जिंदगी में जब मुश्किलें आती हैं तो हमारे पास दो ऑप्शन्स होते हैं या तो हम मुश्किलों से हारकर, डरकर बैठ जाएं या फिर उसका डटकर सामना करें। जो लोग मुश्किलों का डटकर सामना करते हैं, वो एक न एक दिन अपनी मंजिल को पा ही लेते हैं। अगर बात एक मां की करें तो वह अपने बच्चों के लिए किसी भी मुश्किल से लड़ने की ताकत रखती है। जब एक मां अपने मन में कुछ करने की ठानती है, तो किस तरह से वह अपने राह में आने वाली हर चुनौती को मौके में बदलने का माद्दा रखती है, शिवानी कपूर इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं। शिवानी कपूर के जोश और जज्बे की वजह से ही उन्होंने प्रोफेशनली भी कामयाबी हासिल की और अपने बच्चों को भी बखूबी संभाला। उम्मीद की डोर को थाम कर उन्होंने मुश्किल सफर को भी आसान बना लिया।
जानें शिवानी कपूर की कहानी
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शिवानी कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर फैशन डिजाइनर की थी। उन्होंने कई साल तक इस फील्ड में काम किया। शिवानी कपूर के दो बच्चे आशना और विराज हैं। अपने बच्चों के जन्म के बाद उन्होंने जॉब छोड़ दी। शिवानी कपूर की जिंदगी में मुश्किल दौर की शुरुआत तब हुई जब 2007 में उन्हें पता चला कि उनके बेटे विराज को ऑटिज्म है। शिवानी ने इस बारे में जिक्र करते हुए बताया कि ये उनके लिए बहुत मुश्किल दौर था। उन्हें कुछ पलों के लिए बेशक चिंता और घबराहट हुई लेकिन उसके बाद उन्होंने खुद को संभाला और तय किया कि वह किसी भी हाल में इस मुश्किल का सामना करेंगी। उन्हें इस कंडीशन के बारे में ज्यादा पता नहीं था इसलिए वह नहीं समझ पा रही थी कि वो अपने बच्चे की मदद किस तरह करें। उन्होंने ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर से जुड़ी सारी जानकारी इकट्ठा की। इसके बाद उन्होंने साइकोलॉजी से जुड़े प्रोफेशनल कोर्स किए और फिर प्रोफेशनल साइकोलॉजिस्ट के तौर पर अपने सफर की शुरुआत की। 14 साल से अधिक समय से शिवानी अब इस प्रोफेशन में हैं और इस तरह की समस्याओं से परेशान कई बच्चों और उनके पैरेंट्स की मदद कर चुकी हैं।
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मुश्किलें और भी थी पर हौसला कम नहीं था
शिवानी कपूर की जिंदगी में मुश्किलें सिर्फ इतनी ही नहीं थी। वह अपने बेटे को संभालने की कोशिश करते हुए अपनी जिंदगी में प्रोफेशनली भी आगे बढ़ रही थी। इसी बीच उनकी बेटी में विटिलिगो की समस्या का पता चला। विटिलिगो एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर होता है जिसमें स्किन कुछ हिस्सों से अपना नॉर्मल कलर खो देती है और कुछ पैच स्किन पर नजर आने लगते हैं। जब इस समस्या का पता चला उस समय शिवानी की बेटी की उम्र केवल दो साल थी। उस वक्त को याद करते हुए शिवानी आज भी भावुक हो जाती हैं। वो बताती हैं "मेरी बेटी बड़ी हो रही थी और विटिलिगो का प्रभाव बहुत तेजी से उसकी स्किन पर दिखाई देने लगा था। यहां बात सिर्फ स्किन डिसऑर्डर की नहीं थी, आस-पास लोगों का व्यवहार मेरी बेटी को काफी प्रभावित कर रहा था।" काउंसलिंग सेशन्स के जरिए शिवानी ने अपनी बेटी को समझाया और संभाला। उन्होंने उसे खुद को एक्सेप्ट करना सिखाया और आज उनकी बेटी बहुत खुश है। मदर्स डे जैसे खास मौके पर बेशक शिवानी जैसी मदर्स एक मिसाल हैं, जिनके बारे में बात होनी चाहिए।
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हर मुश्किल सफर को बनाया आसान
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शिवानी कपूर के हसबैंड को भी मेंटल हेल्थ इश्यू था। ऐसे में वह भी बच्चों को संभालने में उनकी ज्यादा मदद नहीं कर पाए लेकिन शिवानी ने हार नहीं मानी। इस तरह की स्थिति में शिवानी के लिए वर्क लाइफ बैलेंस बनाना भी मुश्किल हो गया था पर वह फिर भी कोशिश करने से पीछे नहीं हटीं। शिवानी ने कई एक्सपर्ट्स से बात की और मेंटल हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं के बारे में जाना, समझा और लोगों को समझाया। शिवानी का सफर वाकई काबिलेतारीफ है और हर किसी के लिए प्रेरणा है।
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