम न सिर्फ उस समाज को एक नई दिशा की ओर ले जाने का कार्य करते हैं बल्कि एक राष्ट्र के भविष्य की मजबूत नींव को तैयार भी करते हैं। HerZindagi में हम ऐसे ही निर्णायक, साहसिक और महत्वपूर्ण कदमों के बारे में न सिर्फ अपने विचार रखते हैं बल्कि इन तमाम फैसलों और निर्देशों को बहुत गर्व के साथ आप तक पहुंचाते भी हैं।

भारत के उच्च न्यायालय ने साल 2022 में महिलाओं से जुड़े कुछ ऐसे प्रगतिशील फैसले लिए जिससे देश में संरचनात्मक परिवर्तन आने के संकेत मिले। चलिए इस लेख में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए उन ऐतिहासिक फैसलों के बारे में जानते हैं जिन्होंने हमें ये एक बार फिर यह उम्मीद दिलाई कि अब महिलाओं के अधिकारों की बात अनसुनी नहीं की जाएगी।

1- महिलाओं को मिला गर्भपात का अधिकार

यह फैसला इसी साल 29 सितंबर को लिया गया था। इस फैसले के तहत, अदालत ने कहा कि सभी महिलाएं, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार होंगी।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, एएस बोपन्ना और जेबी परदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले पर कहा था- 'महिलाओं को न केवल उनके शरीर पर बल्कि उनके जीवन पर भी स्वायत्तता से वंचित करना उनकी गरिमा का अपमान होगा।'

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2- हिजाब पहनने का अधिकार

आपको कर्नाटक का वो केस याद है जिसमें स्कूली छात्रों को हिजाब उतारने के लिए कहा गया था। लंबे समय से चली आ रही इस बहस में भी सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में फैसला सुनाया। फैसले के तहत, जस्टिस सुधांशु धूलिया ने राय रखी थी कि धार्मिक कपड़ा हिजाब एक मौलिक अधिकार है जो किसी लड़की की गरिमा और उसकी निजता से जुड़ा हुआ है। यह स्कूल परिसर के भीतर भी लागू होता है।

लड़कियों से हिजाब हटाने के लिए कहना उनकी निजता और गरिमा पर आक्रमण से कम नहीं है। हेड स्कार्फ एक धार्मिक प्रथा होने के बावजूद, इसे अभी भी सचेत विश्वास और अभिव्यक्ति का विषय माना जाता है, जिसे नकारा नहीं जा सकता।

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3- दहेज मृत्यु पर कड़ा मुकदमा

कथित तौर पर दहेज के दबाव के कारण एक महिला की मौत से संबंधित एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त में फैसला सुनाया था जिसमें कहा- 'दहेज हत्या का अपराध समाज के खिलाफ अपराध है। ऐसे अपराधों का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।'

जस्टिस एम आर शाह और बी वी नागरथना की पीठ ने फैसले के तहत कहा, 'उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, दहेज हत्या के अपराध के लिए सजा देने पर विचार करने की आवश्यकता है। समाज में एक मजबूत संदेश जाना चाहिए कि एक व्यक्ति जो दहेज हत्या और/या दहेज निषेध अधिनियम के तहत अपराध करता है, उसके साथ सख्ती से निपटा जाएगा।'

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4- आदिवासी परिवार की महिला को प्रॉपर्टी में समानता का हकदार

एक महिला आदिवासी सदस्य पारिवारिक संपत्ति के बराबर हिस्से की हकदार है। अदालत ने फैसले में कहा- 'जब एक गैर-आदिवासी की बेटी पिता की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार हो सकती है तो एक आदिवासी बेटी को इस तरह के अधिकार से वंचित करने का कोई कारण नहीं है।' इस पर पीठ ने केंद्र को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधनों पर विचार करने का निर्देश दिया था ताकि उसे अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर भी लागू किया जा सके (महिलाओं के प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन अधिकार)।

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5- 2 फिंगर टेस्ट की कड़ी निंदा

स्टिस चंद्रचूड़ और हेमा कोहली की पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए कहा था, 'दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलों में 'टू-फिंगर टेस्ट' के इस्तेमाल गलत है। इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।' जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि यह टेस्ट पितृसत्तात्मक सोच को दर्शाता है (फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला)।

6- आर्मी में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का अधिकार

12 साल से अधिक समय तक चली कानूनी लड़ाई में, सर्वोच्च न्यायलय ने 32 पूर्व महिला भारतीय वायु सेना अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिन्होंने शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) में सेवा की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर को 34 महिला अधिकारियों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सेना को 'अपने घर को व्यवस्थित करने' के लिए कहा था। इस याचिका में महिला अधिकारियों आरोप लगाया गया था कि सेना में 'लड़ाकू और कमांडिंग भूमिकाएं' के लिए जूनियर पुरुष अधिकारियों को उनके ऊपर पदोन्नत किया जा रहा था।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था,'हमें लगता है कि आप (सेना) इन महिला अधिकारियों के प्रति निष्पक्ष नहीं रहे हैं। बेहतर होगा कि आप अपना घर व्यवस्थित करें और हमें बताएं कि आप उनके लिए क्या कर रहे हैं।'

इतना ही नहीं, इस साल तीन महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ भी ली। यह दर्शाता है कि अब देश में महिलाओं के अधिकारों की सूरत में बदलाव तेजी से दिखाई देगा।

सुप्रीम कोर्ट के इन ऐतिहासिक फैसलों पर आपकी क्या राय है, हमें जरूर बताएं। इसके साथ ही यह भी बताएं कि और कौन-से ऐसे अधिकार हैं जो आपके मुताबिक महिलाओं को मिलने चाहिए। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

Image Credit :Freepik

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