आज की शाम कुछ अलग लग रही थी। बरसात इतनी ज्यादा थी कि मानो सारे रंग ही सलेटी हो गए थे। बाहर सिर्फ पानी और आसमान में काले-काले बादल। अनुज बालकनी में गया और बाहर का माहौल देखकर लंबी सांस लेकर अंदर आ गया। यह शाम बिल्कुल वैसी ही थी जैसी 6 साल पहले की वो शाम जब उसने आखिरी बार अपनी चाहत को देखा था। 6 साल बीत गए, लेकिन अभी भी अनुज उसे भूला नहीं है। बारिश की बूंदों की आवाज इतनी तेज है जैसे वो अनुज के मन के अंदर के तूफान को बता रही हैं। हर साल बरसात के मौसम में अनुज एक पहेली की तरह घंटों बालकनी के सामने वाली सड़क को निहारता रहता है। जिस दिन भी तेज बारिश होती है, अनुज यही करता है।
ऐसा ही तो दिन था वो जब चाहत उसकी जिंदगी से गई थी। उसे पता भी नहीं था कि आखिर उसकी गलती कहां थी। आखिर क्यों वो उस वक्त हिम्मत नहीं कर पाया। चाहत के जाने के बाद ही तो उसे अहसास हुआ था कि जिंदगी अभी भी बाकी है। एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी करने वाला अनुज खुद ही जानता था कि उसकी नौकरी कितनी अच्छी थी। वह पैसे तो कमाता था, लेकिन वक्त नहीं था उसके पास किसी भी चीज के लिए। ऐसा नहीं है कि वह चाहत को प्यार नहीं करता था, लेकिन पता नहीं कैसे, हर मामले में समय का पाबंद अनुज चाहत के लिए देर ही कर देता था।
हमेशा ही तो देर कर देता था वो, बर्थडे, एनिवर्सरी, कोई त्योहार या साधारण सी एक कॉल। अनुज ने कभी चाहत के समय की कद्र नहीं की, लेकिन चाहत को इतनी तकलीफ भी नहीं होती थी। वह अपनी आर्ट गैलरी में व्यस्त रहती थी। मिट्टी के खिलौनों से लेकर लाखों में बिकने वाली मूर्तियों और पेंटिंग्स तक, चाहत बहुत कुछ बना लेती थी। वह इतनी टैलेंटेड थी, लेकिन किस्मत ने कभी चाहत का साथ नहीं दिया। आर्ट गैलरी में काम करने के कारण सारा क्रेडिट उसके मामा-जी ही ले जाते थे। लाखों में बिकने वाली मूर्तियों का पैसा भी तो उसका नहीं था, वह सिर्फ एक कारीगर थी। गैलरी में काम करने वाली कारीगर। माता-पिता के गुजर जाने के बाद चाहत के पास मामा-जी ही तो थे, लेकिन उन्होंने कभी चाहत को बेटी नहीं बनाया। चाहत उनके लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी थी।
चाहत अपने हिसाब से परेशान रहती थी और अनुज भी अपनी नौकरी से परेशान था। उसे मुश्किल से चार-पांच घंटे मिलते थे जिसमें वह सो लेता था, खा-पी लेता था। नौकरी लग तो जाती है, लेकिन वह आपके कितने सपने ले जाती है, इसका अंदाजा भी नहीं रहता। उस रोज अनुज सुबह 7 बजे से ऑफिस में ही था और बस अपना बैग बंद करके शाम के 7 बजे बाहर निकल आया था। अनुज ने उस दिन अपने बॉस से कह दिया था कि अगर उससे ऐसे ही मजदूरी करवाई गई, तो वह काम छोड़ देगा।
