हिन्दू धर्म में हर एक त्योहार का अलग महत्व और अलग तरीके से पूजन का विधान है। ऐसी ही प्रमुख त्योहारों में से एक है गोवर्धन। मुख्य रूप से गोवर्धन का त्योहार दिवाली के पांच प्रमुख त्योहारों में से एक होता है। मुख्य रूप से दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है।
यह कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानि प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है। इस त्योहार में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है। आइए ज्योतिषाचार्य और वास्तु स्पेशलिस्ट डॉक्टर आरती दहिया जी से जानें कि इस साल कब मनाया जाएगा गोवर्धन का त्योहार, पूजा का शुभ मुहूर्त और इस दिन आपको कौन से काम नहीं करने चाहिए।
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इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा होती है और साथ ही गाय के गोबर से गोवर्धन देव बनाकर उन्हें पूजते हैं। इसके बाद ब्रज के देवता गिरिराज भगवान यानी पर्वत को खुश करने के लिए 56 तरह के पकवान बनाकर श्रीकृष्ण को उनका भोग लगाया जाता है। गुजरात में, यह दिन गुजराती नव वर्ष के उत्सव का आह्वान करता है जबकि महाराष्ट्र में, गोवर्धन पूजा को 'बाली पड़वा' या 'बाली प्रतिपदा' के रूप में मनाया जाता है।भगवान विष्णु के एक अवतार वातिथि मन ने बाली को हराया और उसे 'पाताल लोक' में धकेल दिया, इसलिए ऐसा माना जाता है कि राजा बलि इस दिन पृथ्वी पर आते हैं। इस त्योहार को देश के कई हिस्सों में 'विश्वकर्मा दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है जहां लोग अपने औजारों और उपकरणों की गोवर्धन का त्योहार पूजा करते हैं।
इस पर्व पर गोवर्धन और गाय माता की पूजा-अर्चना करने की परंपरा है। इस दिन गाय के गोबर के ढेर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। इसे फूलों और कुमकुम से सजाया जाता है। जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। इसके बाद भक्त गाय के गोबर से बने पर्वत की पहाड़ियों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और अपने परिवार की सुरक्षा और खुशी के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा विधि में लोग अपनी गायों और बैलों की भी पूजा करते हैं। इस दिन लोग अपनी गायों और बैलों को नहला कर सजाते हैं। फिर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनकी पूजा करते हैं। इस दिन गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है।
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गोवर्धन पूजा के पीछे एक प्रचिलित कहानी है। इस कहानी के अनुसार जब इंद्रदेव ने बृज में तेज बारिश शुरू कर दी थी तब श्री कृष्ण भगवान ने बृज के लोगों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर बृजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचा लिया था। तब बृज के लोगों ने श्री कृष्ण को 56 भोग अर्पित किए थे। इससे खुश होकर श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों की हमेशा रक्षा करने का वचन दिया था। तभी से इस त्यौहार की प्रथा आरम्भ हो गयी और आज भी इसे बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
उपर्युक्त सभी तरीकों से गोवर्धन की पूजा और इन सभी बातों को ध्यान में रखकर पूजन करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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