'सादा जीवन उच्च विचार' वाले सिद्धांत को अपनी रियल लाइफ में अपनाने वाली सुधा मूर्ति आईटी इंडस्ट्रियलिस्ट और इंफोसिस के फाउंडर एन आर नारायणमूर्ति की पत्नी होने के साथ -साथ एक इंस्पायरिंग वुमन हैं। सोशल वर्क, इंजीनियरिंग, लेखन और घर संभालने जैसी अलग-अलग भूमिकाओं को सुधा मूर्ति ने शिद्दत से निभाया। सुधा मूर्ति को अपनी लाइफ में कई तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी पॉजिटिविटी, लगन और जी-तोड़ मेहनत से वह अपने लिए रास्ते बनाती गईं और महिलाओं के लिए एक बड़ी इंस्पिरेशन बन गईं। हाल ही में अमिताभ बच्चन के शो कौन बनेगा करोड़पति में भी नजर आईं थीं। सादगी और आत्मविश्वास से भरपूर सुधा मूर्ति ने HerZindagi के साथ खास बातचीत की, जिसमें उनके स्ट्रगल्स के साथ-साथ उनके इंस्पायरिंग विचार जानने को मिले। इंटरव्यू की शुरुआत में जब उनसे अपनी अपनी लाइफ के बारे में चर्चा करने को कहा गया तो उन्होंने हंसते हुए कहा, 'क्या सुनाऊं, किस पॉइंट से सुनाऊं? आप बताइए, उधर से मैं सुनाऊंगी।' इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में सुधा मूर्ति ने अपनी लाइफ से जुड़े कई बड़े एक्सपीरियंस हमारे साथ शेयर किए।
1960 में इंजीनियरिंग में दाखिला पाने वाली पहली महिला
1960 के दशक में इंजीनियरिंग में पूरी तरह से पुरुषों का वर्चस्व था। उस समय में सुधा इंजीनियरिंग कॉलेज में 150 स्टूडेंट्स के बीच दाखिला पाने वाली पहली महिला थीं। कभी उनकी सीट पर इंक गिरा दी जाती थी तो कभी कागज के हवाई जहाजों से क्लास में उनका स्वागत किया जाता था। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल ने एडमिशन के वक्त उनके सामने शर्त रखी थी कि कॉलेज में साड़ी पहननी पड़ेगी, कॉलेज की कैंटीन से दूर रहना होगा और लड़कों से बात नहीं करनी होगी। सुधा ने सारी बातें मंजूर कर लीं थीं। लेकिन इन चीजों के बावजूद उन्होंने क्लास में पहला स्थान हासिल किया, लेकिन यह कामयाबी सुधा के लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती थी क्योंकि उनके लक्ष्य बहुत बड़े थे। इस बारे में जब हमारी टीम ने उनसे सवाल किया कि क्या उन्हें अपनी क्षमताओं पर कभी डाउट हुआ तो उनका कहना था,
दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला
सुधा मूर्ति के लिए इंजीनियर बनना आसान नहीं था क्योंकि उनके समय का समाज आज से बहुत अलग था। तब महिलाएं कॉलेज नहीं जाती थीं और ना ही उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें। इस बारे में सुधा मूर्ति बताती है, 'ये 50 साल पहले की कहानी है। मैं नॉर्थ कर्नाटक के छोटे से गांव हुबली से हूं। हमारे समय में मैथ्स और फिजिक्स में एमएससी बहुत कम लोग करते थे। लेकिन मेरे मन में पढ़ने की इच्छा थी। तब मुझे लोग एब्नॉर्मल समझते थे कि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती हूं।' सुधा मूर्ति ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि कैसे उन्हें क्लास में लड़के परेशान करते थे और वह रुआंसी हो जाती थीं। जब हमारी टीम ने उनसे पूछा कि कैसे वह इतना कुछ सह लेती थीं तो उन्होंने कहा, 'मैं धैर्य से काम लेती थी। कुछ हासिल करना है तो ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए। पढ़ने के वक्त मुझे अपना लक्ष्य मालूम था।'
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एन आर नारायण मूर्ति को दिया था उधार
