एक औरत से उम्मीद की जाती है कि वह मां बनने के बाद अपने सपनों को छोड़ देगी। उसे त्याग या बलिदान की मूरत बना दिया जाता है और वह खुशी-खुशी मान भी लेती है। जब एक मां खुद के लिए खड़ी होती है और अपने बच्चों के साथ-साथ अपने सपनों की जीने की जिद्द करती है, तो वह एक खराब मां बन जाती है।
चलिए आप ही बताइए कि एक अच्छी मां की परिभाषा क्या है? अगर आप इसकी परिभाषा नहीं जानते हैं तो चलिए एक ऐसी मां से इसके बारे में जानें जो अच्छी मां की काल्पनिक तस्वीर को बिना झिझक के तोड़ती आ रही हैं।
अलकनंदा दासगुप्ता एक कथक आर्टिस्ट हैं, जो खुलकर अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीती हैं। वह एक मां हैं और मानती हैं कि मां को भी सपने देखने का और उन्हें पूरा करने का पूरा अधिकार है।
अलकनंदा के करियर की बात करें तो वह 2019 से दिल्ली के इलेक्शन कमिशन की स्टेट आइकन हैं और 2021 से स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड अंबेसडर भी हैं। 40 साल के उम्दा करियर में उनके नाम कई राष्ट्रीय स्कॉलरशिप्स, उपलब्धियां और ICCR इम्पैनलमेंट है। वह पिछले 32 वर्षों से एनसीआर में सबसे बड़ा प्रदर्शन कला संस्थान और परीक्षा केंद्र चला रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय उत्सवों में भारत का चेहरा बनने के साथ ही वह देश भर में स्वतंत्र नृत्य उत्सवों को क्यूरेट करती हैं। वह एक कैंसर सर्वाइवर हैं और यह घातक बीमारी भी उनके काम के प्रति सकारात्मकता और जुनून को कम नहीं कर सकी। कथक उनका प्यार और जुनून है और इसी के चलते 6 कीमोथेरेपी के बीच वह 15 शोज कर चुकी हैं।
इस मदर्स डे हम आपको ऐसी ही महिलाओं से, ऐसी ही मांओं से मिलवाएंगे जो समाज के दबाव में आकर घुट-घुटकर जीने में विश्वास नहीं करती हैं। जो इन रूढ़ियों को तोड़कर सिर उठाकर आगे बढ़ रही हैं। ऐसी ही एक मां हैं अलकनंदा दासगुप्ता और ये है उनकी कहानी!
एक मां का सफर
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अलकनंदा अपने बेटों के साथ बहुत लिबरल हैं, लेकिन साथ ही वह सख्त भी रहती हैं। एक मां के रूप में उनकी सबसे बड़ी सीख क्या रही, यह पूछने पर वह कहती हैं, "सबसे कठिन सीख यह है कि आपके माता-पिता ने जिस तरह से आपका पालन-पोषण किया है। आप अपने बच्चों का पालन-पोषण वैसे नहीं कर सकते। बच्चे अलग हैं, समय अलग है और स्वीकृति अलग है। इसलिए हर मां को अपने बच्चे के साथ प्यार, देखभाल और सख्ती के साथ अलग तरह से पेश आना होता है।"
सिंगल मदर होने का गिल्ट
हर मां कभी न कभी तो गिल्ट से गुजरती है। यह गिल्ट समाज की 'परफेक्ट मां' वाली धारणा से आता है। यही धारणा और परफेक्ट होने का गिल्ट मांओं को स्ट्रेस और एंग्जायटी की चौखट तक ले जाता है। एक तरफ जहां कई सारी महिलाएं इस संघर्ष से गुजरती हैं और समाज के स्टैंडर्ड में फिट होने की कोशिश करती हैं, अलकनंदा इससे बिल्कुल अलग हैं।
वह कहती हैं, "मुझे भी गिल्ट हुआ था, जब मैंने सिंगल मदर रहना चुना था, लेकिन मैं समय के साथ इससे उभरी। मुझे पता था कि मुझे अपने बच्चों को एक अच्छा और सुखी घर देना है, इसलिए मेरे लिए इससे निकलना जरूरी थी।"
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मां के बलिदानों के गुणगान पर बोलीं अलकनंदा
हमारे समाज में शुरू से मांओं को हमेशा बलिदान करते दिखाया गया है। इतना ही नहीं, उनके बलिदानों का गुणगान भी किया जाता रहा है। लेकिन अब वक्त बदल चुका है और ये गुणगान महिलाओं पर सिर्फ दबाव डालता है। इस पर अलकनंदा का कहना है, "बिल्कुल! यह टॉक्सिक ग्लोरिफिकेशन एक मां पर सिर्फ दबाव डालता है और उन्हें त्याग करने पर मजबूर करता है। आज बराबरी का जमाना है। क्यों आज भी महिला या मां हमेशा समझौता करती है और समाज अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी चालाकी से इसे टूल की तरह इस्तेमाल करता है।"
कौन है एक अच्छी मां?
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'अच्छी मां' का लेबल प्राप्त करना मांओं पर एक और अतिरिक्त दबाव है। अच्छी मां क्या और कैसी होनी चाहिए इस पर वह कहती हैं, "नहीं! एक अच्छी मां की कल्पना करना काल्पनिक है। कभी-कभी बच्चे मां को गलत ठहराते हैं। जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं उनके अपने तरीके होते हैं। समाज हमेशा आपकी गलती को दिखाने और कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेने के तरीके खोजेगा। मां को अपना जीवन ईमानदारी के साथ जीना चाहिए और अपने सपनों का पीछा भी करना चाहिए। एक मजबूत मां ही मजबूत इंडिविजुअल्स का पालन-पोषण करेगी।।"
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अलकनंदा दासगुप्ता से मिलकर और उनके बारे में जानकर आपको कैसा लगा, हमारे आर्टिकल के कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताएं। अगर आपको यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करना न भूलें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए विजिट करें हरजिंदगी।
Image Credit: alaknanda_kathak
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