अनुज बेचैन था, क्या करे वो? चाहत से मिलकर कैसे अपनी बात रखे? कैसे बताए उसे कि वह उस दिन डर गया था? बार-बार घड़ी देखते हुए अनुज सिर्फ उस पल का इंतजार कर रहा था जब चाहत से वह मिल सकता था। उसे अंदाजा नहीं था कि आने वाले समय में उसके साथ क्या होने वाला है? चाहत को वो 6 साल बाद मिलने वाला था। इतने सालों में कितनी बदल गई होगी वो? क्या हुआ होगा उसके साथ? इतने सालों में चाहत ने ना जाने क्या-क्या सहा होगा? सिर्फ इसलिए क्योंकि अनुज उस दिन हिम्मत नहीं कर पाया। उस दिन चाहत को रोक नहीं पाया।
अनुज को समझ नहीं आया कि वह क्या पहन कर जाए? क्या होगा आज? शाम होते ही बादलों का झुंड आसमान में मंडराने लगा। ऐसा लग रहा था कि सारे रंग धुंधले हो चुके हैं। अनुज चुप-चाप उस आर्ट गैलरी के लिए निकल गया। उसके कदम अपने आप बढ़ते जा रहे थे, लेकिन मन में संकोच था। क्या कहेगा वो चाहत से मिलकर?
गैलरी में जाते ही हर तरफ अलग-अलग रंग दिखने लगे। इतने खूबसूरत आर्ट पीस मानो खुद प्रकृति की एक झलक इन बेजान पत्थरों पर आ गई हो। कैनवस इतने सुंदर मानो खुद परियों ने इन्हें बनाया हो। यही तो थी अनुज की चाहत। जितनी सुंदर वो खुद थी, उतनी ही सुंदर उसकी आर्ट थी। पेंटिंग्स देखते ही देखते अनुज खो गया और अचानक उसकी नजर चाहत पर पड़ी। आज चश्मा और साड़ी पहने चाहत बेहद खूबसूरत लग रही थी। हल्के पीले रंग की साड़ी, खुले हुए बाल, चेहरे पर मुस्कुराहट, किसी से बात करते हुए वह हंस दी। लोग उसे घेरकर खड़े हुए थे और अनुज दूर से उसे बस देखे ही जा रहा था।
चाहत की खूबसूरती ने उसे एक बार फिर मोह लिया था। उसकी सादगी में ही उसकी खूबसूरती छुपी हुई थी। चाहत इतनी सुंदर दिख रही थी कि अनुज को लगा वो बस जाकर चाहत को गले लगा ले, लेकिन ये आर्ट गैलरी और यहां मौजूद सारे लोग नहीं जानते थे कि अनुज के मन में क्या है। चाहत की नजर अनुज पर पड़ी और उसने अचानक बोलना बंद कर दिया। इतने दिनों में चाहत तो नहीं बदली, लेकिन हां अनुज थोड़ा बदल चुका था। थोड़ा सा पेट निकल आया था, आंखों के नीचे डार्क सर्कल भी हो गए थे, इतना ही नहीं शायद थोड़े बाल भी कम हो गए थे। चाहत अनुज को देख रही थी और यही सब सोचे जा रही थी।
चाहत और अनुज दोनों के कदम अपने आप एक दूसरे की तरफ बढ़ते चले गए। एक दूसरे को इतने सालों बाद देख अनुज के मुंह से सिर्फ इतना ही निकला, 'चाहत, मुझे माफ कर दो। आज मैं तुमसे माफी मांगना चाहता हूं। उस दिन तुम्हारे जाते ही ना जाने मैंने तुम्हें कितना ढूंढा। पर तुम कहीं नहीं थीं... और... ' अनुज कहते-कहते सुबकने लगा, तो चाहत ने उसे रोक लिया।
'खुद ही बोलते रहोगे या मेरी भी सुनोगे?' चाहत ने कहा। 'जिस दिन मैंने घर छोड़ा था अनुज उस दिन फैसला कर लिया था कि अब दोबारा उस घर में नहीं जाऊंगी। मैं अपनी एक पुरानी सहेली के घर चली गई थी जिससे ज्यादा बात नहीं होती थी। मैं जाते-जाते अपने सारे डॉक्युमेंट्स लेकर गई थी और वहीं मुझे दिखे मां-पापा की एफडी के कागज। उन्होंने मेरे लिए लाखों रुपये छोड़े हुए थे। मामा जी ने उसे छुपा लिया था क्योंकि मेरे साइन के बिना वो पैसे मिलते नहीं। मैंने उन पैसों से अपनी जिंदगी फिर शुरू की। आर्ट स्कूल भी गई और अब देखो, कुछ ही सालों में से सब कैसे हो गया।' चाहत कहती जा रही थी और अनुज सुनता जा रहा था।
