महाभारत में इस बात का उल्लेख मिलता है कि द्रौपदी ने भले ही पांचों पांडवों से विवाह किया था, लेकिन उनका सबसे अधिक ख्याल भीम ही रखते थे। जब भी द्रौपदी के मान-सम्मान पर आंच आती थी तो भीम ही सबसे पहले उनकी रक्षा के लिए तत्पर होते थे। मगर एक समय ऐसा भी आया जब द्रौपदी ने उन्हीं भीम के बेटे को भयंकर श्राप दे दिया और श्राप भी कोई साधारण नहीं बल्कि शीघ्र मृत्यु हो जाने का। क्या था ये पूरा किस्सा आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
क्यों दिया था द्रौपदी ने अपने बेटे को श्राप?
भीम की द्रौपदी के अलावा एक और पत्नी थीं जिनका नाम था हिडिंबा। भीम और हिडिंबा का पुत्र था घटोत्कच। यूं तो घटोत्कच की असली माता हिडिंबा हुई लेकिन पिता की दूसरी पत्नी भी माता स्वरूप ही मानी जाती है। ऐसे में द्रौपदी भी घटोत्कच की मां समान थीं।
एक बार घटोत्कच अपने पिता से मिलने महाभारत युद्ध से पहले इंद्रप्रस्थ पहुंचे। पिता से लम्बे समय के बाद मिलने की प्रसन्नता में सभा में मौजूद द्रौपदी की घटोत्कच ने भूलवश उपेक्षा कर दी, जिसके बाद द्रौपदी को क्रोध आ गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा।
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अग्नि से जन्मीं द्रौपदी का क्रोध बहुत तीव्र थे लिहाजा उन्होंने गुस्से में घटोत्कच को जल्दी मरने का श्राप दे दिया। साथ ही, उन्होंने ये भी कहा कि बिना लड़े ही भीम पुत्र घटोत्कच मृत्यु की कोक में समा जाएंगे। माता द्वारा दिए इस श्राप को घटोत्कच ने सहज ही स्वीकार कर लिया।
हालांकि श्राप देने के कुछ ही समय के अंतराल में द्रौपदी को आभास हुआ कि उन्होंने भीम के निर्दोष पुत्र को गलत श्राप दिया, जिसके बाद द्रौपदी ने घटोत्कच और भीम से क्षमा भी मांगी लेकिन दिया गया श्राप कभी लौटता नहीं है। इसे में हुआ भी वही जैसा श्राप था।
महाभारत युद्ध में जब घटोत्कच कौरव सेना को नुकसान पहुंचा रहे थे तब हारने कभी से दुर्योधन ने अंगराज कर्ण को अपने पास मौजूद देवराज इंद्र द्वारा दी गई अमोघ शक्ति का प्रयोग करने के लिए कहा। कर्ण ने घटोत्कच के समक्ष पहला ही तीर उसी शक्ति का छोड़ा।
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उस अमोघ शक्ति के पहले और इकलौते वार से घटोत्कच बिना युद्ध लड़े मृत्यु को प्राप्त हो गया। असल में यह श्री कृष्ण की लीला ही थी। घटोत्कच इतना शक्तिशाली था कि वह अकेले कौरवों को हरा सके लेकिन तब तक कौरवों की ओर से युद्ध में कोई अधर्म नहीं हुआ था।
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