आज दिलीप कुमार साहब हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी जिंदगी के ऐसे कई किस्से हैं, जिनमें वो लोगों से रूबरू होते हैं। उनके किस्सों को जितनी बार सुना जाए, कम लगता है। बॉलीवुड के जो लोग उन्हें करीब से जानते थे, वे गाहे-बगाहे किसी न किसी तरह उन्हें अपनी यादों में और बातों में शामिल रखते हैं।
ऐसा शायद ही कोई हो जिससे उनको कई बैर हो या उनसे किसी को बैर हो। सादगी और मीठी सी मुस्कान ही काफी थी उनकी हर दिल अजीज बनने के लिए। इंडस्ट्री में दो लोगों से उन्हें बेहद प्यार था, एक उनकी मुंह बोली बहन और स्वर कोकिला लता मंगेशकर और दूसरे उनके बेटे समान एक्टर शाहरुख खान। ये दोनों भी उन्हें बेहद मानते थे, लता जी उन्हें राखी बांधा करती थी।
मगर क्या आप जानते हैं कि भाई-बहन के इस खूबसूरत रिश्ते की शुरुआत एक तंज और एक-दूसरे की बेरुखी से हुई थी। एक समय वो था, जब लता मंगेशकर और दिलीप कुमार में 13 सालों तक बात नहीं हुई। ऐसा आखिर क्यों हुआ, जानने के लिए जरूर पढ़ें यह आर्टिकल और वो किस्सा जानें।
पिंकविला की रिपोर्ट के मुताबिक, दरअसल, बात है साल 1957 की, जब सलिल चौधरी ने फिल्म 'मुसाफिर' का एक गाना 'लागी नाहीं छूटे' साइन किया था और गाना दिलीप कुमार गाने वाले थे। उनके साथ दूसरी गायिका लता मंगेशकर थीं। इस बात की जानकारी लता जी को नहीं थी। जब उन्हें यह बात पता चली, तो वह सोचने लगीं कि पता नहीं वह यह गाना गा पाएंगी या नहीं।
इस गाने को सलिल चौधरी ने लिखा था, जिसमें उन्होंने राग पीलू में ठुमरी को चुना था। इस गाने के लिए दिलीप कुमार ने बहुत रिहर्सल की। यहां तक कि सितार के साथ कई धुन में प्रैक्टिस की, लेकिन रिकॉर्डिंग के दौरान वह लता मंगेशकर को देख झिझकने लगे। लता मंगेशकर इतनी अच्छी गायिका थीं कि दिलीप कुमार (मधुबाला नहीं ये एक्ट्रेस थी दिलीप कुमार का पहला प्यार, जानें) घबरा गए। यही जब सलिल चौधरी ने देखा, तो उन्होंने दिलीप साहब की घबराहट कम करने के लिए उन्हें ब्रांडी का एक छोटा पेग दे दिया।
ब्रांडी पीने के बाद, दिलीप कुमार में हिम्मत तो आ गई और उन्होंने गाना भी गाया, लेकिन रिकॉर्डिंग में उनकी आवाज लता जी से कमजोर दिखी। इसका परिणाम भी अच्छा नहीं था। हालांकि लता मंगेशकर ने इस गाने में पूरे एफर्ट्स डाले थे और इसी बात से वह खफा थीं।
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उस किस्से के बाद दोनों की बेरुखी खत्म नहीं हुई, बल्कि जब दिलीप कुमार ने उन पर टिप्पणी की तो लता जी और खफा हो गईं। दरअसल, दिलीप कुमार ने लता मंगेशकर को देखकर यह टिप्पणी की थी कि मराठियों की उर्दू बिल्कुल दाल और चावल की तरह होती है। बस यह बात लता मंगेशकर को चुभ गई। लता जी ने उर्दू सीखने तक का फैसला कर लिया था और इसके बाद दोनों की बातचीत 13 सालों तक नहीं हुई।
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रेडिफ.कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 1970 में दोनों को मिलाने का आइडिया लेखक और जर्नलिस्ट खुशवंत सिंह को आया था। अगस्त 1970 में वीकली एडिटर के तौर पर खुशवंत सिंह की कवर स्टोरी, 'हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई' के लिए लता मंगेशकर (लता मंगेशकर से जुड़े दिलचस्प सवाल और जवाब) और दिलीप कुमार को साथ लाने की जुगत लगी। उस दौरान जब लता जी दिलीप कुमार के पाली हिल घर पर आईं, तो उन्हें रिसीव करने पहुंचे दिलीप कुमार और उनकी बातचीत को देख कोई नहीं कह सकता था कि दोनों के बीच कभी कोई विवाद हुआ हो।
खाने की टेबल पर लता जी ने पुराना किस्सा याद दिलाते हुए सबको चौंका दिया और कहा, 'आप जानते हैं युसूफ साहब, मैंने सुना था कि आपके साथ 'लागी नाहीं छूटे' की रिकॉर्डिंग के लिए जब मुझे चुना गया था, तो आप मुझे पसंद नहीं करते थे। मगर मैंने यह गाना ठीक उसी तरह गया जिस तरह मैंने अन्य गाने गाए।'
इस पर दिलीप साहब ने कहा, 'आपने इसे ठीक उसी तरह गया और इसलिए मैं और मेरा परिवार आपको इतना प्यार करते हैं। मैं इतनी अच्छी और सुकून भरी आवाज को कैसे नापसंद कर सकता हूं।' बस इस बातचीत ने दोनों के मतभेद को भी खत्म किया। जिस कवर स्टोरी के लिए दोनों ने साथ आना था, उसकी वजह से दोनों में भाई-बहन का एक रिश्ता हमेशा के लिए कायम हो गया।
दिलीप कुमार जैसी शख्सियत का जाना हम सबके लिए एक बड़ा लॉस था। उनके करीबियों के साथ-साथ लता मंगेशकर ने अपना बड़ा भाई खो दिया था। उनके जाने से दुखी लता जी ने ट्वीट कर लिखा था, 'यूसुफ भाई आज अपनी छोटी बहन को छोड़कर चले गए। यूसुफ भाई क्या गए, एक युग का अंत हो गया।'
आप दोनों के प्यारे के रिश्ते के बारे में क्या सोचते हैं, हमें जरूर बताएं। आपको यह आर्टिकल पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करें। बॉलीवुड से जुड़े ऐसे रोचक किस्से पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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