अनुज जब ऑफिस से निकला, तो बरसात होने लगी थी। रिमझिम-रिमझिम झड़ी लगी हुई थी। इस मौसम में एक गर्म चाय की प्याली ना पी जाए, ऐसा कैसे हो सकता था। अनुज पास वाली चाय की दुकान पर गया और वहां चाय की चुस्की लेती हुई दिखी चाहत। इस मौसम में चाय के कप को फूंक मारती हुई चाहत के चश्मे में धुंध जम गई थी। यह देखकर अनुज ना जाने कैसे हंस पड़ा। चाहत ने चश्मे को नीचे करके अनुज को देखा, खूबसूरत आंखें, काजल ऐसा लग रहा था जैसे उसकी ही आंखों के लिए बना हो, घुंघराले बाल जिनमें बारिश की छोटी-छोटी बूंदें टिक गई थीं। चाहत को देखकर अनुज को लगा जैसे एक पल में उसकी दिन भर की थकान उतर गई है। चाय की टपरी, एक कप चाय की प्याली, वहां हल्के पीले रंग के कुर्ते में खड़ी चाहत।
अनुज ने कुछ सोचे बिना ही उसके पास जाकर बोला, 'मेरे साथ चाय पियोगी?' चाहत ने हैरानी से उसे देखा और कहा, 'मैं चाय पी रही हूं...' अनुज को अपनी नादानी का अहसास हुआ और एक पल मुस्कुरा कर उसने फिर बोला, 'सॉरी, मैं शायद गलती कर गया, मैं एक कप चाय पीने जा रहा हूं, क्या मेरे साथ खड़ी रहोगी?' चाहत नहीं जानती थी कि ये लड़का कौन है, लेकिन उसने अनुज को मुस्कुरा कर हां कर दी।
चाहत के मन में भी किसी के साथ खड़े होकर बातें करने की इच्छा थी। बचपन से अभी तक, सिर्फ काम और मामा-जी के ताने। घर पर भी उसके साथ बात करने वाला कोई नहीं था। दोस्ती भी कुछ ज्यादा कर नहीं पाई थी चाहत। गिनती की दो सहेलियां थीं जो अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त रहती थीं। रोजाना मिलना मुश्किल था। ऐसे में एक अजनबी के साथ उस शाम एक चाय की प्याली पीने में हर्ज ही क्या था।
'वैसे पेंटिंग का शौक है क्या आपको?' अनुज ने पहली ही बार में पूछ लिया। 'आपको कैसे पता? 'चाहत ने हैरानी से पूछा। 'आपके हाथों में रंग लगा हुआ है।' अनुज ने मासूमियत से जवाब दिया। 'कभी मुझे भी था, लेकिन अब वक्त नहीं मिलता। कभी-कभी काम करते हुए आप इतने मजबूर हो जाते हैं कि यही भूल जाते हैं कि खुद को क्या चाहिए,' अनुज ने एक सांस में अपनी जिंदगी का फसाना ही कह दिया। चाहत को लगा कि अनुज ने जैसे उसकी ही बात कर दी हो।
दोनों ने बातों का सिलसिला शुरू किया और देखते ही देखते एक घंटा बीत गया। बारिश भी बंद हो गई थी और शाम अब रात बन चुकी थी। अचानक चाहत का फोन बजा और वह परेशान हो गई, फोन की स्क्रीन पर लिखा था, 'मामा जी'। चाहत ऐसे परेशान हुई जैसे उसे पुलिस ने पकड़ लिया हो। एकदम घबराहट में उसके हाथ कांपने लगे। वह अनुज को बिना अपना नाम बताए भाग गई। चाहत के भागने पर अनुज परेशान सा हो गया, भला ऐसा क्या था जिसकी वजह से चाहत ऐसे भाग गई।
अनुज के मन में ना जाने कितने सवाल छोड़ गई थी चाहत, पर ऐसा क्या था जिसकी वजह से चाहत को ऐसा करना पड़ा? क्या कभी चाहत और अनुज एक दूसरे से दोबारा मिल पाएंगे? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग, एक कप चाय की प्याली...
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