अनुज लगातार तीन दिनों तक उसी चाय की टपरी पर घंटों बैठा रहा, ऑफिस से बार-बार बाहर आकर उसने देखा कि कहीं चाहत तो नहीं। उसे दोबारा उससे मुलाकात करनी थी, उसे दोबारा उससे बात करती थी। पर चाहत नहीं आई, फिर एक दिन ऑफिस में अपने क्यूबिकल में बैठे-बैठे उसे बॉस ने बुला लिया। अनुज जैसे ही केबिन में गया, उसके सामने चाहत खड़ी थी। बॉस ने कहा, 'ये मिस चाहत हैं, मॉर्डन आर्ट गैलरी की रिप्रेजेंटेटिव, इनकी गैलरी से ही आर्ट पीस हमें एक्सपोर्ट करने हैं।' बॉस बोले जा रहे थे और अनुज जैसे अनसुना कर रहा था। इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट की बात कौन करे जब सामने वही थी। इस बार फॉर्मल लुक में आई चाहत ने अपने बाल सलीके से बांध रखे थे। इतनी खूबसूरत, इतनी आकर्षक, चाहत को देख अनुज तो जैसे हक्का-बक्का रह गया था।
मीटिंग से बाहर निकलते ही अनुज ने फिर वही पूछा, 'मेरे साथ चाय पियोगी?' चाहत ने इस बार शालीनता से जवाब दिया, 'चलो'। आज चाहत ने अपने बारे में अनुज को बताया। उस दिन मामा जी के कॉल से वो इतनी परेशान हो गई थी क्योंकि उसके मामा जी समय के बहुत पाबंद हैं। वह अपने मामा जी की गैलरी में ही काम करती है और उसे सैलरी के नाम पर बस थोड़ा सा हिस्सा ही मिलता है। जिन मूर्तियों और आर्ट पीस को अनुज की कंपनी एक्सपोर्ट करने वाली है वह चाहत की कई महीनों की मेहनत हैं, लेकिन चाहत सिर्फ रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर ही आई है। चाहत की खुशियां कुछ फीकी सी हैं। उसे अकेलापन लगता है और ना जाने क्या-क्या दिमाग में चलता रहता है। अनुज से बात करते-करते चाहत रो पड़ी। उसे पता था कि अनुज अंजान है, लेकिन उसे अच्छा लग रहा था कि कम से कम कोई उसकी बातें सुन रहा है।
चाहत और अनुज एक दूसरे को जान रहे थे और ऐसे ही प्रोजेक्ट के बहाने एक दूसरे से मिलते भी थे। धीरे-धीरे मौसम बदलने लगा और चाय की चुस्की थोड़ी और अच्छी लगने लगी। प्रोजेक्ट के बहाने चाहत भी अनुज के साथ वक्त बिता सकती थी। मामा जी का स्वभाव चाहत के साथ उतना अच्छा नहीं था। चाहत और अनुज एक दूसरे से मिलते तो दुनिया भर के बारे में भूल जाते। ऐसा लगता था कि अनुज की सारी थकान और चाहत के सारे दुख बस उन कुछ पलों में खत्म हो गए हों।
अनुज को उस वक्त अहसास हुआ कि चाहत कितनी अच्छी आर्टिस्ट है। उसकी बनाई हुई मूर्तियां मानो खुद ही कुछ कहती हों। उसकी पेंटिंग्स ऐसी लगती थीं जैसे रंगों ने खुद ही आपस में मिलकर चित्र बनाया हो। चाहत अब अनुज की चाहत बन चुकी थी। ऑफिस में ध्यान थोड़ा ज्यादा देने लगा था अनुज। उसे जल्दी से जल्दी काम खत्म करना होता था ताकि चाहत से मिल सके। दूसरी तरफ चाहत भी अपने आर्ट पीस जोर-शोर से बना रही थी। प्रोजेक्ट के काम के बहाने ही सही, दोनों अपने काम को लेकर काफी क्रिएटिव हो गए थे।