नारायण मूर्ति आज के समय में देश के एक बड़े आई इंडस्ट्रियलिस्ट के तौर पर जाने जाते हैं। लेकिन इंफोसिस के गठन से पहले जब वह पुणे में सुधा से मिला करते थे, तब उनके पास पैसे नहीं हुआ करते थे। इस दौरान रेस्टोरेंट्स में खाने-पीने के बिल सुधा मूर्ति ही चुकाती थीं। इस दौरान नारायण मूर्ति अक्सर कहा करते थे कि वह उनका उधार बाद में चुका देंगे। सुधा ने तीन साल तक इस उधार का हिसाब रखा और जुड़ते-जुड़ते ये 4000 तक पहुंच गया था। उस समय में 4000 रुपये की कीमत काफी ज्यादा हुआ करती थी। हालांकि शादी के बाद सुधा ने यह किताब फाड़ दी थी। शादी होने के बाद जब नारायण मूर्ति ने इन्फ़ोसिस शुरू करने के बारे में सुधा से चर्चा की तो उन्होंने बदले में कहा, 'मैं आपको तीन साल का वक्त दे रही हूं। इस दौरान घर का खर्च मैं उठाऊंगी, आप अपना सपना पूरा कीजिए, लेकिन आपके पास वक्त सिर्फ 3 साल का है।' इसके साथ ही सुधा ने उन्हें अपनी पर्सनल सेविंग्स से 10,000 रुपये भी दिए थे
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इंफोसिस को दिया मजबूत आधार
जब नारायण मूर्ति ने अपने घर को इंफोसिस का दफ्तर बना दिया तो सुधा ने Walchand group of Industries में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया, ताकि वह फाइनेंशियली मजबूत रह सकें। इसके साथ ही उन्होंने इंफोसिस में एक कुक, क्लर्क और प्रोग्रामर की भूमिकाएं भी निभाईं।
पॉपुलर राइटर हैं सुधा मूर्ति
सुधा मूर्ति बेस्ट सेलिंग राइटर्स में शुमार की जाती हैं। उनकी अब तक 1.5 मिलियन से भी ज्यादा किताबें बिक चुकी हैं, जिनमें बच्चों की किताबों से लेकर शॉर्ट स्टोरीज, टेक्निकल बुक्स, travelogues, 24 उपन्यास और कई नॉन फिक्शन बुक्स शामिल हैं। सुधा मूर्ति का शिड्यूल काफी ज्यादा बिजी रहता है। वह अपना ऑफिस का कामकाज संभालने के साथ Infosys Foundation के रिलीफ वर्क के सिलसिले में आमतौर पर महीने के 20 दिन ग्रामीण भारत में ट्रेवल कर रही होती हैं।
जेआरडी टाटा ने लोक कल्याण के लिए किया इंस्पायर
सुधा मूर्ति जिस समय टेल्को छोड़ रही थीं, तब वह जेआरडी टाटा से मिलने गईं। टाटा यह देखकर हैरान रह गए कि जिस नौकरी को सुधा ने इतने संघर्षों के बाद पाया, उसे वह छोड़कर जा रही थीं। जब सुधा ने उन्हें बताया कि वह अपने पति की कंपनी इंफोसिस में काम करेंगी, तब उन्होंने सुधा से कहा, 'अगर आप अपनी कंपनी से बहुत सारा मुनाफा कमाएं तो उसे समाज की बेहतरी में जरूर लगाएं।' सुधा यह बात कभी नहीं भूलीं। आज वह इंफोसिस फाउंडेश में सक्रियता से काम रही हैं और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में कई तरह के सामाजिक कार्य कर रही हैं। उन्होंने गरीब तबके के लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए रिहेबिलिटेशन सेंटर्स, अस्पताल, अनाथाश्रम, स्कूल, टॉइलेट्स और बाढ़ प्रभावित इलाकों में 2300 घर बनवाए। अब तक सुधा 800 से ज्यादा गावों का दौरा कर चुकी हैं। तमिलनाडु और अंडमान में सुनामी आने के बाद उन्होंने राहत पहुंचाने से जुड़े काम किए थे। गुजरात में भूकंप आने, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में बाढ़ और महाराष्ट्र-कर्नाटक में सूखे की स्थिति होने पर भी उन्होंने बड़े पैमाने पर राहत पहुंचाने से जुड़े कार्य किए थे।
'बिना किसी से उम्मीद किए अच्छे काम करने चाहिए'
