हरजिंदगी अपनी स्पेशल सीरीज The Good Mother के तहत ऐसी महिलाओं को सम्मानित कर रही है जो एक मां होने के साथ अपने सपनों को उड़ान दे रही हैं। जो न सिर्फ घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं, बल्कि घर की दहलीज पार करके भी अपना परचम लहराती हैं।
इसी क्रम में हम आज एक ऐसी महिला इंजीनियर की बात कर रहे हैं जिन्होंने सफलता की बुलंदियों तक पहुंचकर भी सादगी को कभी नहीं छोड़ा। पति का साथ देकर एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी बनाई और बच्चों की परवरिश के लिए कुछ समय के लिए करियर को भी छोड़ा, लेकिन फिर भी अपने सपने को जीने की चाह नहीं छोड़ी। जी हां हम बात कर रहे हैं इंफोसिस कंपनी के फाउंडर नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति की।
वैसे तो संघर्ष हर किसी की जिंदगी में आते हैं, लेकिन कुछ लोग ही होते हैं जो इन्हें पीछे छोड़कर अपना अलग मुकाम बना लेते हैं और आम से बन जाते हैं ख़ास। जी हां कुछ ऐसी ही है सुधा मूर्ति की कहानी।
वैसे तो सुधा जी किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं, लेकिन उनकी सादगी और आत्मविश्वास जीवन जीने के अंदाज को ही बदल देता है। एक इंजीनियर, लेखक और सोशल वर्कर के रूप में प्रसिद्द सुधा मूर्ति को हाल ही में पद्म भूषण से सम्मानित भी किया गया है।
अपने संघर्षों पर विजय की एक अलग छाप छोड़ने वाली सुधा जी की कहानी जो हमें न सिर्फ आगे बढ़ने बल्कि जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने की प्रेरणा भी देती है।
कैसी थी सुधा मूर्ति की शिक्षा दीक्षा
सुधा मूर्ति का जन्म 19 अगस्त 1950 में उत्तरी कर्नाटक में शिगांव में हुआ। श्री नारायण मूर्ति से विवाह के पहले उनका नाम सुधा कुलकर्णी था। उन्होंने बी.वी.बी.कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी’, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। बचपन से ही प्रतिभा की धनी सुधा भला पीछे क्यों रहतीं, उन्होंने इंजीनियरिंग में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कर्नाटक के मुख्यमंत्री से रजत पदक ग्रहण किया।
सन 1974 में उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। वास्तव में उस समय एक महिला होकर इतना बड़ा मुकाम हासिल करना आसान नहीं था, लेकिन सुधा जी को प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए स्वर्ण पदक मिला।
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इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने वाली अकेली महिला
1960 के दशक में जब हर एक क्षेत्र में पुरुषों ला परचम बुलंद था उस समय इंजीनियरिंग करना महिलाओं के लिए सिर्फ एक सपना था। लेकिन सुधा मूर्ति ने अपने सपनों को पंख दिए और उस समय में इंजीनियरिंग कॉलेज में 150 स्टूडेंट्स के बीच दाखिला पाने वाली वो अकेली महिला थीं।
वहां भी संघर्ष उनके साथ चल रहे थे और उनका कई तरह से विरोध किया गया। लेकिन सुधा जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यहां तक कि इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल ने एडमिशन के समय उनके सामने शर्त भी राखी गई कि कॉलेज में साड़ी पहननी पड़ेगी और उनके लड़कों से बात करने पर भी पाबंदी लगा दी गई। सुधा मूर्ति के लिए ये सब बहुत छोटी बातें थीं क्योंकि अपना अस्तित्व बनाना उनकी प्राथमिकता थी।
कैसे की करियर की शुरुआत
इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के बाद सुधा मूर्ति भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी टाटा इंजीनियरिंग और लोकोमोटिव कंपनी (TELCO) में काम करने वाली पहली महिला इंजीनियर बनीं।