अनुज अब चाहता था कि वह चाहत से अपने दिल की बात कह दे। उसने बहुत ही खूबसूरत पल चुना, नवंबर का महीना और गुलाबी सर्दी का माहौल। उस शाम चाहत ऐसी लग रही थी मानो कोई खूबसूरत तितली अनुज के सामने आकर खड़ी हो गई हो। चाहत की आंखों का वो काजल, उसका गुलाबी सा स्वेटर, जीन्स और हाथों में वो ब्रेस्लेट। उसके बालों से गुजरती हुई हवा उन्हें उड़ा रही थी। दोनों उसी चाय की टपरी पर चाय पी रहे थे और अनुज ने चाहत से पूछा, 'आज तुम्हारे पास थोड़ा समय है क्या?' चाहत ने जवाब दिया, 'क्यों क्या हुआ?' अनुज ने एक पल उसे देखा, 'मैं तुम्हें कहीं ले जाना चाहता हूं,' एक सांस में ये बोलने के बाद उसने चाहत के जवाब का इंतजार भी नहीं किया और चाय वाले को पैसे देकर उसका हाथ पकड़ कर उसे बाइक पर बैठा लिया।
चाहत को ऐसा लगा जैसे पहली बार उसपर किसी ने हक जताया है, उसे अपना माना है। वो चुपचाप अनुज के साथ चल दी। चाहत को अनुज का साथ अच्छा लग रहा था। अनुज उसे लेकर एक कैफे में गया। एक खूबसूरत गार्डन के बीच में बना छोटा सा कैफे जहां ज्यादा लोग नहीं थे। शाम को रौशन करतीं खूबसूरत फेयरी लाइट्स, इतनी अच्छी लग रही थीं। अनुज ने अपने हाथ में आंचल का हाथ लिया और कहा, 'मैं जिंदगी भर तुम्हारे साथ वही एक प्याली चाय पीना चाहता हूं, तुम्हारे साथ अपने दिन बिताना चाहता हूं, तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं चाहत।' अनुज की बातें सुनकर चाहत खामोश हो गई, उसे बहुत अच्छा लग रहा था, लेकिन उसकी आंखों में डर भी था।
'मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं अनुज, लेकिन हमारा मिलना इतना आसान नहीं।' चाहत ने कहा, 'तुम्हें पता है मैं उस दिन क्यों भाग गई थी? मामा जी ने मेरे लिए एक जिंदगी सोच रखी है। उस दिन किसी से वीडियो कॉल पर बात करनी थी। उन्होंने अपने से 5 साल छोटे अपने किसी दोस्त से मेरी शादी की बात चलाई है। वह मामा जी को बिजनेस में बहुत फायदा देगा। मेरी बात नहीं सुनी जाएगी।
मामा जी से मैं हर रोज लड़ती हूं कि मुझे मेरी जिंदगी दे दें, लेकिन उनके खिलाफ जाने की हिम्मत अकेले मुझमें नहीं।' चाहत यह कहते-कहते रोने लगी।
'तुम अकेली नहीं हो, मैं भी तुम्हारे साथ हूं और अपने से दोगुनी उम्र के आदमी के साथ तुम शादी कर लोगी, ऐसा कैसे। मामा जी से भी बात कर लूंगा और तुम्हें उनसे मांग भी लूंगा।' चाहत से इतना कहते ही अनुज ने उसे गले से लगा लिया। 'तुम नहीं समझते अनुज, मामा जी मुझे और तुम्हें दोनों को अलग कर देंगे और तुम्हारी नौकरी के लिए खतरा भी बन जाएंगे। तुम्हारे बॉस भी उनके दोस्त हैं। तुम्हें उनके गुस्से का अंदाजा नहीं है।' चाहत रोए जा रही थी और अनुज को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
इतने में ही चाहत की नजर किसी लड़की पर पड़ी जो उन दोनों को देखे जा रही थी। चाहत को जिसका डर था वही हुआ, वह हड़बड़ा कर आगे बढ़ गई। चाहत को ऐसा लगा कि किसी ने उसकी जान ही निकाल ली हो।
कौन थी वो लड़की जिसे देखकर चाहत इतना घबरा गई थी, जिसके बारे में अनुज को भी नहीं पता था। क्या हुआ था अनुज और चाहत के बीच छह साल पहले जिसके कारण अनुज अभी भी दुखी है। जानने के लिए पढ़िए कहानी, 'एक गर्म चाय की प्याली- पार्ट 3'
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