'पर मैंने उस लड़के को कई बार देखा है,' मनु ने जाती हुई स्वाति से कहा। स्वाति ने अब थोड़ी गंभीर टोन में कहा, 'हो सकता है आपने काम वाली के बेटे को देखा हो, हमारे घर में रोहन भईया के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ...' इतना कहकर स्वाति वहां से चली गई। मनु थोड़ा अजीब महसूस कर रही थी। रोहन के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ? ये क्या बात थी कहने वाली। रोहन फिर मनु के पास आया। मनु ने रोहन की ओर देखा और फिर मुंह फेर लिया। रोहन ने मनु की नाराजगी समझ ली थी। रोहन मनु के पास आया और प्यार से बोला, 'मनु देखो ऐसा होता है शादी के बाद। मैं ज्यादा समय नहीं दे पा रहा हूं तुम्हें। पर क्या करूं, इतना ज्यादा काम था बाहर भी। अच्छा तुम इतना बुरा मत मानो, चलो हम चलेंगे कहीं। शाम को तैयार रहना।'
रोहन के जाते ही मनु थोड़ी सी खुश हो गई। यकीनन इसी पति के लिए तो घर छोड़कर आई थी वह। मनु के बारे में जानकर अच्छा लग रहा था, लेकिन साथ ही बुरा भी लग रहा था। मनु को घर की याद सता रही थी। उसका पग फेरा नहीं हुआ था। मनु की खुशियां अब इसी घर से जुड़ी हुई थीं। पर मनु ने मन को मनाया और उठकर बालकनी में चली गई। फिर बालकनी के पास से दूर जाती हुई रोहन की गाड़ी को निहारने लगी। अचानक उसने देखा, एक बार फिर से वह बच्चा सड़क के पास दिखा। कामवाली का बच्चा सोच मनु ने नजरअंदाज कर दिया।
मनु नीचे आई तो सास लक्ष्मी और बुआ रोशनी दोनों ही एक दूसरे से कुछ गुपचुप बात कर रहे थे, लेकिन मनु के आते ही चुप हो गए। सास के हाथ में काला धागा था जिसे वह सिंदूर से रंग रही थीं। उसे देख मनु को थोड़ा अजीब लगा। 'ये धागा तुम्हारे लिए है, तुम्हारी बुरी ताकतों से रक्षा करेगा। इसे पैर में बांध लो, किसी की नजर भी नहीं लगेगी।', लक्ष्मी ने कहा। मनु ने चुप चाप वैसा ही किया जो सास ने कहा था। मनु ने धागा बांध तो लिया, लेकिन उसे थोड़ा अजीब लग रहा था। उसने पूछा पूजा घर कहां है? तो जवाब मिला, 'अब तो पूजा घर हमने बंद कर दिया।'
यह अजीब था, पूजा घर कौन बंद करता है। मनु ने सोचा और आगे चली गई। उसकी नजर एक बंद कमरे पर पड़ी। यही होगा शायद पूजा घर। ऐसा ताला लगाया हुआ है जैसे पता नहीं क्या हो। वह उस कमरे की ओर आगे बढ़ी, तो उसका पैर स्लिप हो गया। जोर से चिल्लाई तो लक्ष्मी, रोशनी और स्वाति आ गए। ससुर जी भी अपने कमरे से पूछ पड़े, क्या हुआ? घर में स्वागत के बाद यह पहली बार मनु ने उनकी आवाज सुनी थी। तीनों महिलाओं ने मनु को किसी तरह से ऊपर अपने कमरे तक पहुंचाया। 'क्या ठीक से चलना भी नहीं आता, ऐसे कैसे गिर गई?' बुआ ने तीखे स्वर में मनु से कहा और मनु बस उन्हें देखती रह गई।
मनु चुप-चाप अपने बिस्तर पर लेट गई। ये कहां आ गई थी मनु, उसने तो ऐसा नहीं सोचा था। रात में वह रोहन से सारी बातें कहेगी। उदास मनु की आंख कब लग गई, उसे पता ही नहीं चला। शाम हो चली थी, मनु ने कुछ खास खाया भी नहीं था। पैर सूजने लगा था, शायद मोच गहरी थी। मनु उठी, रसोई घर में गई और फिर अपने लिए खाना लगा लिया। इस बार खाने से पहले ही मन खट्टा हो गया कि कहीं कुछ निकल ना आए।
पर आज कुछ नहीं निकला। मनु ने खाना खत्म किया कि स्वाति ने आकर बोला, 'मुझे बोल देंती, आप क्यों आ गईं यहां। आपकी पहली रसोई नहीं हुई है, इतनी भूख लगी थी, तो बोल देतीं।' स्वाति के तीखे स्वर भी मनु को बुरे लगे।
वह उठकर खड़ी हुई, तो देखा कि पैर इतना सूज गया है कि धागा अड़ने लगा है। बिना सास को बताए उसने धागा निकाल दिया। धागा एक ही दिन मनु के पैर में था और उसे बीमार महसूस होने लगा था। उसके धागा निकालते ही मनु को खिड़की से झांकता हुआ वह लड़का फिर दिखा, इस बार वह मनु को अपने पास बुला रहा था। वह तुलसी के सूखे पौधे की ओर इशारा कर रहा था। फिर उसी बंद कमरे की ओर जिसमें ताला लगा था, जहां जाते वक्त मनु फिसली थी।
