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क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा का त्‍योहार, जानिए इसका महत्व और कथा

दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है। इस दिन का क्‍या महत्‍व है और यह पर्व क्‍यों मनाया जाता है आइए हम आपको बताते हैं। 
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-11-05, 12:12 IST

 दिवाली का त्‍योहार पूरे भारत वर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्‍योहार की सबसे बड़ी खासियत है कि दिवाली एक दिन का त्‍योहार नहीं होता बल्कि यह त्‍योहार हफ्ते भर मनाया जाता है। दिवालरी के दो दिन पहले से ही छोटे-छोटे त्‍योहार शुरू हो जाते हैं और दिवाली के 2 दिन बात तक त्‍योहारों की झड़ी लगी रहती हैं। दिवाली के बीतने के तुरंत बाद यानी दूसरे दिन गार्वधन पूजा होती है। यह त्‍योहार उत्‍तर भारत से लेकर साउथ इंडिया तक बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। आइए आज हम आपको इसके महत्‍व और इससे जुड़ी कहानी के बारे में बताते हैं। 

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क्‍यों होती है गाय की पूजा

गाय को देवी लक्ष्‍मी का दूसरा रूप माना गया है। गोर्वधन के दिन बली पूजा, अन्‍नकूट पूजा भी होती है। इस पूजा को भगवान कृष्‍ण जोड़ कर भी देखा जाता है इसलिए गोर्वधन पूजा के दिन भगवग कृष्‍ण की पूजा भी होती हैं। यह पूजा द्वापर युग से चली आ रही है और कर्तिक शुक्‍ल पक्ष पर यह की जाती हैं। वर्ष 2018 में यह पूजा 8 नवंबर को है। यह पर्व उत्‍तर भारत के मथुरा शहर में धूमधाम से मनाया जाता है। 

गोवर्धन पूजा की कथा 

गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान कृष्ण से है इस त्‍योहार की शुरुआत ही द्वापर युग में हुई थी। मगर ऐसी मान्‍यता है कि गोर्वधन पूजा से पहले ब्रजवासी भगवान इंद्र की पूजा करते थें। मगर, भगवान कृष्‍ण के कहने पर एक वर्ष ब्रजवासियों ने गाय की पजूा की और गाय के गोबर का पहाड़ बना कर उसकी परिक्रमा की। तब से हर वर्ष ऐसा ही होता आ रहा है। 

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इंद्र हो गए नाराज 

भगवान कृष्ण की बात मानकर जब ब्रजवासियों ने भगवान इंद्र की पूजा करनी बंद कर दी और गोवर्धन पूजा करने लगे, तब इस बात से नाराज हो कर भगवान इंद्र ने ब्रजवासियों का डराने के लिए पूरे ब्रज को बारिश से जलमग्न कर दिया। पानी कहर से लोग प्राण बचाने के लिए भगवान कृष्‍ण से प्रार्थना करने लगे। भगवान कृष्ण ने जब इंद्र का प्रकोप देखा तो उन्‍होंने ब्रजवासियों को बचाने के लिए पूरा गोवर्धन पर्वत अपनी एक उंगली पर उठा लिया। भारी बारिस का प्रकोप लगातार 7 दिन तक चलता रहा और भगवान कृष्ण ब्रजवासियों को उसी गोवर्धन पर्वत के नीचे छाता बनाकर बचाते रहे। भगवान की यह माया देख कर भगवान ब्रह्मा ने इंद्र को बताया कि भगवान कृष्‍ण विष्‍णु का अवतार हैं। इस बात को जानकर इंद्र बहुत पछताए और भगवान से क्षमा मांगी। 

 

कृष्ण ने दी अन्नकूट का पर्व मनाने की आज्ञा

इंद्र का क्रोध खत्‍म हुआ तो भगवान कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष वह इस पर्वत की पजूजा करेंगे और अन्‍नकूट का उन्‍हें भोग लगाएंगें। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा और अन्नकूट हर घर में मनाया जाता है। 

 

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