05 फरवरी 2025 यानि कल दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने वाला है। एक तरफ अरविंद केजरीवाल हैं, जो चौथी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की चाह रख रहे हैं और दूसरी तरफ भाजपा और कांग्रेस है, जो उन्हें सत्ता से बेदखल करने की फिराक में लगी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्रियों की जब बात की जाती है, तो लोगों के दिमाग में मदन लाल खुराना, शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल जैसे नाम आते हैं, लेकिन दिल्ली की राजनीति के धुरंधर नामों में एक ऐसा नाम भी शामिल है जिसके बारे में शायद कुछ ही लोग जानते हैं।
जब दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री का नाम पूछा जाता है, तो लोग अक्सर मदन लाल खुराना का ही नाम लेते हैं। लेकिन आपको बता दें कि दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री साल 1952 में बने थे, जिनका नाम चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव था। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 तक कार्यभार संभाला था। केवल 34 साल की उम्र में चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने दिल्ली के सीएम की गद्दी पर बैठकर इतिहास रच दिया था और उनके मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी बहुत रोचक है। आज हम इस आर्टिकल में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश के बारे में बात करने वाले हैं और उन्हें शेर-ए-दिल्ली क्यों कहा जाता है इस पर भी चर्चा करेंगे।
दरअसल, चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव के पूर्वज हरियाणा के रेवाड़ी से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उनका जन्म केन्या के नैरोबी में हुआ था। जब वह 13 साल के थे, तब माता-पिता के साथ दिल्ली आकर बस गए थे। उनका पूरा परिवार दिल्ले के शकूरपुर गांव में रहता था। चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली से ही की थी और 1940 के आसपास वह गांधी जी के भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बन गए थे। आंदोलन के चलते वह कई बार जेल भी गए और कांग्रेस के साथ मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे।
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भारत की आजादी के बाद, पहली बार दिल्ली में 1951 में विधानसभा चुनाव हुआ और चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ। उस समय कांग्रेस ने दिल्ली के कद्दावर नेता देशबंधु गुप्ता को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, सीएम पद की शपथ लेने से पहले ही देशबंधु गुप्ता की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई। इसके बाद, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश का नाम दिल्ली के सीएम पद के लिए आगे किया। फिर, सभी की सहमति से दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर चौधरी ब्रह्म प्रकाश यादव को चुना गया। उन्होंने 1952 से लेकर 1955 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला।
दिल्ली के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी, चौधरी ब्रह्म प्रकाश 4 बार दिल्ली से सांसद भी रहे। उन्होंने 1957 में पहली बार सदर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद, 1962 और 1977 में बाहरी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। चौधरी ने उस समय भी जीत हासिल की थी, जब दिल्ली की 7 सीटों में से 6 सीटों पर जनसंघ ने जीत हासिल की। हालांकि, इमरजेंसी के बाद साल 1977 में कांग्रेस का दामन छोड़कर चौधरी ब्रह्म प्रकाश जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने 1977 में बाहरी दिल्ली से चुनाव जीतकर लोकसभा में अपनी जगह बनाई। इसके बाद, 1979 में जनता पार्टी भी दो भागों में बट गई, जिसमें ब्रह्म प्रकाश ने चौधरी चरण सिंह का दामन थामा लिया। इसके बाद, वह केंद्र में मंत्री भी बने थे और उन्होंने खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में काम किया।
कहा जाता है कि चौधरी ब्रह्म प्रकाश सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखते थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वह सरकारी बसों से यात्रा किया करते थे। उन्होंने सीएम रहने के बावजूद भी दिल्ली में कभी अपना घर नहीं बनाया था। जब लोग उनसे पूछते थे कि आपने दिल्ली में कोई घर क्यों नहीं बनाया, तो वह हंसकर कहते थे कि पूरी दिल्ली ही मेरा घर है। चौधरी हमेशा आम लोगों की तरह ही जीवन जिया करते थे और लोगों की समस्याओं को आराम से सुनते थे। लोग उनके साथ बहुत कनेक्ट करते थे, इसलिए उन्हें शेर-ए-दिल्ली की उपाधि दे दी गई थी।
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चौधरी ब्रह्म प्रकाश को सहकारिता आंदोलन का पितामह कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने 40 सालों तक सहकारिता डेवलेपमेंट के लिए काम किया। उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता होल सेल स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी संघ का गठन किया। साल 1993 में चौधरी ब्रह्म प्रकाश दुनिया को अलविदा कहकर चले गए। साल 2001 में डाक विभाग ने चौधरी ब्रह्म प्रकाश पर एक डाक टिकट जारी किया और दिल्ली के नजफगढ़ में उनके नाम का इंजीनियरिंग कॉलेज भी स्थित है।
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Image Credit - social media, jagran
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