'सच तो यह है अनुज की उस दिन ना तुम्हारी गलती थी ना मेरी। तुमने सोचने के लिए कुछ समय मांगा और मैं उस दिन अपना मन बनाकर आई थी। उस बुद्धू लड़की को तुम्हारी बात बुरी लग गई और जब खुद अपने पैरों पर खड़ी हुई तो समझ आया कि तुम्हारा डरना भी गलत नहीं था। तुम सोच ही तो रहे थे। मैंने 6 साल गुजार दिए गुस्सा होकर तुम्हें माफ करने में। कहीं ना कहीं दोबारा तुमसे मिलने की चाहत थी इसलिए इसी शहर मे आ गई। तुम और मैं अपने साथ कई कस्में लेकर चल रहे थे। थोड़ा अलग होने पर समझ आया कि असल में जिंदगी ने हमारे लिए कुछ और ही सोच रखा था।' चाहत की बात खत्म होने तक अनुज फूट-फूटकर रोने लगा। आस-पास के लोग भी उसे देखने लगे।
'सुनो..' चाहत ने कहा, 'मेरे साथ एक प्याली चाय पियोगे? चलो अनुज भूल जाते हैं पुरानी बातें। ना तुम गलत, ना मैं, हम दोनों ने 6 साल गुजार दिए एक दूसरे के इंतजार में और अब कम से कम एक दूसरे को अच्छे से जान लें।'
आज चाहत और अनुज आखिर एक बार फिर चाय की एक प्याली पीने गए थे। ऐसा लग रहा था कि कोई तूफान अब थम गया है। हवा का ठंडा झोंका एक बार फिर दोनों को छू गया। उस ठंडी हवा में भी सर्दियों की दोपहर की धूप जैसी गुनगुनाहट महसूस हो रही थी। इतने सालों में पहली बार ऐसा लग रहा था कि दोनों को एक दूसरे पर भरोसा कर रहे थे। दोनों को इतनी खुशी शायद कभी नहीं हुई। अब घंटों की बातों का सिलसिला चलता रहा। दोनों देर रात तक बेमकसद उसी सड़क के आस-पास घूमते रहे। जी भरके गोलगप्पे भी खाए... आज दोनों फिर से वही बन गए थे जैसे वो दोनों मिले थे।
आज ऐसा लग रहा था जैसे किसी कैद से छुटकारा मिल गया है। चाहत और अनुज दोनों ही आज एक साथ थे। आखिर अनुज ने चाहत से एक ऐसा सवाल किया कि चाहत की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। 'सुनो चाहत, मैं तुमसे बस एक ही चीज मांगना चाहता हूं।' अनुज ने कहा, 'क्या?' चाहत ने मुस्कुराते हुए पूछा। 'क्या जिंदगी भर मेरे साथ हर रोज एक गर्म चाय की प्याली पियोगी? क्या जिंदगी भर ईंठ-पत्थर के मकान को घर बनाने की कोशिश करोगी? हमारा घर चाहत? जहां मैं अपनी पत्नी यानी कि तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं? मुझसे शादी करोगी?'
अनुज के इतना कहते ही चाहत के चेहरे पर मुस्कुराहट थी और आंखों में आंसू। चाहत अपने दिल के गुबार को एक तरफ रखकर अनुज के साथ हो ली थी। चाहत और अनुज अब इतने सालों बाद एक बार फिर एक दूसरे को जान रहे थे। दोनों फैसला कर चुके थे, एक गर्म चाय की प्याली हमेशा साथ पीने का।
समाप्त...
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