दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक 'दरबार हॉल' में 'पद्म पुरस्कारों' के विजेताओं को इसी महीने की 9 तारीख को सम्मानित किया गया था। विजेताओं में एक नाम कर्नाटक की रहने वाली ट्रांसजेंडर फोक आर्टिस्ट मंजम्मा जोगती का भी था।
मंजम्मा का अवॉर्ड लेने का तरीका काफी निराला था और उनका एक वीडियो भी खूब वायरल हुआ था। जिस तरह अवॉर्ड लेने से पहले मंजम्मा ने राष्ट्रपति की नजर उतारी, उसकी सभी ने तारीफ की थी। इससे पहले शायद ही उन्हें लोग जानते थे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कला के क्षेत्र में योगदान के लिए मंजम्मा को प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। मंजम्मा एक लोक नृत्य आर्टिस्ट हैं और उनका यहां तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था। उन्होंने कड़े संघर्ष और कई चुनौतियों के बाद इतना लंबा सफर तय किया और आज एक कलाकार के रूप में लोगों के समक्ष आई हैं। आखिर कौन हैं मंजम्मा जोगती और क्या रही उनकी कहानी, आइए जानें।
कौन हैं मंजम्मा जोगती?
मंजम्मा का जन्म कर्नाटक के बेल्लारी जिले में मंजुनाथ शेट्टी के रूप में हुआ था। वह एक फोक आर्टिस्ट हैं और जोगती नृत्य के लिए जानी जाती हैं। यह जोगप्पा का एक लोक नृत्य है, जिसे मंजम्मा ने सीखा और आज उसे एक नए मुकाम तक पहुंचाया। हालांकि खुद यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। कम उम्र से उन्होंने काफी संघर्ष झेला और मंजुनाथ से मंजम्मा बनीं।
मंजुनाथ शेट्टी से मंजम्मा जोगती बनने का सफर
कम उम्र से ही उन्होंने खुद को एक महिला के रूप में पहचानना शुरू कर दिया था। द हिंदू बिजनेस लाइन में छपे उनके इंटरव्यू के मुताबिक, वह तौलिये को स्कर्ट की तरह लगाकर घूमा करती थीं। अपनी मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थीं और अपनी क्लास की लड़कियों के साथ रहना, डांस करना और तैयार होना उन्हें बहुत पसंद था। ऐसे ही करते-करते 15 साल की उम्र में उन्होंने खुद को एक महिला के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। हालांकि उनके घरवाले इस बात से अंजान थे। वह मंजम्मा को ठीक करने के लिए डॉक्टरों के पास ले गए।
इसके बाद वह मंजम्मा को एक आश्रम ले गए, वहां एक पंडित ने बताया कि उन्हें देवी शक्ति का आशीर्वाद मिला है। उन्होंने उस इंटरव्यू में बताया, 'आश्रम में उन पंडित से मिलने के बाद, मेरे पिता ने कहा मैं उनके लिए मर चुकी हूं।' साल 1975 में उनके माता-पिता उन्हें हॉस्पेट स्थित मंदिर ले गए। यहां वह मंजुनाथ शेट्टी से मंजम्मा जोगती बन गईं। देवी येलम्मा, जोगप्पा या जोगती के भक्त मुख्य रूप से ट्रांस लोग हैं जो खुद को देवी से विवाहित मानते हैं।
मंजम्मा बनने पर मां-बाप की प्रतिक्रिया
इसी इंटरव्यू में मंजम्मा ने बताया, 'दीक्षा की रस्म में मेरा उडारा (पारंपरिक रूप से युवा लड़कों के कूल्हों के चारों ओर बंधा हुआ धागा) काटा गया। मुझे एक स्कर्ट, ब्लाउज, चूड़ियां और शादी का धागा दिया गया। इसके बाद मुझे सिर्फ मेरी मां की चीखें याद हैं, क्योंकि उस दिन उन्होंने अपने बेटे को खो दिया था। उनका बेटा उनके लिए मर चुका था।' मंजम्मा बनने पर उनके माता-पिता ने न उन्हें स्वीकार किया और न कभी घर आने दिया।
