महाभारत हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक है। महाभारत में कौरवों और पांडवों के मध्य का ही युद्ध नहीं बल्कि धर्म और अधर्म के बीच की निति को दर्शाया गया है। आप में से बहुत से लोग यह तो जानते ही होंगे कि महाभारत महर्षि वेदव्यास जी ने उच्चारित की थी और इसका लेखन स्वयं भगवान श्री गणेश जी ने किया था, लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि महाभारत का असली नाम क्या है। क्या आपको यह पता है कि महाभारत को पहले किन-किन नामों से जाना जाता था, अगर नहीं तो चलिए ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स द्वारा दी गई जानाकरी के आधार पर आइये जानते हैं महाभारत के नाम का रहस्य।
हिन्दू धर्म ग्रंथों में अगर कोई सबसे बड़ा शास्त्र ग्रंथ है तो वह 'महाभारत' है। महाभारत में लगभग 1,10,000 श्लोक लिखित हैं। महाभारत सिर्फ भारत वर्ष का ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है।
महाभारत में ही भगवद्गीता भी समाहित है। हालांकि श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध से पहले दिए जाने वाले ज्ञान से सराबोर भगवद्गीता के श्लोक और अध्याय महाभारत से अलग भी धर्म पुस्तक के रूप में मौजूद हैं।
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महर्षि वेदव्यास जी ने जब महाभारत के छंदों को बोलना शुरू किया था तब पहले चरण में 8,800 श्लोक थे, वहीं दूसरे चरण में 24,000 श्लोक गणेश जी ने लिखे और तीसरे चरण में श्लोकों की गिनती 1 लाख पहुंच गई।
जब ग्रंथ लिखने का आरंभ हुआ था तब महर्षि वेदव्यास जी ने इसका नाम जय रखा था क्योंकि इसमें पांडवो की जीत का उल्लेख मिलता है। फिर बाद में वेदव्यास जी ने इसका नाम विजय रखा क्योंकि धर्म की जीत के बारे में वर्णित है।
इसके बाद इस ग्रंथ का तीसरी बार नामकरण हुआ और नाम रखा गया 'भारत' क्योंकि पांडवों की जीत के बाद समस्त भारत वर्ष में धर्म का प्रचार-प्रसार बड़ा और अधर्म का नाश हो गया था, लेकिन अंत में इसका नाम रखा गया महाभारत।
महाभारत नाम रखने से पहले इसका मुख्य नाम 'जय सहिंता' था। यानी कि श्लोकों से संहित ऐसी सहिंता जिसमें पांडवों के रूप में धर्म की जय को यानी कि जीत को दर्शाया गया और श्लोकों में उन महत्वपूर्ण घटनाओं को उरेका गया।
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हालांकि यह अंत में महाभारत कहलाई क्योंकि इस ग्रंथ में भरत वंश के राजाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है। दूसरा, युद्ध के पश्चात एक महान भारत वर्ष की स्थापना हुई थी और तीसरा, इस ग्रंथ का भार बहुत अधिक था।
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