सुधा मूर्ति ने अपनी बायोग्राफी में कई लोगों का जिक्र किया, जिन्होंने उनके साथ भलाई करने पर आभार जताया। बहुत से लोगों ने मुसीबत के दिए पैसे लौटाए भी। इस बारे में सुधा मूर्ति का मिला-जुला अनुभव रहा। इस बारे में चर्चा करते हुए सुधा मूर्ति किसी दार्शनिक की तरह बात करती हैं, 'हर तरह के लोग होते हैं, कुछ अच्छाई के बदले अच्छाई करते हैं, कुछ लोग कृतज्ञ नहीं होते। लोग आपके साथ चाहें जैसा भी करें, उससे बिना प्रभावित हुए अपना काम करते रहें। जब आप अपेक्षा करते हैं, तभी दुख होता है।
हर भूमिका को ईमानदारी से निभाया
सुधा मूर्ति ने एक बेहतरीन इंजीनियर, टीचर, सोशल वर्कर, बेस्ट सेलिंग राइटर और मां की भूमिका निभाई और इन सभी भूमिकाओं के साथ उन्होंने न्याय करने का प्रयास किया। इस बारे में सुधा मूर्ति बताती हैं, 'मैंने हर रोल में परिश्रण किया है। जब मैं टीचिंग में थी, तो अच्छी तरह से तैयारी करके जाती थी। बच्चों को लगन से पढ़ाती थी, इस बात पर ध्यान देती थी कि बच्चों पर गुस्सा नहीं करना है। राइटिंग की बात करूं तो मेरा पैशन है लिखना, मुझे लिखकर बहुत अच्छा लगता है।'
महिला सशक्तीकरण में निभाई अहम भूमिका
'Three Thousand Stitches' सुधा मूर्ति की पॉपुलर किताब है। इस किताब में सुधा ने बहुत सी इंस्पायरिंग स्टोरीज का जिक्र किया है। इसमें उन्होंने देवदासी परंपरा का पालन करने वाली उन महिलाओं का जिक्र किया है जिनकी जिंदगी एक समय में तकलीफों से भरी थी। लेकिन सुधा ने अपने प्रयासों से उनकी जिंदगी को नई दिशा दे दी। इस बारे में उन्होंने बताया, 'जब पहले मैं उन लोगों की मदद के लिए गई तो वे मुझसे नाराज हुए। लेकिन मैं कोशिशें करती रही। धीरे-धीरे उन्हें मुझ पर यकीन होने लगा। वे मुझे प्यार से अक्का(बड़ी दीदी) बुलाते थे। मेरे पिता जी ने मुझसे कहा था कि 10 लोगों को बदलने की कोशिश कीजिए। हमने 16 साल में 3000 लोगों की जिंदगी बदली। सरकारी योजनाओं के बारे में उन्हें जागरूक किया। हमने नियम तोड़कर बैंक की बिल्डिंग खरीदकर उन्हें दी। इस बैंक के उद्घाटन में इन महिलाओं ने मुझे खासतौर पर इन्वाइट किया। एसी वोल्वो बस के टिकट से लेकर मेरे ठहरने तक का सारा इंतजाम उन्होंने किया। उन्हें नहीं पता था कि मैं कौन हूं। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि मैं एक टीचर हूं। उनकी मासूमियत से उनका प्यार जाहिर होता है।'
बच्चों की परवरिश को दी अहमियत
किसी प्रोफेशनल के लिए काम छोड़कर घर देखना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सुधा मूर्ति की जिंदगी में भी ऐसा समय आया, जब उनके सामने दो बच्चों की जिम्मेदारी थी। तब सुधा ने अपने परिवार को प्रायोरिटी दी। इस बारे में सुधा बताती हैं, 'इंफोसिस में काम करने को लेकर हमारी लंबी बातचीत हुई। हम कंपनी का आउटलुक प्रोफेशनल रखना चाहते थे। इसीलिए कंपनी में हम दोनों में से कोई एक ही काम कर सकता था। उस वक्त में मेरे दोनों बच्चे छोटे थे। अगर मैं उन्हें छोड़कर जाती तो उनकी परवरिश पर असर पड़ सकता था, इसीलिए मैंने घर को प्रायोरिटी दी। उस दौरान मैं कॉलेज में पढ़ाती थी और बाद में मैं इंन्फोसिस फाउंडेशन से जुड़ गई।'
घर बनाने के लिए बेच दी ज्वैलरी
आज के समय में पति-पत्नी में घर-ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी होने पर अक्सर झगड़े हो जाते हैं। लेकिन सुधा मूर्ति ने अपने पति से ऐसी कोई शिकायत नहीं की। नारायणमूर्ति अक्सर काम में व्यस्त रहते थे, साल के 10 महीने ट्रेवल कर रहे होते थे, तब भी सुधा मूर्ति ने उनसे नहीं पूछा कि आप इतना बाहर क्यों रहते हैं। सुधा मूर्ति अपने संघर्ष के दिनों के बारे में बताती हैं,
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