मनु ने नीचे देखने के बाद फिर मुड़कर देखा, तो वह लड़का नहीं था। इस बार मनु ने सोच लिया था कि कामवाली के दिखते ही वह उससे शिकायत करेगी कि उसका बेटा कितना परेशान करता है। पर वह क्यूट भी है और वही है जो बार-बार आकर मनु को देख जाता है। मनु के पैर में चोट थी, इसलिए बार-बार ऊपर-नीचे नहीं कर पा रही थी। अपने कमरे में ऊपर गई और फिर मनु एक बार और परेशान होने लगी। फिर यह सोचकर खुश हो गई कि रोहन आकर उसे बाहर ले जाएगा। चोट के बाद भी उसने तैयार होकर रोहन का इंतजार करना शुरू कर दिया। गुलाबी साड़ी पहन मनु चांद सी सज गई और फिर इंतजार करती रह गई।
6,7,8 और फिर 9 बज गए। ना रोहन आया, ना ही उसका फोन, मनु ने घड़ी की तरफ देखा फिर ऊपर किसी के आने की आवाज सुनाई दी। इस बार बुआ थी, वह मनु के लिए खाना लेकर आई थी। मनु से उन्होंने कहा कि वह परेशान ना हो और कुछ खा ले। मनु ने चुप चाप खाना ले लिया, लेकिन खाया नहीं।
वह निवाला तोड़ ही रही थी कि वह लड़का फिर दिखा। इस बार वह मनु के थोड़े करीब आ गया था। उसने उस निवाले को ना खाने के लिए कहा। मनु ने ऐसा ही किया और उसे खोलकर देखा, तो रोटी के बीच में एक कांटा था। मनु फौरन उठ खड़ी हुई और खाने की थाली लेकर नीचे पहुंची।
'ये क्या है? किस पेड़ का कांटा है जो मेरी रोटी में है?' मनु ने आंगन में मौजूद लक्ष्मी, रोशनी, स्वाति और ससुर जी से पूछा। 'अरे वो काम वाली...' लक्ष्मी कुछ बोलती उससे पहले ही मनु ने थाली फेंकी और किचन में चली गई। उसने देखा कि उसका खाना अलग था और जो बाकी लोगों के लिए रखा था वह अलग। 'क्या आप लोग मुझे मारना चाहते हैं? इसलिए रोजाना मेरे खाने में ना जाने क्या-क्या निकलता है? मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूंगी ऐसे तो। क्या है यह, मुझे क्या समझ रखा है कि टॉर्चर करेंगे और मैं चुप रहूंगी।', इतने दिनों का गुस्सा मनु ने बाहर निकाल दिया।
वह रसोई में गई, अपने लिए खुद पराठे बना लिए। खुद सारे ससुराल वालों के सामने बैठकर खाए, उनमें कुछ भी नहीं निकला। सारे लोग मनु का चेहरा ताक रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे मनु की यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी, लेकिन पोल खुलने के डर से मनु को सभी ने वो करने दिया, जो वह करना चाहती थी।
सास के ऊपर आने की आवाज सुनकर मनु पैर चादर के अंदर करके लेट गई और वह धागा छुपा दिया। सास ने कहा, "देखो अब हम और ध्यान से खाना बनाएंगे, वो हमें लग रहा था तुम्हें कुछ स्पेशल खिलाएं इसलिए अलग बन रहा था। बाकी काम वाली रोज वह आटा इस्तेमाल कर रही थी जिसे हमने इस्तेमाल ना करने को कहा था। यह गलती से हुआ। हम तुम्हारी बहुत चिंता करते हैं।' लक्ष्मी ने कहा और मनु ने फिर चिंता छोड़ दी। जाते-जाते सास कह गईं कि उन्होंने वह धागा मनु की रक्षा के लिए पहनाया है, उसे निकाले ना।
पर यह घागे पर इतना जोर क्यों दिया जा रहा है? वह बच्चा कौन है जिसने मनु को कांटा खाने से बचा लिया? आखिर उस बंद कमरे में क्या है? वह तुलसी की पूजा अभी भी क्यों नहीं कर सकती? यह सब कल जानिए हॉन्टेड ससुराल पार्ट-3 में।
डिस्क्लेमर: यह कहानी फिक्शन है और हरजिंदगी किसी भी तरह के काले जादू और भूत-प्रेत की बातों को प्रमोट नहीं करता है। यह कहानी सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए है।
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