चाहत को अपनी तरफ आते देखकर अनुज घबरा गया। वह दौड़कर नीचे उसकी तरफ गया और पूछा, 'चाहत तुम यहां कैसे? क्या हुआ तुम्हें? ऐसी बदहवास हालत में क्यों हो तुम?', चाहत ने जवाब दिया, 'मैंने वो घर छोड़ दिया है, मैं अब तुम्हारे पास आ गई हूं।' अनुज ने चाहत को देखा और कहा, 'अंदर चलकर बात करते हैं, ये तुमने ठीक नहीं किया।' अनुज की बात सुनकर चाहत को शॉक लगा। 'ठीक क्यों नहीं किया? क्या तुम चाहते हो कि मैं वापस उसी जगह चली जाऊं? वापस नौकरों की तरह काम करूं और उस बूढ़े इंसान से शादी कर लूं?' चाहत गुस्से में थी। 'नहीं ऐसी बात नहीं है चाहत, मैं बस तुम्हारे लिए परेशान हूं। तुम थोड़ा शांत हो जाओ।'
पर चाहत उस दिन शांत होने वाली नहीं थी। चाहत अनुज पर ही बरस पड़ी, 'तुम्हें क्या हो गया है अनुज, मैं तुम्हारे लिए सब छोड़ आई हूं। तुम्हें पता भी है तुम्हारे जाने के बाद मेरे साथ क्या हुआ? मुझे पीटा गया, मेरा फोन तोड़ दिया गया, मुझे मामा जी बंद करने वाले थे कि मैं किसी तरह से भाग निकली। अब अगर वापस गई, तो दोबारा कभी नहीं निकल पाऊंगी।' चाहत की ये हालत देखकर अनुज को भी रोना आ गया। 'ऐसा नहीं है चाहत, लेकिन अभी एकदम से तुम आ गई इसलिए मैंने कहा। अगर अभी तुम घर नहीं गईं, तो शायद मेरी नौकरी चली जाए। मैं कुछ ना कुछ कर लूंगा। बस मुझे थोड़ा समय दे दो।' अनुज की बात सुनकर चाहत दंग रह गई।
'नौकरी का डर, यहां मेरी जिंदगी पर बन आई है और तुम्हें नौकरी का डर दिख रहा है? अनुज तुम्हें ऐसा तो नहीं समझा था मैंने। तुमने ही तो मेरे घर आकर मुझे हिम्मत दी और तुम ही।' चाहत रोए जा रही थी और अनुज को कुछ समझ नहीं आ रहा था। 'चाहत मैं मना नहीं कर रहा, सिर्फ कुछ वक्त चाहता हूं। अगर पुलिस आ गई, मेरी नौकरी चली गई, तो क्या होगा जानती हो? मैं तुम्हें भी ठीक से नहीं रख पाऊंगा।' अनुज को लगा कि वह चाहत को समझा रहा है, लेकिन असल में चाहत का हौंसला टूट रहा था।
'ठीक है अनुज, जा रही हूं मैं।' चाहत ने कहा और मुड़कर जाने लगी। 'नहीं चाहत रुको, मत जाओ, ऊपर चलो मेरे साथ, घर पर बैठकर ठंडे दिमाग से सोचते हैं कि क्या करना है।' अनुज ने कहा। 'नहीं, मैं घर ही जाती हूं। तुम अपनी नौकरी बचाओ अनुज। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से कुछ हो तुम्हें।' चाहत ने कहा, बैग उठाया और चल दी। अनुज दो मिनट उसे जाते हुए देखता रहा और फिर उसकी समझ में आा कि असल में हुआ क्या है। असल में चाहत ने अभी क्या किया है। उसे समझ आया कि वह चाहत को दोबारा शायद कभी नहीं देखेगा।
अनुज दौड़कर चाहत के पास गया, वह जानना चाहता था कि चाहत कहां है। पर वो जा चुकी थी। अनुज का फोन बजा, उसके बॉस का फोन था। उसे तुरंत पुलिस स्टेशन बुलाया था। अनुज वहां पहुंचा तो पता चला कि चाहत घर नहीं पहुंची। पुलिस ने घंटो उससे पूछताछ की और अनुज ने बता दिया कि वह घर जाने का बोलकर निकली है। दो दिन तक अनुज हवालात में ही था, लेकिन चाहत का कुछ पता नहीं चलने के कारण उसे छोड़ दिया गया।
अनुज ने अगला पूरा हफ्ता चाहत को ढूंढने में लगा दिया, लेकिन वह मिली नहीं।
आज पूरे 6 साल हो चुके हैं, लेकिन चाहत का कोई पता नहीं है। उस सड़क की ओर निहारता अनुज अभी भी चाहत के खयालों में डूबा हुआ है। क्या होता अगर वह उस दिन थोड़ी सी हिम्मत कर लेता तो आज चाहत उसके साथ होती। जेल की हवा तो वैसे भी उसने खा ली, नौकरी तो वैसे भी उसने छोड़ दी, लेकिन उस दिन दो मिनट की देरी ने चाहत को उससे छीन लिया। आज अनुज को चाहत की बहुत याद आ रही थी। उसने गाहे-बगाहे अखबार के खाली पन्नों को पलटना शुरू कर दिया। इतने समय से अनुज अखबार मंगवाता तो था, लेकिन कभी उसे पढ़ता नहीं था।
अनुज अनमने ढंग से अखबार में देख रहा था और उसे दिखी, चाहत की तस्वीर। एक आर्ट एक्सीबिशन, जिसे चाहत होस्ट कर रही थी।
ये क्या, चाहत यहां कैसे? चाहत इसी शहर में है, उसने तारीख देखी, तो कल की थी। चाहत एक जानी-मानी आर्टिस्ट बन चुकी थी। अनुज के मन में उत्सुक्ता थी, लेकिन आंखों में आंसू। इतने सालों बाद आज ही के दिन चाहत के बारे में उसे पता चला था। चाहत इतने साल कहां थी, ऐसे कैसे अचानक वापस आ गई थी, क्या वो अब अनुज से मिलेगी? क्या उसे पहचान पाएगी? सवालों की उधेड़बुन में अनुज खो सा गया था। उसने फैसला कर लिया था कि वो अब वापस चाहत से मिलने जाएगा।
क्या होगा जब अनुज चाहत से मिलेगा? जानिए अगले पार्ट में 'एक गर्म चाय की प्याली- अंतिम पार्ट।'
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