मरने की कोशिश, मांगी भीख और सहा शोषण
द हिंदू बिजनेस लाइन में छपे उनके इंटरव्यू के मुताबिक, घरवालों की इस बेरुखी से परेशान होकर मंजम्मा ने मरने तक की कोशिश की। उन्होंने जहर पीकर अपनी जान देने की कोशिश की थी। हालांकि वह बच गईं। इसके बाद उन्होंने घर छोड़ा और सड़कों पर भीख मांगना शुरू किया। इसी दौरान एक बार कुछ आदमियों ने उनका यौन शोषण किया और उनके पैसे छीन लिए। इसके बाद उन्हें लगा कि उन्हें मर जाना चाहिए। मगर एक उम्मीद की किरण ने उन्हें बचा लिया। वह उम्मीद की किरण थी लोक नृत्य, जो उनके जीवन में बहार बनकर आया।
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जोगती नृत्य ने बांधी मंजम्मा की उम्मीद
एक बस स्टैंड पर खड़े-खड़े मंजम्मा ने एक पोस्टर देखा, जिसमें एक पिता-बेटा एक परफॉर्मेंस दे रहे थे। पिता लोकगीत गा रहे थे और बेटा सिर पर एक पॉट रखकर नृत्य कर रहा था। मंजम्मा ने बताया था, 'यह जोगती नृत्य (जोगप्पा का एक लोक प्रदर्शन) था और मैं हमेशा से ही इससे प्रभावित रही थी। इसलिए मैं परफॉर्मेंस देने वाले पिता से मिलने पहुंची। उनका नाम बसप्पा था, उनसे पूछा कि क्या वह मुझे यह सिखाएंगे और वह मान गए। मैं प्रतिदिन उनके यहां जाकर यह सीखती थी। चोम्बू (पॉट) को सिर पर बैलेंस करना काफी दिलचस्प होता था और कभी-कभी तो देवता की मूर्ति को सिर पर संभालना, चलते हुए मुश्किल होता था।' (ये हैं भारत की सबसे मजबूत महिला पॉलिटिशियन)
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इस कला ने बदल दी मंजम्मा की जिंदगी
मंजम्मा को तब यह नहीं पता था कि कला उनके जीवन में अधिक परिवर्तनकारी भूमिका निभाएगी। एक साथी जोगप्पा ने उन्हें हागरि बोम्मनहल्ली के एक लोक कलाकार कलावा से मिलवाया। उन्होंने मंजम्मा को ऑडिशन देने के लिए कहा। मंजम्मा ने लोकगीत गाया भी और नृत्य भी किया। बस उस दिन के बाद से उन्हें नाटकों में छोटी भूमिकाओं के लिए और फिर बड़ी मुख्य भूमिकाओं के लिए भी बुलाया जाने लगा। इस नृत्य की पहचान और लोकप्रियता का श्रेय कई हद तक मंजम्मा को ही जाता है।
कर्नाटक के स्कूलों की किताब में है मंजम्मा की कहानी
मंजम्मा को 2010 में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और उनकी जीवन कहानी हावेरी जिले के कर्नाटक लोक विश्वविद्यालय में स्कूल पाठ्यक्रम और कला स्नातक पाठ्यक्रम का हिस्सा है। इतना ही नहीं, आज मंजम्मा कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष भी बनीं और कला के क्षेत्र में उनके इसी योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म श्री जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया। (भारत की 29 महिलाएं जिन्हें पद्म अवॉर्ड्स से किया गया सम्मानित)
मंजम्मा के लिए कला भगवान का रूप है, जिसने उन्हें खाना दिया, जो उनकी आत्मा को हर दिन भरती है और जिसने उनका साथ तब दिया, जब उनके पास कोई नहीं था। मंजम्मा की यह कहानी वाकई प्रेरणादायी है। उन्होंने आज जिस मुकाम को हासिल किया वहां पहुंचना आसान नहीं था, मगर उन्होंने हार नहीं मानी।
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