सुधा जी ने ‘टेल्को’ में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। उस समय टाटा कंपनी में केवल पुरुषों को ही प्रवेश मिलता था, लेकिन सुधा मूर्तिने इस चलन को बदलते हुए उदाहरण प्रस्तुत किया।
जब सुधा जी पुणे मै जॉब कर रही थीं उसी समय उनकी मुलाकात नारायण मूर्ति जी से हुई और दोनों ने शादी कर ली। नारायण मूर्ति जी अपना व्यवसाय करना चाहते थे, लेकिन पैसों की तंगी थी।
उस समय सुधा मूर्ति जी ने पत्नी का कर्तव्य निभाते हुए अपनी जमा पूंजी से लगभग 10 हजार रुपये नारायण मूर्ति जी को उनकी कंपनी की शुरुआत करने के लिए दिए। उस समय नारायण मूर्ति ने इस छोटी सी धनराशि से ‘ इंफोसिस ‘ कंपनी की शुरूआत की। आज ये दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में से एक बन चुकी है और न जाने कितनों के सपनों को पूरा कर चुकी है। सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी होने के साथ एवं सोशल वर्कर और लेखिका भी हैं।
जब हुई इंफोसिस की शुरुआत
एक समय जब नारायण मूर्ति ने अपने घर से ही इंफोसिस कंपनी की शुरुआत की उस समय सुधा जी Walchand group of Industries में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के तौर पर काम करती थीं जिससे उन्हें घर चलाने के लिए आर्थिक मदद मिल सके। इसके साथ ही उन्होंने इंफोसिस में भी अलग भूमिकाएं निभाईं और कंपनी को आगे बढ़ाने में पूरा सहयोग दिया। इंफोसिस लिमिटेड एक इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी सर्विसेज कंपनी है और ये कम्पनी देश-विदेश में आईटी फील्ड के लिए जानी जाती है।
सुधा मूर्ति क्यों नहीं बनीं इंफोसिस की फाउंडर
सुधा मूर्ति ने पति नारायण मूर्ति को अपनी कंपनी की स्थापना करने में पूरा सहयोग दिया, लेकिन वो खुद उस कंपनी में काम नहीं करती थीं। इसकी एक वजह यही थी कि नारायण मूर्ति चाहते थे कि दोनों में से कोई एक ही इस कंपनी में काम करे।
उस समय सुधा जी ने पति को इस कंपनी की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी और खुद घर संभालने का निर्णय लिया। सुधा जी ने बच्चों की परवरिश के लिए अपना पूरा योगदान दिया और उस उन्होंने परिवार को अहमियत दी। जब नारायण मूर्ति जी अपनी कंपनी स्थापित करने के लिए घर से बाहर होते थे उस समय सुधा जी घर संभालती थीं।
सुधा जी को मिला पद्म भूषण अवार्ड
हाल ही में सुधा जी को भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जी ने उनके देश के लिए दिए गए योगदानों के लिए पद्म भूषण अवार्ड से नवाजा गया। उन्हें अब तक कई अवार्ड मिल चुके हैं, लेकिन ये उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है। इससे पहले साल 2006 में सुधा मूर्ति को पद्मश्री मिला था।
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सुधा मूर्ति इंजीनियर के साथ हैं लेखिका
सुधा मूर्ति एक इंजीनियर होने के साथ बेस्ट सेलिंग राइटर्स में से हैं। उनकी अब तक 1.5 मिलियन से भी ज्यादा किताबें बिक चुकी हैं, जिनमें बच्चों की किताबों से लेकर शॉर्ट स्टोरीज, टेक्निकल बुक्स और उपन्यास भी शामिल हैं।
कुछ ऐसी है सुधा मूर्ति की कहानी जो हम सभी को प्रेरणा देती है और सादगी से जीवन जीते हुए संघर्षों से लड़ते हुए आगे बढ़ने की अनोखी दास्तान का उदाहरण प्रस्तुत करती है। वास्तव में सुधा जी हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और महिलाओं के लिए ट्रेंड सेटर हैं।
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