आज बॉलीवुड जितना कॉमेडी के लिए फेमस है उतना आज से 80 साल पहले नहीं था और महिला कॉमेडियन तो भूल ही जाइए। सिनेमा में मेल कॉमेडियन बहुत देखने को मिल जाते हैं लेकिन फीमेल कॉमेडियन कुछ ही रही हैं। फिल्मों में महिलाओं को हम रोने-धोने के किरदार में देखते हुए आए हैं। लेकिन बॉलीवुड में 40 के दशक में एक ऐसी स्टार आईं जिन्होंने महिलाओं की छवि को बदला। जी हां हम बात कर रहे हैं भारत की पहली महिला कॉमेडियन टुनटुन की।
टुनटुन, जिनका नाम सुनते ही हमारे सामने गोल-मटोल हसमुख सी छवि आ जाती है। आज के दशक में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें टुनटुन के बारे में नहीं पता है तो चलिए आज हम उनकी लाइफ से जुड़े हुए कुछ किस्सों के बारे में आपको बताते हैं।
टुनटुन का असली नाम था उमा देवी खत्री
टुनटुन का जन्म उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के पास एक छोटे से गांव में 11 जुलाई 1923 में हुआ था। उनके जन्म का नाम उमा देवी खत्री था। जी हाँ कॉमेडियन महिला को हम टुनटुन के नाम से जानते हैं लेकिन उनका असली नाम उमा देवी खत्री था। उमा देवी बचपन से ही गरीबी में पली-बढ़ी। बचपन में टुनटुन अपने चाचा के साथ रहती थी और उन्हें अपना पेट भरने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू भी लगाना पड़ता था। 23 साल की उम्र तक उन्हें काफी कुछ सहना पड़ा।
ज़मीन के विवाद में हुई मां-बाप की मौत
उमा देवी जब बहुत छोटी थी तो ज़मीन के विवाद में उनके मां-बाप की हत्या कर दी गई। मृत्यु से पहले एक बार इंटरव्यू में टुनटुन ने बताया था कि 'मुझे तो अपने मां बाप का चेहरा तक याद नहीं कि वह कैसे दिखते थे। मेरा 8-9 साल का एक भाई था जिसका नाम हरि था मुझे याद है हम अलीपुर में रहते थे एक दिन मेरे भाई की भी हत्या कर दी गई तब मैं चार-पांच साल की थी'। इस तरह उन्होंने एक अनाथ की तरह अपनी जिंदगी बिताई।
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23 की उम्र में घर से भागी थी टुनटुन
बचपन में ही गरीबी और इतने सारे दुख झेलने के बाद महज 23 साल की उम्र में वो घर से भागकर मुंबई चली गई। मुंबई आने के बाद उनके एक नए जीवन की शुरुआत हुई ।मुंबई में उन्होंने संगीतकार नौशाद जी का दरवाजा खटखटाया और बोला मैं बहुत अच्छा गाना गाती हूं मुझे एक मौका दे दीजिए वरना मैं मुंबई के समुद्र में कूद जाऊंगी। उनकी बातें सुनकर नौशाद जी ने उनका ऑडिशन लिया और फिर उन्हें गाना गाने का मौका दिया।
1947 में 'दर्द' फिल्म का यह गाना 'अफसाना लिख रही हूं दिल-ए-बेक़रार का आँखों में रंग भर के तेरे इंतजार का' उमा देवी का पहला गाना आया और यह गाना सुपरहिट रहा। पुराने गानों के शौकीन लोग आज भी इस गाने को बेहद पसंद करते हैं। इस गाने के बाद उनके कई और हिट गाने भी रहे जैसे ‘आज मची है धूम’, ‘ये कौन चला’, ‘बेताब है दिल’ आदि। दर्द फिल्म के बाद उन्होंने दुलारी, चांदनी रात, सौदामिनी, भिखारी, चंद्रलेखा आदि जैसी फिल्मों में गीत गाए।
लेकिन उसी दौर में लता मंगेशकर जैसी और कई गायिकाएं आईं जिनके बाद नौशाद जी ने उन्हें अभिनय करने की सलाह दी। यह बात सुनकर टुनटुन ने कहा कि वह अभिनय करेंगी लेकिन सिर्फ दिलीप कुमार के साथ यह बात सुनकर नौशाद जी हंसने लगे। भगवान ने जैसे टुनटुन की बात सुन ली और उन्हें 1950 में 'बाबुल' फिल्म में दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौका मिला। इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ नरगिस लीड रोल में थी।
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उमादेवी से कैसे बनी टुनटुन
अभिनय के रूप में उमा देवी की पहली फिल्म 'बाबुल' थी। जिसमें वह दिलीप कुमार जी के साथ काम कर रही थी। एक दिन शूटिंग के दौरान दिलीप कुमार के साथ एक सीन करते हुए वह उनके ऊपर गिर गई जिसके बाद दिलीप कुमार ने उमा देवी को टुनटुन उपनाम दिया। आगे चलकर यही नाम उनकी पहचान बना और लोगों ने उन्हें कॉमेडियन टुनटुन के रूप में बहुत पसंद किया।
टुनटुन ने अपने फिल्मी करियर में लगभग 200 फिल्मों में काम किया। 90 का दशक आते-आते उन्होंने फिल्मों से दूरी बनानी शुरू कर दी। उनकी आखिरी फिल्म 1990 में 'कसम धंधे' की रही। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम नहीं किया। फिल्मी करियर छोड़ने के बाद टुनटुन अपने परिवार के साथ समय बिताने लगी। हिंदी सिनेमा के लिए दुखद दिन 23 नवंबर 2003 का था जिस दिन टुनटुन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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